
बंगाल के अमर शहीद खुदीराम बोस की स्मृति में लिखी गई चर्चित बांग्ला कविता- ऐक बार बिदाई दे मां, घूरे आसि” का हिंदी अनुवाद.
एक बार विदाई दो मां
मूल कविता: पीतांबर दास
अनुवाद: रावेल पुष्प
एक बार विदाई दो मां,
फिर लौट आऊंगा
हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ूं
देखेगा भारत सारा
बम लिए मैं खड़ा, रस्ता ताक रहा था गोलियों से मारना था उसको, जो भारत लूट रहा था
पर मार दिया इक दूजे फिरंगी को
वैसे मन में था इक सपना
आजादी का लड्डू फूट रहा था
काश मेरे हाथ में छुरा होता मां
क्या कोई पकड़ सकता तब मुझे? लहू से सना वो दृश्य देखता जग सारा भारत मां के बेटे ने, किया न्योछावर जीवन सारा
शनिवार की उस सुबह,
कोर्ट में थी भीड़ अच्छी खासी
अभिराम को हो गया देश निकाला और खुदीराम को फांसी
बारह लाख और तैंतीस करोड़ बेटे-बेटियां रहें
उनसे तुम घर बसा लेना
बहुओं को रखना पास
उनसे पूरी सेवा लेना
दस महीने दस दिन बाद
फिर जन्म लूंगा मौसी के मकान
अगर ना पहचान पाए मां
तो देख लेना मेरे गले पर फांसी का निशान!