बकरा, रैली ओर शराब के सहारे गांव की सरपंची।

नरेंद्र तिवारी

मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का प्रचार अभियान चल रहा हैं। इस प्रचार अभियान में उम्मीदवारों द्वारा मतदाताओं को वोट देने की अपील तो की जा रहीं है। किन्तु आदिवासी अंचलों यह अपील बिना रैली, बकरा ओर शराब के अधूरी मानी जाती हैं। पंचायत चुनाव में खासतौर पर सरपंच पद के चुनाव में ग्राम पंचायत के सभी उम्मीदवार रैली निकलतें है, इस रैली में गांव वालों को शामिल करने और नचवाले के लिए शराब पिलवाते है, शराब पीकर ही नाचने वालों के पैर भी उठते है। रैली की समाप्ति पर बकरें काटें जातें है। निमाड़ के आदिवासी अंचल में चुनाव में यह अनिवार्य प्रक्रिया हो गयी है। प्रचार अभियान की शुरुवात से सरपंच चुनाव लड़ने वाले के घर में भीड़भाड़ होने लगती हैं प्रतिदिन प्रचार के बाद चाय, ठंडा, सेव परमल का दौर चलता है। कुल मिलाकर गांव के मुखिया बनने के लिए 10 लाख से 25 लाख तक खर्च करने की व्यवस्था आपके पास होना आवश्यक हैं। सरपंची का ख्वाब पाले अनेकों उम्मीदवार उधार लेकर चुनाव लड़ रहे है। निमाड़ के आदिवासी अंचलो में पंचायत चुनाव की दीवानगी सर चढ़ कर बोल रहीं है। यह दीवानगी सोश्यल मीडिया पर बेनर पोस्टर ओर वीडियो के माध्यम से तो देखी ही जा रही है। गांव-गांव चुनावी उत्सव में मदमस्त नजर आ रहें हैं। इन गांवों में सरपंच पद सहित जनपद ओर जिला जनपद प्रतिनिधियों की रैली निकल रहीं है। इन रैलियों में गांव के लोग बड़ी संख्या में शामिल होतें है। रैली में डीजे पर बज रहें हैं, चुनावी गानें जो आदिवासी बोली में होतें है। ग्रामीणों को लय-ताल के साथ झूमते देखा जा सकता हैं। रैली में नाचने के लिए सरपंच पद के उम्मीदवारों द्वारा शराब का प्रबंध किया जाता हैं। रैली की समाप्ति के बाद बकरें काटें जाते हैं। गांव की सरपंची के लिए भाग्य आजमा रहें प्रत्येक उम्मीदवार रैली बकरा ओर शराब का प्रबंध करता हैं। खास बात यह हैं कि गांव के लोग याने की मतदाता सभी उम्मीदवारों की रैली में शामिल होतें है और बकरें की पार्टी में भी शामिल होतें है। सरपंची की फार्म भराई के बाद से यह प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं और चुनाव की तारीख के एक दिन पूर्व तक जारी रहती है। सरपंची का सपना पाले सभी उम्मीदवार इन प्रबंधों पर लाखों रुपये खर्च करतें है। कुल मिलाकर गांव में सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए 5 लाख से 25 लाख ओर कहीं-कहीं तो इससे भी अधिक का प्रबंध करना होता है। सरपंची की दीवानगी ऐसी की इस खर्च का प्रबंध उधार लेकर या खेती की जमीन बेचकर भी की जाती हैं। गांव में एक बात बेहद अच्छी देखने को मिलती है वह यह कि बेनर-पोस्टर नकली मतपत्र हर उम्मीदवार दीवारों पर चिपकाता है वह अपने विरोधी उम्मीदवार के घर भी चिपकाता है। चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार के घर सभी के बैनर पोस्टर चिपके होते है इसे लेकर ग्रामीणजन काफी प्रजातांत्रिक नजर आतें हैं। पंचायत चुनाव में रिश्ते भी दांव पर लगतें है। एक ही परिवार के लोग चुनाव लड़ते हैं और यह स्थाई दुश्मनी का कारण भी बन जाता हैं। पंचायतों के चुनाव मे सबसे ज्यादा जुनून सरपंच बनने का रहता है। इसको लेकर हर गांव में चार-पांच या कहीं कहीं 8-10 उम्मीदवार भी भाग्य आजमाते हैं। सेंधवा जनपद की धनोरा ग्राम पंचायत में 9 उम्मीदवार सरपंच पद के चुनाव में भाग ले रहे हैं। इनमें से 7 उम्मीदवार एक ही परिवार के हैं। इसीप्रकार ग्राम पंचायत मालवण में काका भतीजे के मध्य सरपंची का चुनाव हैं। यंहा विगत दो तीन चुनावों से काका-भतीजे में आमने-सामने की टक्कर होती आ रहीं है। पंचायत चुनाव से तार-तार होतें रिश्तों का उदाहरण ग्राम जनपद की ग्राम पंचायत आमझिरी भी है यहां एक ही परिवार के मध्य पिछले कई चुनावों से आमना-सामना होता आ रहा है। पंचायत चुनाव इन परिवारों की स्थाई दुश्मनी का कारण तक बन गयी है। इस बार भी परिवारों के मध्य चुनावी रण जारी है। ग्राम पंचायतों के चुनाव जहां रिश्तों में दरार पैदा कर रहें है तो कुछ किस्से पुरानी दुश्मनी को भुलाने के भी सुनाई दिए हैं। ग्राम किरचाली में एक दूसरे के सामने चुनाव लड़ने वाले अब साथ हो गए हैं। ग्राम मुखिया के यह चुनाव पंचायत की तरक्की ओर जनता को बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता के लिए होते है। पंचायतों में सरकारी सुविधाओं का ईमानदारी से क्रियान्वयन कराने की जवाबदेही इन सरपंचों की होती है। ग्राम के इन चुनावों में बहुत कम पंचायतों में गांव की उन्नति के विषय चुनावी प्रचार का विषय बनते दिखाई दिए। अभी चुनाव में तो बकरा शराब और रैलियों का बोलबाला है। सरपंच चुनाव के बाद अनेको उम्मीदवार कर्जे के दलदल में डूब जाएंगे जिनसे निकलने में बरसों लगेंगे और विजय उम्मीदवार चुनाव में खर्चे की भरपाई विकास की राशि मे अनियमितता कर प्राप्त करेंगे। कुल मिलाकर पंचायत चुनावों में भी भारी सुधार की आवश्यकता हैं। पंचायत चुनावों में भी अधिक ईमानदारी और पारदर्शिता की आवश्यकता है। पंचायत चुनावों में सुधार की सबसे ज्यादा कोशिश गांव के मतदाताओं को ही करना होगी। यह तभी सम्भव है जब एक ईमानदार ओर कर्तव्यनिष्ठ ग्राम प्रधान चुना जाए जो गांव के विकास को मूर्तरूप दे सकें।