विश्व शान्ति के लिए अहिंसा की प्रासंगिकता

शैलजा सिंह

2 अक्टूबर को हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153वी जयंती मनाने जा रहे हैं। गांधी जी ने अहिंसा को अपने जीवन में सर्वाधिक महत्व दिया । इसीलिए इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में हम सबके लिए जरूरी हो जाता है कि अहिंसा के अर्थ और महत्व को समझकर उसे अपने जीवन में उतारें। गांधीजी के अनुसार किसी भी व्यक्ति यहां तक कि अपने शत्रु को भी मन, वचन और कर्म से पीड़ा न पहुंचाना अहिंसा है । उन्होंने इस अहिंसा के मूल्य को स्वाधीनता संग्राम में चरितार्थ किया। उत्तर प्रदेश के चौरीचौरा नामक स्थान पर जब असहयोग आंदोलन हिंसक हो गया तो उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया।

कुछ लोग अहिंसा को कायरता और कमजोरी मानते हैं परंतु अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है, बल्कि गांधीजी के अनुसार क्षमा करना तो शक्तिशाली मनुष्य का गुण है । कमजोर मनुष्य तो हिंसा और प्रतिशोध की आग में जलता है और बदला लेता है। वास्तव में अहिंसा का अर्थ शक्तिहीनता नहीं है अपितु यह शक्ति के साथ ही शोभा देने वाला मूल्य है । राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी कहा है ,”क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है ,उसे नहीं जो शक्तिहीन विषहीन विनीत सरल है ।” भारत की अहिंसा की अवधारणा भी इसी पर आधारित है । यही वजह है कि 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण कर देश को परमाणु शक्ति संपन्न घोषित किया लेकिन इसी के साथ हमने पहले प्रयोग नहीं करने की नीति को भी अपनाया।

गांधी जी से पहले भारत में अहिंसा के विचार को महात्मा बुद्ध ने लोकप्रिय बनाया था ।उनके इस विचार ने कलिंग में भीषण नरसंहार के बाद सम्राट अशोक की आंखें खोल दीं।युद्ध के मैदान में भीषण रक्तपात और मौत का तांडव देखकर उनका हृदय परिवर्तित हो गया । उसके बाद उन्होंने कभी भी युद्ध न करने का संकल्प लिया। साथ ही अहिंसा के मूल्य को अपने शिलालेखों और दूतों के माध्यम से प्रचारित और प्रसारित भी किया। गांधीजी ने बीसवीं सदी में इसी अहिंसा के महत्व को भारत और विश्व के लोगों को समझाया था। लेकिन वैश्विक स्तर पर हथियारों पर घमंड करने वाले देशों ने इसका महत्व नहीं समझा । परिणामस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध में हिंसा की पराकाष्ठा हो गई ।

6 अगस्त और 9 अगस्त को मानवता के इतिहास में हिंसा का एक दिल दहला देने वाला रूप नज़र आया। सयुंक्त राज्यअमेरिका ने जापान के शहरों पर परमाणु बम से हमला किया। इन हमलों ने जापान में मौत का तांडव मचा दिया । आखिरकार जापान ने घुटने टेक दिए। तब इस देश ने अहिंसा के अर्थ और महत्व को समझा एवं अपने संविधान में शांति को विशेष महत्व दिया।

इस भीषण तांडव को देख लेने के बाद भी वैश्विक स्तर पर अहिंसा के वास्तविक महत्व को नहीं समझा गया है ।हाल ही में रूस और यूक्रेन के युद्ध में हजारों लोग हिंसा का शिकार हुए हैं। आतंकवादी संगठन हिंसा का सहारा लेकर अपने मंसूबे पूरे कर रहे हैं । अनेक देश अपने संकीर्ण हितों को पूरा करने के लिए उन्हें समर्थन दे रहे हैं । कई देश हिंसा- प्रति हिंसा की आग में जल रहे हैं। क्षुद्र स्वार्थों और अपने अहंकार की पूर्ति के लिए जीने वाले अहिंसा का महत्व् इतनी आसानी से नहीं समझेंगे।

इसके महत्व को समझने के लिए हमें उन माता-पिता के हृदय में झांकना होगा जिन्होंने हिंसा के कारण अपने बच्चों को खो दिया है । रूस- यूक्रेन युद्ध में भारत के एक विद्यार्थी की दुखद मौत हो गई थी। कोई उस परिवार से अहिंसा के महत्व को पूछे तो वह इसके वास्तविक महत्व को समझा सकता है । हिंसा ने ऐसे अनेक परिवारों को कभी न भरने वाले जख्म दिए हैं ।यही नहीं अहिंसा परिवार और समाज की भलाई के लिए भी बहुत जरूरी है । हम देखते हैं कि बदले की भावना, नफरत और माफ न कर पाने के कारण रिश्तो में तनाव आ जाता है, समाज में अशांति फैल जाती है। आजकल अकेलापन ,तनाव और अवसाद बढ़ने का एक बड़ा कारण यही है ।

ऐसे में सामंजस्य पूर्ण और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए अहिंसा एक अनुकरणीय मूल्य है । आज हम शांति की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं वह भी अहिंसा को अपनाने से ही आएगी । स्वयं को और दूसरों को माफ कर देने से आएगी। दलाई लामा जी ने भी इसी संदर्भ में कहा है, “जब तक हमारे भीतर शांति नहीं है ,बाहरी दुनिया में भी हमें शांति नहीं मिल सकती। “अतः विश्व और मानव जीवन में शांति और समृद्धि के लिए अहिंसा के मूल्य को अपनाना 21वीं सदी में और ज्यादा जरूरी हो गया है। अहिंसा के मूल्य को जीवन में आत्मसात करना ही अहिंसा के पुजारी बापू के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।