देवेंद जैन
नई दिल्ली : आज व्यापार की हालत यह हो गई है कि व्यापारी के साथ-साथ उसकी आत्मा भी थक सी गई है।। इस थकान का कारण हमारी हवस प्रवृति है या नहीं कहना मुश्किल है।।
सबसे आगे निकलने की होड़,स्टेटस बनाए रखने की मजबूरी सब कुछ करने की तरफ धकेल रही है।।
शायद 90% व्यापारी हंसना भूल चुका है,डांस तो पता नहीं कितनी सदियों पहले किया होगा, साईकिल कब चलाई होगी याद भी नहीं, बच्चों के साथ या अपने दोस्तों के साथ हम कब खेले थे पता नहीं, बस इतना पता है किससे पैसे लेने हैं व किसको देने हैं।।
कितने पैसे कमाने हैं और पैसे कमाने के बाद क्या,यह हमें नहीं पता……..
भोग की व्यथा में जीवंतता समाप्त कर दी हमने।।
सिवाए अपना पेट भरने के कुछ समझ नहीं आता।।
श्मशान घाट जाने की औपचारिकता से पहले दुकान खोलने की चिंता अधिक रहने लगती है और वह भी यह मूल्यांकन करने के पश्चात की यदि हम न गए तो हमारे कौन आएगा।।
ज्ञान व समाधान सबसे पास है
परन्तु सामाजिक ताने-बाने में बहे जाने की लत छूटती नहीं।।