सीता राम शर्मा ‘चेतन’
जिस घर, समाज या राष्ट्र में समर्थ, शक्तिशाली, बुद्धिमान अभिभावक या अभिभावकीय संस्था ना हो, वहां सुख, शांति, सुरक्षा और समृद्धि का अभाव तथा अव्यवस्था, अत्याचार का प्रभाव होना स्वाभाविक है । ठीक इसी तरह शांतिपूर्ण, सुरक्षित और शोषण मुक्त विश्व के लिए भी एक समर्थ, शक्तिशाली और पूर्ण प्रभावी वैश्विक अभिभावकीय व्यवस्था का होना जरूरी है । यह घोर आश्चर्य का विषय है कि कभी जंगलों में पेड़-पौधों के फल फूल खाकर और उनके पत्तों से तन ढककर जीवन यापन करने वाली असभ्य मनुष्य जाति अपने लिए सभ्यता, संस्कार, शिक्षा और अनेक अत्याधुनिक प्राकृतिक तथा भौतिक संसाधनों का विकास करने के बावजूद आज तक एक सर्वमान्य, श्रेष्ठ, शक्तिशाली और सक्षम अभिभावकीय व्यवस्था नहीं बना पाई है ! ऐसी सर्वमान्य, श्रेष्ठ और सक्षम व्यवस्था, जो उसकी मनुष्यता, मानवीय गरिमा और संसार की निरंतर पथप्रदर्शक बने, उसका विकास और विस्तार करे तथा उस उत्कृष्ट विकास की नियंत्रक, रक्षक भी सिद्ध हो ।
वैश्विक मानवीय दूरदर्शिता और आवश्यक उत्कृष्ट सामूहिक तथा अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के अभाव के कारण यह त्रासद स्थिति आज भी बनी हुई है । वर्तमान वैश्विक अव्यवस्था, अनाचार, युद्ध संकट और निरंतर अत्यंत जटिल और घातक होती परिस्थितियों का मूल कारण भी एक समर्थ शक्तिशाली वैश्विक व्यवस्था का नहीं होना ही है । हालांकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद 15 जनवरी 1920 को वैश्विक शांति और युद्ध मुक्त विश्व के लिए लीग ऑफ नेशन अर्थात राष्ट्र संघ नामक एक वैश्विक संगठन बनाया गया था, जो असफल सिद्ध हुआ और वह दृतिय विश्व युद्ध रोकने में नाकाम सिद्ध हुआ । दृतिय विश्व युद्ध के बाद 1945 में एक बार फिर वैश्विक शांति, सुरक्षा और समृद्धि के व्यापक ध्येय और लक्ष्य के साथ कुछ देशों ने वैश्विक अभिभावकीय संगठन के रूप में एक वैश्विक व्यवस्था का संचालन और नियंत्रण करने वाले वैश्विक संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण अवश्य किया, जिसे आज हम संयुक्त राष्ट्र के नाम से जानते हैं पर दुर्भाग्य से वह भी अब तक अंतरराष्ट्रीय युद्धों को रोकने और वैश्विक शांति व्यवस्था को बनाए रखने में असफल ही सिद्ध हुआ है ।
अब सवाल यह उठता है कि वैश्विक शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए किसी सशक्त और समर्थ वैश्विक संगठन के अभाव में आज रुस-युक्रेन युद्ध, जिसे रुस-पश्चिम युद्ध या रुस-नाटो युद्ध भी कह सकते हैं, से विश्व एक बार फिर जिस संभावित तृतीय विश्वयुद्ध की आशंकाओं से घिरा और भरा हुआ है, ऐसी विषम वैश्विक परिस्थितियों में इस वर्तमान वैश्विक संकट के समाधान का मार्ग क्या है ? गौरतलब है कि इस युद्ध के प्रारंभ का मूल कारण दो घोर प्रतिद्वंदी और सर्वाधिक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों के बीच की आपसी कटुता, शत्रुता से उत्पन्न आशंकाएं और घोर अंध प्रतिद्वंदिता है । सच्चाई यह भी है कि यदि समय रहते इस युद्ध को रोकने के पर्याप्त, सशक्त और सफल कूटनीतिक प्रयास नहीं हुए, तो निकट भविष्य में ही तृतीय विश्वयुद्ध जैसे गंभीर संकट का सामना वैश्विक मानवीय समुदाय को करना पड़ेगा । बहुत संक्षिप्त में इस वर्तमान वैश्विक संकट के समाधान की दिशा में वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जाए तो सबसे पहली बात और समस्या यह नजर आती है कि रुस युक्रेन युद्ध वास्तव में दो राष्ट्रों का युद्ध नहीं है । बहुत स्पष्टता से कहा जा सकता है कि यह अप्रत्यक्ष रूप से बहुपक्षीय अथवा बहुदेशीय युद्ध है, जिसे रोकने के लिए दो नहीं कई देशों को पूरी ईमानदारी दिखाते हुए शांति के लिए तैयार होना पड़ेगा और इसके लिए जरुरत होगी एक वैश्विक जनमत, दबाव और प्रभाव की । जैसा कि कुछ देश इस युद्ध को लेकर लगातार भारत के हस्तक्षेप और अगुवाई की बात कह रहे हैं, यह महज उनकी कूटनीतिक चतुराई भर है, ऐसा अब संभव होता दिखाई नहीं देता क्योंकि इस युद्ध का वास्तविक खलनायक अमेरिका है, जिसका नेतृत्व इस युद्ध से अपने कई राष्ट्रीय व्यापारिक और दूरगामी सामरिक हित साधने के साथ व्यक्तिगत हित भी साधने को आतुर है । हालांकि उन हितों का सधना कदापि संभव नहीं, पर यह लगभग निश्चित दिखाई देता है कि यदि वह इस युद्ध की अपनी वर्तमान कूटनीति से बाज नहीं आया तो उसकी असफलता के आगामी कालखंड में विश्व को एक और महायुद्ध की त्रासदी झेलनी होगी, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान वैश्विक मानवता के साथ खुद उसे और युक्रेन को ही होगा । संभावना यह भी है कि यदि विश्व युद्ध के हालात बने तो उसके कुछ सहयोगी देश भी भारत की तरह अपनी जनता और सेना के दबाव में तटस्थ की भूमिका में ही आ जाएंगे । मुझे लगता है वैश्विक जनमानस को और वैश्विक जनमानस के तमाम प्रमुख धर्म गुरुओं को युद्ध होने से पहले ही संभावित युद्ध के कारक देशों और उनकी सत्ता के विरुद्ध एक शांतिपूर्ण आंदोलन छेड़ देना चाहिए । यह इस संकट का सबसे सरल, सशक्त और सफल समाधान होगा । यदि त्वरित ऐसा नहीं हुआ तो इस युद्ध को रोकने और ज्यादा विस्फोटक होने से पहले समाधान का दूसरा और आखिरी मार्ग त्वरित संयुक्त राष्ट्र के निरपेक्ष रुप से ज्यादा सशक्त और सक्रिय होने का है या फिर एक वैकल्पिक नये वैश्विक संगठन के निर्माण की विवशता का है । जिसकी अगुवाई भारत को करनी चाहिए । भारत को वैश्विक मानवता की रक्षा के लिए वैश्विक समुदाय से यह आवाह्न करना चाहिए कि वह युद्ध के ज्यादा विस्फोटक होने से पहले युद्ध को रोकने के ऐसे सरल और सशक्त समाधान का मार्ग खोजे जिसमें सिर्फ और सिर्फ युद्ध के दोनों वास्तविक और प्रत्यक्ष देशों की चिंताओं और हितों का ध्यान रखा जाए और जिसमें किसी भी तीसरे पक्ष के द्वारा उकसावे की कोई कार्रवाई ना हो । यदि युद्ध को बढ़ने और ज्यादा विस्फोटक होने से रोकना है तो फिलहाल उचित, न्यायसंगत, सर्वमान्य और सर्वोच्च सफल समाधान का यही मार्ग हो सकता है ।
गौरतलब है कि पिछले दिनों रुस-युक्रेन युद्ध पर संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग में भी भारत ने तटस्थ रहते हुए अपनी स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र में संयुक्त राष्ट्र पर बहुत स्पष्ट शब्दों में सवाल उठाए थे कि – क्या हम दोनों पक्षों के लिए जरूरी समाधान के करीब हैं ? क्या कोई ऐसी प्रक्रिया कभी एक विश्वसनीय और सार्थक समाधान की ओर ले जाती है जिसमें दोनों पक्षों में से कोई भी शामिल नहीं है ? क्या संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और सुरक्षा परिषद वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए मौजूदा चुनौतियों का सामना करने में विफल नहीं हो गई है ? स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र के पास भारत के इन सवालों का कोई जवाब नहीं है और निकट भविष्य में वह इन सवालों का जवाब ढूंढ पाएगा, यह संभव भी दिखाई नहीं देता । इसलिए बेहतर होगा कि भारत और विश्व समुदाय इस युद्ध संकट से विश्व को बचाने का तेज और हर संभव सफल प्रयास करे ।