
तनवीर जाफ़री
अफ़ग़ानिस्तान की तालिबानी सरकार के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी ने पिछले दिनों भारत का एक सप्ताह का दौरा किया। अगस्त 2021 में तालिबान के जबरन सत्ता में आने के बाद किसी शीर्ष तालिबानी नेता की पहली आधिकारिक यात्रा थी। मुत्तक़ी संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में शामिल थे, इसलिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति ने उन्हें केवल भारत यात्रा के लिए विशेष छूट दी थी। ग़ौरतलब है कि 2021 में भारत ने तालिबान शासन के बाद काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था। परंतु पिछले गत जनवरी 2025 में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की दुबई में मुत्तकी से हुई मुलाक़ात और फिर मई 2025 में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मुत्तकी से फोन पर हुई बातचीत के बाद ही उनके भारत दौरे का रास्ता साफ़ हो गया था। 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की लोकतान्त्रिक सरकार से जबरन सत्ता हथियाने वाले तालिबानों को अब तक केवल रूस ने ही मान्यता दी है। वर्तमान तालिबानी शासन को भारत ने भी अभी तक मान्यता नहीं दी है। इसके बावजूद तालिबान से व्यापार, विकास,सहायता, और सुरक्षा जैसे विषयों को लेकर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध मज़बूत करने की बात करना और कल तक मानवता विरोधी कुकृत्य करने वाले कुख्यात आतंकी संगठन के रहनुमाओं से हाथ मिलाना ‘दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त ‘ की नीति के अंतर्गत भले ही ठीक नज़र आता हो परन्तु तालिबानों के ज़ुल्म व अत्याचार की सूची इतनी लंबी है कि इन वैचारिक आतंकियों को न तो कभी मुआफ़ किया जा सकता है न ही इनपर विश्वास किया जा सकता है। यही वजह है कि भले ही भारत सरकार ने तालिबानी नेता व उसके साथ आये प्रतिनिधिमंडल का स्वागत क्यों न किया हो परन्तु देश का एक बड़ा वर्ग भारत तालिबान रिश्तों को लेकर ख़ुश नहीं बल्कि नाख़ुश नज़र आया।
दरअसल पूर्व में ओसामा बिन लादेन व मुल्ला उमर के संरक्षण में इन्हीं तालिबानों ने आतंक तथा अपनी घोर कट्टरपंथी विचारधारा का वह घिनौना इतिहास लिखा है जिसे दुनिया कभी भुला नहीं सकती। याद कीजिये फ़रवरी 2001 में तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला मोहम्मद उमर द्वारा जारी किया गया वह फ़रमान जिसमें उसने अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद सभी मूर्तियों को नष्ट किये जाने जैसा वैमन्सयपूर्ण आदेश जारी किया था। इसी आदेश के बाद तालिबानी लड़ाकों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान की बामियान घाटी में छठी शताब्दी ईस्वी में चट्टानों में तराशी गई दो विशालकाय बुद्ध मूर्तियों को तोपों और एंटी-एयरक्राफ़्ट गनों से ध्वस्त कर दिया गया था ? यह दुनिया की सबसे ऊँची खड़ी बुद्ध प्रतिमाओं में से एक थीं जिनकी ऊँचाई क्रमशः 180 व 125 फ़ीट थी। तालिबान के इस दुस्साहस ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। क्योंकि ये मूर्तियाँ 1,500 वर्ष पुरानी थीं और मानव इतिहास का एक अहम हिस्सा थीं। तालिबान ने इस दौरान अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी अन्य बौद्ध कलाकृतियों को भी नष्ट किया था । तालिबान के इस क़दम से पूरे विश्व में आक्रोश पैदा हो गया था। संयुक्त राष्ट्र, यूनेस्को, भारत, जापान, श्रीलंका और अन्य कई देशों द्वारा इस तालिबानी कुकृत्य की घोर निंदा की गयी थी । यूनेस्को ने इसे तालिबान द्वारा किया गया “सांस्कृतिक अपराध” बताया था। क्या इस घटना को भुलाया जा सकता है जोकि इन्हीं तालिबानों की नफ़रती सोच व विचारधारा के तहत अंजाम दी गयी थी ?
क्या देश 24 दिसंबर 1999 को अंजाम दिये गये उस कंधार विमान अपहरण कांड को भूल सकता है जिसमें काठमांडू से नई दिल्ली आने वाली इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट IC-814 का अपहरण पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन द्वारा किया गया था। इस विमान में 176 यात्री और 15 चालक दल के सदस्य सहित कुल 191 लोग सवार थे। अपहरणकर्ताओं द्वारा यह विमान अमृतसर,लाहौर व दुबई के बाद अंत में अफ़ग़ानिस्तान के कंधार ले जाया गया था जो उस समय तालिबान के नियंत्रण में था। कंधार विमान अपहरण कांड एक ऐसी घटना थी जिसने भारत की सुरक्षा नीतियों, आतंकवाद से निपटने की रणनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर गहरा प्रभाव डाला था । यह घटना आज भी आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में देखी जाती है। इसी विमान अपहरण के बाद भारत सरकार को भारतीय जेलों में बंद मसूद अज़हर,अहमद उमर सईद शेख़ व मुश्ताक़ अहमद ज़रगर जैसे दुर्दांत आतंकियों की रिहाई करनी पड़ी थी। इस पूरे प्रकरण को अंजाम तक पहुँचाने में तालिबानों ने ही अपहरणकर्ताओं के पक्ष में अहम किरदार निभाया था। इसीलिए अपहरणकर्ता विमान को अंत में कंधार ले गए थे। क्या देश इस हादसे को कभी भुला सकता है ?
महिलाओं को लेकर तालिबानों की विकृत व अमानवीय सोच से भी दुनिया भलीभांति वाक़िफ़ है। यह तालिबान ही तो थे जिन्होंने 9 अक्टूबर 2012 को, पश्तून परिवार से संबंध रखने वाली 15 वर्षीय मलाला यूसुफ़ज़ई को उस समय उसका नाम पूछकर गोली मारी थी जबकि वह स्वात ज़िले में परीक्षा देकर स्कूल बस से अपने घर लौट रही थीं। याद कीजिये उस समय एक नक़ाबपोश तालिबानी बंदूक़धारी उस बस में चढ़ा और चिल्लाया, “तुम में से कौन मलाला है? बोलो, वरना मैं सबको गोली मार दूँगा।” मलाला की पहचान होने पर उसने मलाला को बाएँ आँख के पास से गोली मारी, जो उनके गर्दन से होकर कंधे में जा लगी। इसी हमले में कायनात रियाज़ व शाज़िया रमज़ान नाम की दो अन्य स्कूली लड़कियां भी घायल हुईं थीं। यह हमला तालिबान द्वारा मलाला की शिक्षा संबंधी सक्रियता के विरुद्ध था। उस समय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के प्रवक्ता ने इस घटना की ज़िम्मेदारी लेते हुये यह कहा था कि मलाला “काफ़िरों की प्रतीक” हैं और इस्लाम विरोधी विचार फैला रही है। यह तालिबान ही हैं जिन्होंने लड़कियों के सैकड़ों स्कूल्स या तो उड़ा दिया या उनमें आग लगा दी।
शिक्षा को लेकर तालिबानी सोच जगज़ाहिर है। इनके शासन में छठी कक्षा के बाद लड़कियां माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकतीं। विश्वविद्यालयों में भी महिलाओं का प्रवेश बंद है, और अब महिलाओं द्वारा लिखी किताबों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।आज अफ़ग़ानिस्तान में लगभग 11 लाख लड़कियां स्कूल से बाहर हैं। आज अफ़ग़ानिस्तान दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां लड़कियों की शिक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध है। इससे न केवल बाल विवाह बढ़े हैं बल्कि महिलाओं का साक्षरता स्तर घटकर 30% से नीचे आ गया है। इतना ही नहीं बल्कि महिलाओं को अधिकांश नौकरियों से निकाल दिया गया है। सिविल सेवा, ग़ैर सरकारी संगठनों, मीडिया और सैलून आदि क्षेत्रों में महिलाओं का काम पूरी तरह बंद है। महिलाओं को चिकित्सा शिक्षा से भी वंचित रखा गया है, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई हैं। अफ़ग़ानिस्तान में पहले से ही मातृ मृत्यु दर दुनिया में सबसे अधिक थी और अब यह और बढ़ गई है।
तालिबान का महिला विरोधी चरित्र दिल्ली में भी पिछले दिनों उस समय देखने को मिला जबकि तालिबान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी की पहली प्रेस कॉंफ्रेंस में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गयी। परन्तु विश्वव्यापी आलोचना के बाद दूसरे दिन महिला पत्रकारों को प्रवेश की अनुमति देनी पड़ी। आतंकवादी व अतिवादी विचार के लोग चाहे वे अफ़ग़ानिस्तान में हों पाकिस्तान में या दुनिया के किसी भी देश में हों यह सभी मानवता के दुश्मन हैं। आश्चर्य इस बात का भी है कि वर्तमान भारत सरकार जिसके नेता स्वयं कभी तालिबानों को पानी पी कर कोसा करते थे वही आज इनका स्वागत करते व इनसे रिश्ते सुधारते नज़र आ रहे हैं ? और गोदी मीडिया इन नापाक रिश्तों के फ़ायदे गिनाता फिर रहा है ? जबकि वास्तव में तालिबान से सम्बन्ध बनाने का दूसरा अर्थ है घोर अतिवादी विचारधारा से समझौता।