ऋतुपर्ण दवे
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के मिशन सीक्रेट का खुलासा होने और रूस द्वारा युध्द कभी न जीत पाने की चुनौती से यूक्रेन संकट जल्द खत्म होता नहीं दिखता। तीसरे विश्व युध्द की ओर बढ़ती लड़ाई अब और बड़ी होगी। कभी जिस युध्द को हफ्ते-पन्द्रह दिन में खत्म होने की बातें थी उसे अब साल पूरा रहा है। ऊपर से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का रात के अंधेरे में पहले हवाई सफर फिर 10 घण्टे की उबाऊ ट्रेन यात्रा कर यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचना ही दुनिया के लिए हैरानी भरा है। बिना सूचना, चुनिंदा भरोसेमंद पत्रकारों को साथ लेकर गोपनीय तौर पर रात में निकले बाइडेन की जोखिम भरी यात्रा अब दुनिया के लिए बहुत बड़ी जोखिम की शुरुआत लग रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति का उस जगह होना जहां कभी भी रूस मिसाइलों का अटैक हो सकता है। उससे भी बड़ा यह कि यूक्रेनी हवाई आक्रमण का न तो अमेरिकी फौज के पास नियंत्रण है और न ही खुद यूक्रेन के पास, बड़ा इशारा है। इन हालातों में एक ताकतवर देश के राष्ट्रपति का युध्द विभीषिका से गुजर रहे देश की राजधानी यूं चुपचाप पहुंचना बड़े संकेतों से कम नहीं है। बाइडेन का यह बयान भी बेहद मायने रखता है जिसमें वो लोकतंत्र, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की दुहाई खातिर अपनी अटूट प्रतिबद्धता जताने कीव पहुंचना बताते हैं।
बाइडेन के जाते ही सभी की निगाहें रूस पर आ टिकीं कि पुतिन का क्या जवाब होगा? बिना देरी किए पुतिन ने भी मंगलवार को अमेरिका को काफी भला बुरा कहा। यूक्रेन में भी सीरिया-ईराक जैसा खेल कराने की बात कहते हुए पश्चिमी देशों का रूस की संस्कृति पर हमला बताया। वहीं बाइडेन लौटते हुए पोलैण्ड से ही रूस पर जुबानी जंग तेज करते हुए कहने से नहीं चूके कि हर हालत में हम यूक्रेन को साथ देंगे। उन्होंने कहा कि नाटो देश न केवल एकजुट हैं बल्कि पुतिन की हरकतों से फिनलैंड और स्वीडन को नाटों में शामिल होने की प्रेरणा मिली। यूक्रेन को रूस ने न केवल कमजोर समझा बल्कि यह झूठी धारणा भी बना ली कि पश्चिमी देश एकजुट नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साझा बयान से युध्द को एक नए अंजाम पर पहुंचाने की संभावनाओं को बल मिलता है। अमेरिका-यूक्रेन इसे रिश्तों का ऐतिहासिक पड़ाव भी बताते हैं और नतीजा युध्द के मैदान पर दिखाने का दम भी भरते हैं। बाइडेन जोखिम भरी यात्रा पूरी होने के बाद दुनिया को पता चलना बहुत बड़ी सामरिक रणनीती और युध्द और भड़काने जैसा ही है। भले ही इस औचक दौरे से रूस चिढ़े, चीन की आँखें तने और प्रतिक्रियाएं भी दिखे लेकिन तीसरे विश्व युध्द सरीखे बड़े युध्द से इंकार की गुंजाइश नहीं दिखती।
रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का कहना है कि लगातार नाजी खतरों के चलते वहां के लोगों के खातिर यूक्रेन में खास कार्रवाई कर रहा है। बड़ी चतुराई से भारत का नाम लेकर पुतिन ने दोस्ती का बिना कहे दम भी भरा बल्कि ईरान, चीन, पाकिस्तान जैसे देशों से आर्थिक संबंधो बढ़ाने के लिए नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर विकसित कर हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र पर जोर दिया। पुतिन ने अमरीका और सहयोगियों पर बुनियादी समझौते से हटने और झूठे बयानों का आरोप लगाते हुए पश्चिम को ही युध्द अपराधी बताते हुए खुद की सेना को युध्द रोकने के खातिर झोंकना बता कर साफ कर दिया कि जल्द युध्द की समाप्ति अब असंभव है। पुतिन ने परमाणु संधि को भी निलंबित करने की घोषणा कर दो टूक जवाब दिया कि यदि अमरीका परमाणु हथियारों को परीक्षण करेगा तो वह चुप नहीं बैठेगा। इसके बाद अमेरिका-रूस के बीच 2010 में हुई संधि जो 2021 में 5 साल और बढ़ाई गई थी बेमायने हो गई। मतलब साफ है कि घातक और नए दौर के उन्नत तथा दूर तक मार करने वाले हथियारों के उपयोग से युध्द नए मोड़ पर होगा। बाइडेन का बतौर राष्ट्रपति यूक्रेन का यह भले ही पहला और चौंकाने वाला दौरा हो लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि उप-राष्ट्रपति रहते हुए पहले भी 6 बार यूक्रेन हो आए हैं। अब युध्द जल्द रुकने वाला नहीं और इससे भी इंकार नहीं कि कब तीसरे विश्व युध्द में बदल जाए? अब सबकी निगाहें चीन पर हैं जो देर-सबेर खुलकर रूस के साथ दिखेगा। ऐसे में भारत, पाकिस्तान और दूसरे एशियाई देशों पर दुनिया की निगाहें हैं।
आँकड़े बड़े नुकसान का इशारा कर रहे हैं। साल 2022 के अंत तक दोनों तरफ से 1.90 लाख से ज्यादा सैनिकों की मौतें और लगभग 1 लाख से ज्यादा का घायल होना तथा करीब 10 हजार स्थानीय नागरिकों के मारे जाने की भी सुर्खियां रहीं। साथ ही 1.5 करोड़ यूक्रेनी लोगों का जिन्दगी की जंग खातिर जद्दोजेहद, लाखों का प्रभावित होना तथा पलायन करना और करीब 75 लाख से अधिक का मजबूरन विस्थापित होना बड़ी हकीकत है। यूक्रेन के कई शहर और करीब 18 प्रतिशत जमीन पर रूसी कब्जे के बीच बाइडेन की कीव में मौजूदगी से कोई शांति की उम्मीद करना पूरी तरह से बेमानी है।
ये युध्द भले ही दो देशों के बीच वर्चस्व के लिए हो रहा है लेकिन भुगतना तो पूरी दुनिया को पड़ रहा है। इसका असर भी दिखने लगा है। भोजन और तेल की कीमतों में पूरी दुनिया में दो देशों की लड़ाई से जबरदस्त उछाल आया। दो महीने पुराने आंकड़ों को देखें तो ये समझ आता है कि पूरी दुनिया करीब 4 से 5 ट्रिलियन डॉलर यानी 340 से 350 लाख करोड़ रुपए की चोट खा चुकी है। अनुमानतः खुद यूक्रेन के 8 लाख करोड़ तो रूस के 8 हजार अरब रुपए फुंक चुके हैं। वहीं अमेरिका और यूरोपियन देश भी इसमें तकरीबन 12520 अरब रुपए स्वाहा कर चुके हैं। सबसे बड़ी मार आम आदमी पर पड़ी जिसके लिए भोजन और ईंधन जुटाना बहुत मंहगा हो गया। बेरोजगारी, बाधित मांग-आपूर्ति श्रंखला और स्वास्थ्य को शामिल कर लें तो आंकड़ा 24 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। युध्द से हुई उन मौत जोड़ दें जिनकी औसत उम्र 30 साल थी और जो 30 तक अपने-अपने देश की अर्थव्यवस्था में मदद करते तो आंकड़ा 144 लाख करोड़ रुपए के पार जा पहुंचता है यानी कुल मिलाकर पूरी दुनिया में युध्द से नुकसान ही नुकसान दिखा। लेकिन बड़ी हकीकत यही कि फिर भी दुनिया तीसरे विश्वयुध्द के मुहाने पर है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं।)