प्रो. नीलम महाजन सिंह
यूँ ही इतनी जल्दी क्यों चले गए संजय? बाइबिल: भजन 73:26 “मेरा शरीर व मेरा हृदय नष्ट हो सकता है, परन्तु परमेश्वर मेरे हृदय और मेरे हर भाग की शक्ति में सदैव रहेगा।” यूहन्ना 11:25-26 यीशु ने उससे कहा ,“पुनरुत्थान व जीवन; मैं ही हूं। जो मुझ पर विश्वास करता है, वह चाहे मर भी जाए, तो भी जीवित रहेगा; और जो कोई मुझ पर विश्वास करके जीवित रहेगा, वह अनन्तकाल तक नहीं मरेगा”। क्या आप इस पर विश्वास करते हैं”? अलविदा प्रिय संजय मैसी! जब मैं पहली बार संजय से मिली तो मैंने एक युवा को मुस्कुराते हुए, माथे पर कुछ बाल गिरते हुए, मेरा स्वागत करने के लिए आते देखा। “हैलो मैडम, मैं संजय मैसी हूँ।” हमने कुछ देर बातें कीं। उन्होंने मुझे एक कप कॉफ़ी भी ऑफर की। संजय ने मुझसे कहा कि वे मुझे काफी समय से जानते हैं। मैंने उनसे पूछा “कैसे”? “मैडम क्योंकि मैं मिस्टर पॉल का दामाद हूँ”! ओह मिस्टर पॉल; सेंट स्टीफ़नज़ कॉलेज के लाइब्रेरियन; जब मैं 1980 के दशक में वहां पढ़ रही थी? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “हां जी, क्योंकि मिस्टर पॉल आपको हमेशा याद करते हैं।” कहीं न कहीं संजय ने मेरे साथ एक भावनात्मक रिश्ता जोड़ा लीया। सेंट स्टीफनज़ कॉलेज से निकलने के तीन दशक बाद भी मेरे मन में ‘ऑक्सफोर्ड के जेसुइट्स मिशन कॉलेज’ की यादें ताज़ा हैं। मैं लाइब्रेरियन मिस्टर पॉल को ठीक वैसे ही याद करती हूँ, जैसे मैं रॉबर्ट साहब को याद करती हूँ ! इतनी अच्छी तरह कि कोई भी स्टेफ़नीयन उन्हें भूल नहीं सकता। संजय ने मेरी भीनी-भीनी प्रशंसा की! हालाँकि, मुझे आध्यात्मिक व ‘बाइबल’ पर हमारी चर्चाएँ बहुत पसंद आईं। वे उदारवादी ईसाई थे। संजय मैसी, ‘दी फॉरेन कॉरेस्पोंडेंट्स क्लब ऑफ साउथ एशिया’, (एफ.सी.सी.- एस.ए.) के प्रबंधक थे, तथा क्लब के सदस्यों के लिए वे अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहते थे। संजय; युवा महत्वाकांक्षी थे! वे दूसरों को खुश करने के लिए उत्तम चीज़ें करना चाहते थे। संजय अपने परिवार व बच्चों से बहुत प्यार करते थे व चाहते थे कि वे उन पर गर्व करें। मैंने ‘दी फॉरेन कॉरेस्पोंडेंट्स क्लब ऑफ साउथ-एशिया, नई दिल्ली में, 2020 में; अनुभवी पत्रकारों के लिए ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड फंक्शन’ का आयोजन किया था। वे मददगार थे और मुझसे भरपूर पैसे भी लिये ! यह कोविड-19 के आसपास था, जो पूरी दुनिया में जंगली आग की तरह फैल गया व भारत की राजधानी, नई दिल्ली को भी अपनी चपेट में ले लिया। मुझे याद है, जब मुझे कोरोना हुआ व दिल का दौरा पड़ा तो वे मेरी सेहत को लेकर बहुत चिंतित थे। मैं नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थी, ‘मृत्यु शय्या पर पड़ी हुई थी’। संजय मैसी ने मुझे शीघ्र स्वस्थ होने व प्रार्थनाओं के संदेश भेजे! निश्चित रूप से मैं काफी हद तक ठीक हो गयी। मैंने संजय को धन्यवाद के संदेश भेजे। उन्होंने मुझे फोन कर के बताया कि वे कितना चिंतित है, “मैम, किसी की चिंता मत करो। आपने बहुत कुछ किया है।आपको किसी को कुछ भी साबित करने की ज़रूरत नहीं है। बस अपना ख़याल रखें, स्वस्थ रहें व खुश रहें।” संजय एक छोटे भाई व दोस्त की तरह थे। मैं कहीं न कहीं संजय मैसी को लेकर दिल से बहुत चिंतित थी। जब उन्हें ‘सदस्य: दिल्ली अल्प संख्यक आयोग’ नियुक्त किया गया तो वे बहुत खुश हुए। वह एक मासिक पत्रिका निकाल रहे थे। उनकी इच्छा थी कि वे किसी न किसी तरह, मीडिया से जुड़े रहें। वह विनम्र, बुद्धिमान, मिलनसार थे। अपनी पत्नी, बच्चों व दोस्तों से प्यार करने वाले: संजय।आख़िरी बार उन्होंने मुझे बताया कि वे अपने परिवार के साथ गोवा गये थे। मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि संजय इस तरह अचानक दुनिया को छोड़ देंगे! मैंने उनसे 20. 01. 2024 को लगभग 20 मिनट तक फोन पर बात की। संजय ने गर्व से मुझे बताया कि वे प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो में समाचार सम्मेलनों को कवर करने के लिए जाते हैं। आखिरी बार उन्होंने मुझे बताया कि वे बांग्लादेश चुनावों को कवर करने के लिए भारत सरकार के आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल की यात्रा कर रहे थे। किसी भी संस्थान की राजनीति उसकी जीवंतता को खत्म कर सकती है व वहां काम करने वाले लोगों को गहरी चोट पहुंचा सकती है। दी फॉरेन कॉरेस्पोंडेंट्स क्लब छोड़ने के आखिरी दिन, संजय बगीचे में मेरे पास आये व कहा, “मैम, मैं आपको अलविदा कहने आया हूँ ! क्योंकि मैं आज से फॉरेन कॉरेस्पॉन्डेंट्स क्लब छोड़ रहा हूँ”। मैं बहुत परेशान थी कि यह अचानक हुआ घटनाक्रम क्या था? उन्होंने मुझे बताया कि एक सदस्य ने उन्हें जापान के ‘जीजी प्रेस’ में नौकरी की पेशकश की है और उन्हें ‘दक्षिण – एशिया संवाददाता’ के रूप में नियुक्त किया गया है। “मैं भी अब पत्रकार हूँ मैडम”! मैं संजय मैसी के लिए खुश थी लेकिन दु:खी भी कि उनका मुस्कराता चेहरा आस – पास नहीं रहेगा! कभी – कभी किसी खास मुद्दे या विषय पर संजय मुझसे सलाह लेते थे। “मैम, क्या आप मुझे कुछ बिंदु दे सकती हैं? मुझे आपसे कुछ संदर्भ चाहिए, जिनके साक्षात्कार मैं अपनी स्टोरी मेें शामिल कर सकूं”। उनकी आवाज़ आज भी मेरे कानों में गूंज रही है। हाल ही में, मैं कुछ चीज़ों को लेकर नाराज़ व परेशान थी। वे हमेशा मुझसे कहते थे, “मैम, बस नज़र अंदाज करो। ये चीजें व लोग इसके लायक नहीं हैं। बस उन्हें माफ कर दो!” संजय ने कई श्रमिकों व समाज के वंचित वर्गों को सशक्त बनाया, जो अब अपने पैरों पर खड़े हैं। वे मुझे बताते थे कि कैसे वे कटलरी, क्रिस्टल ग्लास, फर्नीचर व रसोई के लिए आवश्यक सामान लेने के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते थे। मैं विशेष रूप से एफ.सी.सी. के बगीचे की शौकीन हूं, जहां कारनेशन, गुलाब, डहलिया, बोगेनविलिया आदि के साथ सर्दियों के फूल खिलते हैं। प्रकृति के प्रति मेरे प्रेम ने मुझे इन खूबसूरत फूलों की कुछ तस्वीरें लेने के लिए मज़बूर किया; हमारे माली सुनील कुमार की कड़ी मेहनत के कारण! मैं संजय को वे तस्वीरें भेजती थी। मुझे क्या पता था संजय कि तुम चले जाओगे, इतनी अचानक, इतनी जल्दी! पिछले कुछ दिनों से लेकर आज तक मैंने संजय को कई बार फ़ोन किये थे; जो अनुत्तरित रह गये। मेरे मन में संजय मैसी के बारे में एक असहज अंतर्ज्ञान था! मैंने उन्हें संदेश भी भेजे, “संजय कृपा मुझे फोन करें। यह अत्यावश्यक है”; व कोई उत्तर नहीं मिला? मैं सोच रही थी कि संजय ने पहले कभी ऐसा तो नहीं किया? आज 25.01.2024, भारत के गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले, जब मैं दवा के तहत सो रही थी, तब मुझे संजय के नंबर से 5 ‘मिस्ड कॉल’ आईं। एक मित्र से बात करते समय अचानक व्हाट्सएप पर संजय मैसी के दु:खद निधन का संदेश आया। मेरे हाथ ठंडे हो गये! मैंने यह जानने के लिए उसी नंबर पर दोबारा कॉल किया कि यह क्या हो रहा है? संजय की बहन ने फोन उठाया और फूट-फूट कर रोते हुए कहा, “मैम संजय अब हमारे बीच नहीं रहे। वह आपसे सच में प्यार करते थे और आपके लिए चिंताग्रस्त भी थे। उसने हमें आपके बारे में सब कुछ बताया था”! मेरा हृदय दुःखी हो गया व मैं व्याकुल हो गयी। मैंने तुरंत अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष, पूर्व अध्यक्ष मुनीश गुप्ता, विनोद शर्मा, प्रबंधक एफ.सी.सी. व एफ.सी.सी. के अन्य नियमित सदस्यों को संजय मैसी के दु:खद निधन के बारे में सूचित किया। संजय ने कई दिलों को छू लिया था, क्योंकि वे लंबे समय से आतिथ्य व्यवसाय में थे। वह हमारी पार्टियों की व्यवस्था करते थे, दिवाली, क्रिसमस या नए साल की पार्टी या सदस्यों द्वारा आयोजित किसी विशेष कार्यक्रम जैसे अवसरों में वे विशेष रुचि लेते थे। मुझे क्या पता था संजय, कि तुम भगवान के कमल हाथों में चले गए हो व वे तुम्हें अपनी दिव्य सुरक्षा में रखेंगें! आपने हमारी आंखों में आंसू ला दिए। आपने मुझे जो प्यार, सम्मान व स्नेह दिया, उसे मैं कभी नहीं भूल सकती। आपने हमेशा मुझे आगे बढ़ने और मुझे आत्मीय चोट पहुंचाने वालों को गंभीरता से न लेने के लिए प्रोत्साहित किया। जब मैं आपको अंतिम विदाई दे रही हूँ, तो मैं अपनी आंखों से, गालों पर बहते आंसुओं को नहीं रोक पी रही। हम सब तुम्हें याद करेंगेें संजय। आपकी पत्नी, बच्चों, परिवार, प्रबंधन, सदस्यों, एफ.सी.सी. व जीजी मिडिया; जापानी कंपनी, जहां आपने काम किया, के कार्यकर्ताओं के प्रति मेरी प्रार्थना व गहरी संवेदना। भगवान आप जैसे अच्छे, नेक दिलों को इतनी जल्दी क्यों छीन लेते है? क्योंकि भगवान को भी अच्छे लोगों की ज़रूरत है ना? मुझे ऐसा लगता है।
जहाँ भी हो, ध्रुव तारे के समान हम सब को निहारते रहना! फ़िर मिलेंगे प्रिय संजय। ओम ? शांति।