व्यंग्य : चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में भोजपुरी गायकों का योगदान

Satire: Contribution of Bhojpuri singers in the field of medical science

विनोद कुमार विक्की

वर्ल्ड ह्यूमन फिजियोलॉजी मानवीय अंगों पर शोध और प्रयोग करने में जिस मुकाम को हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाई है, वहांँ भोजपुरी गायकों ने यौवन,होठ,आंँखें, कमर आदि स्त्री अंगों सहित काजल, नथुनिया, लिपस्टिक जैसे सौंदर्य प्रसाधनों पर शोध और अनुसंधान कर कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। इन दिनों भोजपुरी गायक और गीतकारों के सृजन और शोध का विषय ढ़ोढ़ी अर्थात नाभि है। ‘देख रहा है बिनोद’ और भुवन के ‘कच्चा बादाम’ से ज्यादा ट्रेंड वर्तमान में ढ़ोढ़ी केंद्रित भोजपुरी गीतों का है।

मूर्ति विसर्जन,डीजे और शादी के मुबारक मौके पर ढ़ोढ़ी अंग का महिमा मंडन करने वाले भोजपुरी गीतों की तेज ध्वनि में प्रसारण एवं श्रवण से इन शोधकर्ताओं की कड़ी मेहनत का अंदाजा लगाया जा सकता है। महान ख़ोजी प्रवृत्ति वाले इन संगीत सेवियों के योगदान पर भोजपुरी संस्कृति और सभ्यता को गर्व करना लाजिमी है।

ढ़ोढ़ी अथवा नाभि की महत्ता जीवन के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक कथाओं की चर्चा करें, तो दशानन रावण की मृत्यु का केंद्रबिंदु ढ़ोढ़ी ही था। यदि विभीषण ने इस राज का पर्दाफाश ना किया होता, तो श्रीराम कन्फ्यूजन में बाण से दशानन की गर्दन रेतते-रेतते रामजी युग से फाइव-जी युग में प्रवेश कर थक जाते किंतु वध नहीं कर पाते।
जीव विज्ञानियों के अनुसार गर्भावस्था के दौरान प्लासेंटा अथवा अपरा के माध्यम से माता से शिशु में पोषण का केंद्र ढ़ोढ़ी ही होता है।

इतिहासकारों ने रावण की ढ़ोढ़ी और जीव विज्ञानियों ने शिशुओं की ढ़ोढ़ी पर रिसर्च करने से परहेज़ किया तो जिज्ञासु भोजपुरी लोक गायकों ने ढ़ोढ़ी पर शोध करने की जिम्मेदारी उठा ली है।

इन गायकों और गीतकारों की शोध से स्पष्ट है कि ढ़ोढ़ी चाटने से बुखार सहित कई बिमारियां चुटकियों में दूर हो जाती है। भोजपुरी गायक की मानें तो इन‌ दिनों युवा कोविड 19 से भी ज्यादा खतरनाक ढ़ोढ़ी चाटने की बीमारी से पीड़ित और प्रभावित हो रहे हैं। कुछ गायकों ने भौगोलिक विस्तार के तहत आयतन और क्षेत्रफल निर्धारित करते हुए ढ़ोढ़ी की तुलना गोल गप्पे अथवा कुआंँ तक से कर डाली है। ढ़ोढ़ी के क्रांतिकारी शोध पर भोजपुरी पुरुष गायकों के साथ-साथ महिला गायिका भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही हैं। नाभि ज्ञान बांटने में भरपूर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए भोजपुरी गायिका ढ़ोढ़ी की साइज़, शृंगार और उपयोगिता से समाज को जागरूक करने में अहम् भूमिका निभा रही हैं।

सेंसर रूपी मानक संस्था के अभाव में तथा वायरल होने की चाहत में अकर्णप्रिय भोजपुरी संगीत को पुष्पित-पल्लवित कर रहे नाभि के शोधार्थियों (लोक गायकों) का वर्तमान और भविष्य दोनों ही उज्जवल प्रतीत होता है।

रचनात्मक गतिविधियों के लिए ऐसे भोजपुरी गायकों को ग्रैमी अवॉर्ड अथवा म्यूजिक अवॉर्ड्स मिले न मिले, लेकिन वह दिन दूर नहीं, जब स्वीडन की नोबेल पुरस्कार संगठन मानवीय अंगों पर गहन शोध और जानकारी के लिए शरीर क्रिया विज्ञान एवं चिकित्सा क्षेत्र में इनको सम्मानित करने के लिए उच्च स्तरीय निर्णय ले लें।