हिंदू मां-बहनों-बेटियों को बचा लीजिए पीएम साहब, लाचार पाकिस्तानी हिंदू की अपील

Save Hindu mothers, sisters and daughters, PM sahab, appeals a helpless Pakistani Hindu

अशोक भाटिया

सोशल मीडिया पर एक पाकिस्तान सिंधी हिंदू का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। इस वीडियो में एक बुजुर्ग व्यक्ति भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से हिंदू लड़कियों को बचाने की अपील कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर जो वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसे देखकर देखने वालों की आँखों में आंसू आ रहे है ।

हाल ही में प्राप्त पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हिंदुओं के साथ अत्याचार की एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां शाहदादपुर में चार हिंदू भाई-बहनों का अपहरण कर लिया गया और उन्हें जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया। 22 वर्षीय जिया बाई, 20 वर्षीय दिया बाई और 16 वर्षीय दिशा बाई के अलावा, इन तीनों बहनों के 13 वर्षीय भाई हरजीत कुमार को किडनैप कर इस्लाम कबूल करवाया गया। इस घटना ने स्थानीय हिंदू समुदाय में आक्रोश पैदा कर दिया है और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे व्यवस्थित उत्पीड़न पर सवाल उठाए हैं। बच्चों की मां न्याय के लिए भटक रही है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, यह घटना सिंध प्रांत के शाहदादपुर में हुई, जहां इन चारों भाई-बहनों को अगवा कर लिया गया। पीड़ितों की मां ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्थानीय कंप्यूटर शिक्षक फरहान खासखेली पर बच्चों को बहकाने और अपहरण का आरोप लगाया। उन्होंने आंखों में आंसू लिए कहा, “मेरे पास तीन बेटियां थीं, और फरहान ने उन सभी को ले लिया।” मां ने विशेष रूप से अपने 13 वर्षीय बेटे की वापसी की गुहार लगाई, जिसके बारे में उनका कहना है कि वह इतनी छोटी उम्र में धर्म के बारे में समझने में सक्षम नहीं है। उन्होंने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की।

यह घटना कोई अलग-थलग मामला नहीं है। सिंध और पाकिस्तान के अन्य हिस्सों में हिंदू लड़कियों और हाल ही में लड़कों के अपहरण, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण और उनके अपहरणकर्ताओं से विवाह की खबरें बार-बार सामने आती रही हैं। जानकारों का कहना है कि यह धार्मिक अतिवाद, पितृसत्तात्मक मानसिकता और संस्थागत उदासीनता का परिणाम है। हिंदू समुदाय के लिए, विशेष रूप से सिंध में, अपहरण और जबरन धर्मांतरण का डर एक निरंतर छाया की तरह बना हुआ है।

2016 में सिंध प्रांतीय विधानसभा ने जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए एक विधेयक पारित करने की कोशिश की थी, लेकिन धार्मिक दलों के विरोध के कारण यह प्रभावी नहीं हो सका। इस तरह की घटनाओं से अल्पसंख्यक समुदायों के लिए कानूनी संरक्षण की कमी उजागर होती है।

कुछ समय पूर्व ही पाकिस्तान में उनके खिलाफ हुए अत्याचारों के कारण वहां से भागकर आए सिंधी हिंदू समुदाय के अधिकांश परिवारों ने पहलगाम आतंकी हमले के दोषियों के लिए कठोरतम सजा की मांग की है। इस हमले में 22 अप्रैल को 26 लोगों की जान चली गई थी। उनकी मांगें ऐसे समय में आई हैं जब वे भारतीय नागरिकता के लिए इंतजार कर रहे हैं और उन्हें डर है कि हमले के जवाब में भारत द्वारा सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए जाने के बाद उन्हें वापस पाकिस्तान भेज दिया जाएगा।हालाँकि, दीर्घकालिक, आधिकारिक या राजनयिक वीजा रखने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को इस आदेश से छूट दी गई है।

गौरतलब है कि हमले के बाद महाराष्ट्र के उल्हासनगर से पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आए 17 लोगों को पड़ोसी देश वापस भेजे जाने के कुछ दिनों बाद, कई शरणार्थी निर्वासन के भय के बीच भारतीय नागरिकता का इंतजार कर रहे हैं।सिंधी हिंदू संदीप कुमार ने कहा, “मेरा परिवार सिंध में कभी सुरक्षित नहीं रहा, क्योंकि हम वहां अल्पसंख्यक थे। मेरी दो बहनें और मेरी मां भारत आईं और शरण मांगी तथा भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। जब हमने पहलगाम हमले के बारे में सुना, तो हमने इसकी निंदा की और आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।”उन्होंने कहा, “जब भारत सरकार ने आदेश दिया कि पाकिस्तानी नागरिक भारत छोड़ दें, तो हम डर गए और चिंतित हो गए। हालांकि, बाद में हमें बताया गया कि हमारे पास दीर्घकालिक वीजा है और हम यहां रह सकते हैं। मैं 14 साल से अधिक समय से भारत में रह रहा हूं और हमारा भारतीय नागरिकता आवेदन प्रक्रियाधीन है।”

उल्हासनगर स्थित एक संगठन, भारतीय सिंधु सभा , भारत में शरण चाहने वाले पाकिस्तानी सिंधी हिंदुओं की मदद कर रहा है और उन्हें भारत में रहने के लिए भारतीय नागरिकता और दीर्घकालिक वीजा दिलाने की प्रक्रिया में मदद कर रहा है।लगभग 200 शरणार्थी, जो दीर्घकालिक वीजा पर थे और जिनके पास भारत लौटने के लिए कोई आपत्ति नहीं थी पाकिस्तान जाने के बाद अटारी-वाघा सीमा पर फंस गए थे। हालांकि, अधिकारियों ने सोमवार को उन्हें भारत में प्रवेश की अनुमति दे दी।संगठन के प्रमुख महेश सुखरामानी ने कहा, “पाकिस्तान के कई दीर्घकालिक वीजा धारक थे, जिन्हें भारत सरकार ने वीजा जारी किया था और वे अपने रिश्तेदारों से मिलने पाकिस्तान गए थे। वे पाकिस्तान में वाघा सीमा पर फंस गए थे, लेकिन अब उन्हें भारत में प्रवेश की अनुमति दे दी गई है। मैं इसके लिए भारत सरकार को धन्यवाद देता हूं।”उन्होंने कहा कि 200 से अधिक आवेदन प्रस्तुत किये गये और 110 आवेदकों को भारतीय नागरिकता प्राप्त हुई।

उन्होंने कहा, “400 से अधिक पाकिस्तानी नागरिकों को दीर्घकालिक वीजा मिल गया है और उनकी नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया भी चल रही है। अल्पकालिक वीजा पर भारत आने वाले 17 लोगों को वापस भेज दिया गया है। उनमें से कई अटारी-वाघा सीमा पर पहुंच गए हैं और उनके वीजा रद्द कर दिए गए हैं।”ऐसे कई पूर्व पाकिस्तानी नागरिक हैं जो पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के कारण शरण लेने के लिए भारत आए थे। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जयकेश नंजानी, जो अब भारतीय नागरिक हैं और भारत में शरण लेने वाले अन्य पाकिस्तानी नागरिकों की मदद कर रहे हैं।नंजानी ने कहा, “हम समाचारों में देख रहे हैं कि सिंधी समुदाय की महिलाओं और लड़कियों का अपहरण किया जा रहा है और उनके खिलाफ अत्याचार किए जा रहे हैं। इसके कारण, पाकिस्तान से कई लोग शरण लेने के लिए भारत आते हैं और दीर्घकालिक वीजा और भारतीय नागरिकता प्राप्त करते हैं।”

उन्होंने बताया कि उनके चाचा भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच लगातार सीमा पार से होने वाली गोलीबारी के कारण भारत आये थे।नंजानी ने कहा, “नागरिकता पाने की कोशिश करते समय मुझे कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। किसी को भी इस प्रक्रिया के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के अस्तित्व में आने के बाद, महेश सुखरामानी ने हमें और उन पाकिस्तानी नागरिकों को एक साथ लाया, जो 2014 से पहले आए थे और नागरिकता के लिए आवेदन किया था।”पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत के कूटनीतिक कदमों पर प्रतिक्रिया देते हुए नंजानी ने आगे कहा, आतंकवादियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। भारत ने सिंधु जल संधि और सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा निलंबित करने जैसी कार्रवाई की है। भारत सरकार उन्हें सबक सिखाएगी।”

इससे पहले, उल्हासनगर में अल्पकालिक वीजा पर रह रहे 17 पाकिस्तानी हिंदू पाकिस्तान चले गए हैं या वापस लौट गए हैं। उनके भारत छोड़ने की अंतिम तिथि 29 अप्रैल थी।इन 17 पाकिस्तानी नागरिकों के अलावा, पाकिस्तान में अपने खिलाफ़ अत्याचारों के कारण पाकिस्तान छोड़ने वाले सात हिंदू पाकिस्तानी 22 अप्रैल को अटारी-वाघा सीमा के ज़रिए भारत पहुँचे। इसी दिन पहलगाम में आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे, जिनमें ज़्यादातर पर्यटक थे।दो सिंधी हिंदू परिवारों के सात सदस्य 23 अप्रैल को उल्हासनगर पहुंचे और भारत सरकार ने अल्पकालिक वीजा रखने वाले सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए। सात शरणार्थी अभी भी असमंजस में हैं, लेकिन भारतीय सिंधु सभा उनके लिए दीर्घकालिक वीजा पाने के लिए काम कर रही है और इसके लिए प्राथमिकता के आधार पर सरकारी अधिकारियों के पास आवेदन दायर किए हैं।

30 वर्षीय पाकिस्तानी नागरिक ललित कुमार ने कहा, “हम भारत इसलिए आए क्योंकि मैं और मेरा परिवार पाकिस्तान में सुरक्षित नहीं थे। सिंधी हिंदू समुदाय के लोग वहां बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं। आतंकवाद चरम पर है और हमारे साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है। मैं 2009 में यहां आया था और अभी मेरे पास लंबी अवधि का वीजा है। पहलगाम हमला पूरी तरह से गलत था और अपराधियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।”उन्होंने कहा, “हम तब डर गए जब भारत सरकार ने हमले के बाद पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने को कहा। लेकिन, कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हमें बताया कि दीर्घकालिक वीजा रखने वालों को भारत में रहने की अनुमति है। यह सुनकर हमें राहत मिली।”

अब जब भारत में अंतत: नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू हो गया है और इसी के साथ एक बार फिर से कुछ घिसे पिटे स्वर उभरने वाले हैं कि जो प्रताड़ित होकर आएँगे उनमें मुसलमान क्यों नहीं है? यह अधिनियम पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन अल्पसंख्यकों की नागरिकता को लेकर है जिनके साथ इन देशों में धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है और उनका उत्पीड़न किया जा रहा है।मगर चूंकि भारत में एक बड़े वर्ग के लिए अल्पसंख्यक का अर्थ केवल और केवल मुसलमानों से है तो उन्हें ऐसा लग रहा है कि इन प्रताड़ित होते समुदायों में मुस्लिम सम्मिलित क्यों नहीं हैं? मगर एक प्रश्न का उत्तर वे लोग भी देने में समर्थ नहीं हैं कि आखिर मुस्लिम बहुल देशों में धर्म के आधार पर मुस्लिमों के साथ कैसा और क्या उत्पीडन हो सकता है?

यदि धार्मिक उत्पीड़न इन देशों में हो रहा है वह है गैर मुस्लिम समुदाय का और पाकिस्तान के विषय में तो कई रिपोर्ट्स इन अत्याचारों को प्रमाणिकता से स्थापित करती हैं। वहां पर हिन्दू समाज की लड़कियों को आए दिन उठा लिया जाता है और आए दिन इंटरनेट पर ऐसी खबरें सुर्खियाँ बनती रहती हैं, मगर भेदभाव वहां पर अत्यंत व्यापक रूप से दिखता है। इन्डियन इंस्टीट्युट ऑफ दलित स्टडीज ने वर्ष 2008 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें वंचित वर्ग के हिन्दुओं के साथ होने वाले व्यवहार के विषय में विस्तार से लिखा गया था। इसमें लिखा है कि पाकिस्तान ने हमेशा ही यह कहा है कि सभी मुस्लिम एक देश है, माने पाकिस्तान। अभी भी पाकिस्तान में दो-राष्ट्र वाला सिद्धांत पढ़ाया जाता है कि पाकिस्तान को इस्लाम के नाम पर बनाया गया था क्योंकि भारत में दो मुख्य समुदाय थे और वह थे हिन्दू और मुसलमान! इसलिए मुस्लिमों ने अंग्रेजों से कहा कि चूंकि उनका मजहब, तहजीब और जीवनशैली एकदम अलग है तो उन्हें एक अलग देश दिया जाए।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या ऐसे लोगों को एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार नहीं है? क्या इन लोगों कि ऐसे ही हाल में छोड़ा जा सकता है? यदि नहीं तो फिर जब उन्हें एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए भारत में नागरिकता क़ानून में संशोधन किया गया और लागू किया गया तो क्यों नहीं सभी हिन्दू सिन्धीयों के लिए बॉर्डर के द्वार खोल दिए जाते है ।

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार