
पूजा गुप्ता
शिक्षा वह दीपक है जो अज्ञानता के अंधेरे को दूर करता है और जीवन को नई दिशा देता है। मगर आज इसकी चमक के पीछे जेब का खालीपन एक कड़वी सच्चाई बनकर उभर रहा है। निजी स्कूलों की भव्य इमारतें, आधुनिक सुविधाएँ, डिजिटल कक्षाएँ, विदेशी पाठ्यक्रम और तमाम आकर्षक सुविधाएँ अभिभावकों को लुभाती हैं, पर इनके पीछे छिपा आर्थिक बोझ कई परिवारों के लिए असहनीय बन गया है। बढ़ती फीस, महँगी किताबें, स्कूल ड्रेस, परिवहन, कोचिंग कक्षाएँ और अनावश्यक गतिविधियों का खर्च मध्यम और निम्न वर्ग के लिए अभिशाप बन चुका है।
निजी स्कूल शिक्षा में गुणवत्ता का वादा करते हैं, पर उनकी नीतियाँ अभिभावकों को आर्थिक तंगी की ओर धकेलती हैं। हर साल फीस में बेतहाशा वृद्धि, विशेष कोर्स के नाम पर अतिरिक्त शुल्क, महँगी शैक्षिक यात्राएँ और स्कूल की ब्रांडिंग के लिए आयोजित कार्यक्रमों की उगाही ने शिक्षा को एक लाभकारी व्यवसाय में बदल दिया है। अभिभावक बच्चों के भविष्य के लिए अपनी बचत खर्च कर देते हैं या कर्ज के जाल में फँस जाते हैं। दूसरी ओर, सरकारी स्कूलों की हालत बद से बदतर है। वहाँ बुनियादी सुविधाओं जैसे शौचालय, पीने का पानी, और पुस्तकालय का अभाव है। शिक्षकों की कमी और पुराने ढर्रे का पाठ्यक्रम बच्चों के भविष्य को और अनिश्चित बनाता है।
मध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की चाह में हर संभव प्रयास करते हैं। वे अपनी जरूरतें दबाकर, बचत खर्च करके या कर्ज लेकर बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं। लेकिन इस दौड़ का दबाव न केवल अभिभावकों को मानसिक और आर्थिक तनाव देता है, बल्कि बच्चों पर भी अनावश्यक बोझ डालता है। बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अतिरिक्त गतिविधियों और प्रतियोगिताओं के दबाव में दब जाते हैं। स्कूलों की बाहरी चमक और बड़े-बड़े वादे अक्सर शिक्षा के असली उद्देश्य बच्चों का सर्वांगीण विकास, नैतिक मूल्यों का निर्माण और रचनात्मकता को बढ़ावा देना को भुला देते हैं।
यह सच्चाई समाज को गहरे आत्ममंथन के लिए मजबूर करती है। क्या शिक्षा केवल धनवानों का विशेषाधिकार बनकर रह जाएगी? क्या हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार नहीं? सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, जैसे सरकारी स्कूलों में सुविधाएँ बढ़ाना, शिक्षकों की भर्ती करना और निजी स्कूलों की मनमानी फीस पर नियंत्रण करना। स्कूलों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी कि उनकी चमक किसी की जेब को खाली न करे। समाज को भी जागरूक होकर शिक्षा को व्यापार बनने से रोकना होगा। शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, और इसे आर्थिक बोझ से मुक्त करना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम शिक्षा की चमक को हर घर तक पहुँचा सकते हैं, बिना जेब पर बोझ डाले।