अक्षय ऊर्जा : भविष्य का विकल्प

शिशिर शुक्ला

जीवन एवं ऊर्जा का नितांत गहरा संबंध है। बिना ऊर्जा के जीवन की कल्पना करना भी असंभव है। जीवन के छोटे से बड़े सभी क्रियाकलापों बल्कि यदि सत्य कहा जाए तो संपूर्ण सृष्टि के संचालन हेतु ऊर्जा एक अनिवार्य घटक है। एक साधारण अर्थ में ऊर्जा से अभिप्राय कार्य करने की क्षमता से है। किंतु ऊर्जा एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है। यदि हम अपने प्रतिदिन की दिनचर्या पर दृष्टिपात करें तो हम यह पाते हैं कि ऊर्जा के विविध रूप यथा-ऊष्मा, प्रकाश, विद्युत, ध्वनि इत्यादि हमारी जीवनचर्या का एक आवश्यक अंग हैं। सत्य कहा जाए तो किसी देश के आर्थिक उन्नयन, विकास के स्तर एवं वहां के निवासियों के जीवन स्तर का सीधा संबंध उस राष्ट्र की ऊर्जा उपलब्धता से होता है। विश्व में आज विभिन्न क्षेत्रों में जो भी संभावनाएं अथवा चुनौतियां विद्यमान हैं, उन सभी का केंद्र बिंदु ऊर्जा ही है। भोजन, जल व आवास जैसी छोटी आवश्यकताओं से लेकर बड़े-बड़े उद्देश्य और लक्ष्य सभी ऊर्जा के परितः ही घूमते हैं। सभ्यता के क्रमिक विकास एवं मानव जीवन में प्रौद्योगिकी के बढ़ते दखल के कारण मानव की ऊर्जा आवश्यकता में भी आशातीत वृद्धि हुई है। विशेषत: विगत कुछ दशकों में जबकि जनसंख्या वृद्धि भी एक ज्वलंत समस्या के रूप में उभर कर आई है, ऊर्जा की आवश्यकता एवं उपलब्धता के बीच भारी असंतुलन उत्पन्न हो गया है। यद्यपि प्रकृति के द्वारा मानव को ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों के रूप में एक बड़ा भंडार उपलब्ध कराया गया, किंतु मानव ने स्वार्थपूर्ण मनोवृति के कारण प्रकृति का अनियंत्रित दोहन प्रारंभ कर दिया। इस कारण कोयला, लकड़ी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे ऊर्जा के साधन शनैः शनैः समाप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं। वे परंपरागत स्रोत जोकि प्रकृति के द्वारा लाखों वर्षों में निर्मित किए गए थे, औद्योगीकरण, शहरीकरण सभ्यता के आधुनिकीकरण एवं मानव के अविवेकपूर्ण क्रियाकलापों के कारण आने वाले कुछ ही समय में लुप्त हो जाएंगे। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि दिन-प्रतिदिन बढ़ रही ऊर्जा की आवश्यकता को आखिरकार कैसे पूरा किया जाएगा, क्योंकि ऊर्जा के परंपरागत साधनों का किसी भी प्रकार से नवीनीकरण नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त इन साधनों का एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि ये पर्यावरण को अपार क्षति पहुंचाते हैं जिस कारण पर्यावरण में भारी असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।

निश्चित रूप से हम सबको मुंह खोलकर खड़ी इस गंभीर समस्या का हल निकालना होगा। इस समस्या व चुनौती से ऊर्जा के गैरपरंपरागत स्रोतों का अधिकाधिक उपयोग करके ही निपटा जा सकता है। गैरपरंपरागत अथवा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत वे होते हैं जिनमें आने वाले समय में दूर-दूर तक भी कोई ह्रास होने की लेशमात्र भी संभावना नहीं है। इन साधनों से प्राप्त ऊर्जा को हम अक्षय ऊर्जा के नाम से जानते हैं। अक्षय ऊर्जा के विविध रूप हैं, जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जैव ईंधन, बायोगैस, समुद्री ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा इत्यादि। ऊर्जा के ये सभी भंडार सुरक्षित, पूरणीय, विश्वसनीय, स्वतः स्फूर्त एवं पर्यावरण हितैषी हैं। इन सभी में सौर ऊर्जा एक सर्वसुलभ एवं सरलता से उपयोग में लाए जाने योग्य साधन है। वर्तमान में व्यापक स्तर पर सौर ऊर्जा का प्रयोग किया जा रहा है। सौर ऊर्जा आधारित उपकरणों का दक्षता स्तर भी उच्च कोटि का होता है। सौर ऊर्जा एक ऐसा साधन है जिसका उपयोग प्रत्येक स्तर का व्यक्ति कर सकता है क्योंकि इसके उपयोग हेतु कोई बहुत बड़ी लागत की आवश्यकता नहीं पड़ती।

यदि भारत की बात की जाए तो यह नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में दिनोदिन प्रगति की ओर उन्मुख है। अक्षय ऊर्जा देश आकर्षण सूचकांक 2021 के अनुसार भारत विश्व में कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के क्षेत्र में चीन व अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है। नवंबर 2021 में भारत की कुल स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता 150 गीगावाट थी, जिसमें सर्वाधिक अंश सौर ऊर्जा का था। भारत ने वर्ष 2030 तक स्वयं को 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता हेतु प्रतिबद्ध किया है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के द्वारा 2030 तक कुल बिजली का 50% गैर जीवाश्म स्रोतों से उत्पादित करने का लक्ष्य रखा गया है। उल्लेखनीय है कि भारत गैरपारंपरिक ऊर्जा संसाधन मंत्रालय स्थापित करने वाला दुनिया का प्रथम देश है। 20 अक्टूबर 2006 को इस मंत्रालय का नाम परिवर्तित करके नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय रखा गया। अक्षय ऊर्जा स्रोतों में सौर, पवन एवं जल विद्युत सस्ते एवं पर्यावरण हितैषी स्रोत हैं। भारत में वर्ष भर उच्च सूर्यातप प्राप्त होने के कारण यहां सौर ऊर्जा के उपयोग हेतु अनुकूल दशाएं पाई जाती हैं। प्रचुर मात्रा में उपलब्धता के अतिरिक्त सौर ऊर्जा एक सुरक्षित एवं किफायती विकल्प है। सौर ऊर्जा पर आधारित अनुप्रयोगों ने भारत के गांव गांव व शहर शहर में लोगों को पर्यावरण अनुकूल ढंग से ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने एवं जीवन जीने में मदद की है। 30 नवंबर 2015 को स्थापित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का भारत एक सक्रिय सदस्य है। यह गठबंधन कर्क व मकर रेखाओं के मध्य स्थित 121 देशों का समूह है। दुनिया का पहला सौ प्रतिशत सौर ऊर्जा से संचालित हवाई अड्डा भारत के कोचीन (केरल) में है। 2020 में दुनिया के शीर्ष पांच बड़े सौर पार्कों में से तीन भारत में (राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश) स्थित हैं, जिनमें राजस्थान का भादला सोलर पार्क दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क है। सौर ऊर्जा की एक विशेषता यह है कि इसे बहुत आसानी से ऊर्जा के अन्य रूपों में रूपांतरित किया जा सकता है। सौर ऊर्जा के अतिरिक्त पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भारत एशिया में प्रथम स्थान पर है यद्यपि इसके उपयोग हेतु आदर्श दशाएं सर्वत्र उपलब्ध नहीं हैं। भारत में पवन ऊर्जा राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात व महाराष्ट्र तक ही सीमित है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र, धूप, बारिश एवं विशाल कृषि क्षमता के कारण भारत में बायोमास हेतु भी आदर्श दशाएं पाई जाती हैं। परमाणु ऊर्जा भारत में कोयला, जलविद्युत, सौर, पवन एवं गैस के बाद पांचवा प्रमुख ऊर्जास्रोत है।

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि बदलते समय के साथ ऊर्जा की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। हमें यदि सभ्यता के अस्तित्व को जीवित रखना है तो ऊर्जा संरक्षण एवं परंपरागत स्रोतों के विवेकपूर्ण उपयोग के साथ-साथ अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विकास की ओर हर हालत में ध्यान केंद्रित करना होगा। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में ऊर्जा विकास हेतु एक अपरिहार्य घटक है। भारत पर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न देश है। हमें आवश्यकता है, सिर्फ एक विवेकपूर्ण एवं दूरगामी ऊर्जा नीति को अमल में लाने की, ताकि भविष्य में ऊर्जा सुरक्षा पर कोई खतरा न उत्पन्न होने पाए।