संदीप पांडे”शिष्य
मंजरी को दो वर्ष हो गए थे एक सम्मानजनक नौकरी करते हुए। तेईस बरस मे स्नातकोत्तर होने से पूर्व ही एक जानी मानी कम्पनी मे उसे मेनेजर पद के लिए चुन लिया गया था। मन माफिक काम और संतोषजनक दाम उसको अपना अधिकाधिक समय कम्पनी के लिए व्यय करने के प्रेरित करा रहा था। वो अपने सुनहरे पेशेवर भविष्य के लिए बहुत ज्यादा मेहनत कर रही थी। पर माता पिता अब उसके विवाह करने के लिए जोर दे रहे थे जिसे वो टालती जा रही थी। अपने पुरूषार्थ से धनार्जन का जज्बा इतना प्रबल हो चुका था कि और कुछ भी जानने समझने के लिए मन तैयार नही था। दुसरा एक दबा छुपा कारण यह भी था कि अपने कालेज सहपाठी विक्रम से थोडा अधिक लगाव हो चुका था। मन ही मन पनप रहे दोनो के प्रेम को धोषित नाम देने से दोनो ने अब तक परहेज कर रखा था। विक्रम भी अच्छी तनख्वाह की नौकरी दूसरे शहर मे कर रहा था। अच्छे परवाह करने वाले दोस्त सी उनमे फोन पर बातचीत होती रहती थी पर खुल कर दिल की बात कहने की दिवार झिझक वश टूट नही पा रही थी। मंजरी को शादी के लिए दिए जा रहे दवाब की जानकारी मिलने की बात सुन आखिरकार विक्रम ने हिम्मत कर मंजरी के सामने शादी का प्रस्ताव रख ही दिया। मंजरी भी जैसे इस प्रस्ताव के इंतजार मे ही बैठी थी सो उसे हां कहना ही था। पर दोनो की विलग जाति परिवारजन की सहमति मे अडचन का कारण बन सकती थी। इसलिए पहले मंजरी ने अपने माता पिता से विक्रम को मिलाना उचित लगा। माता पिता को विक्रम से मिलवाने की रजामंदी मे थोडी मुश्किल जरूर हुई पर इस बात पर वो राजी हो गए कि अगर उन्हे लडका पसंद नही आया तो मंजरी से शादी नही होगी। अपनी पसंद पर भरोसा करते हुए मंजरी ने शर्त स्वीकार कर ली।
दस दिन बाद ही मुलाकात का समय तय हो गया। विक्रम मंजरी का सहपाठी था इसलिए उसके नौकरी और तनख्वाह के बारे मे उन्हे ज्यादा जानने की इच्छा नही थी। उन्हे सिर्फ उनकी संस्कारी बेटी के साथ लडका जीवन भर साथ निबाहने लायक धैर्यवान है या नही खोजना था। वो जीवन के प्रति उसके दृष्टिकोण को परखने मे ज्यादा लालायित थे। काफी चर्चा के बाद तय हुआ कि विक्रम से घर के बजाय बाहर किसी होटल मे बातचीत की जाएगी और सब कुछ सकारात्मक रहा तो फिर एक दूसरे के घर बैठक होंगी।
गणेश चतुर्थी के दिन मंजरी अपने माता पिता को विक्रम से मिलाने एक बातचीत के लिए मुफीद होटल मे ले आई। विक्रम के चमकदार चेहरे और आकर्षक मुस्कान ने सभी का स्वागत किया। पहला दिखते प्रभाव की पहली परीक्षा उत्तीर्ण हो चुकी थी। बचपन के आचार व्यवहार से हल्के फुल्के सवाल से होते हुए वार्ता परंमपराओ तक आ पंहुची थी। पिता ने सवाल किया ” शादी के बाद लडकी को ससुराल मे जाने चाहिए या लडके को घर जंवाई बनना चाहिए?” विक्रम ने कुछ देर मौन के बाद कहा ” सैकड़ो बरसो से चली आ रही परंमपरा को निबाहने मे अगर कोई विशेष रूकावट ना हो तो सभी को पालन कर लेना चाहिए।
मुझे पता है कि मंजरी आप की इकलौती बेटी है इसलिए आप चाहेंगे कि वो आप के निकट ही रहे। पर वर्तमान परिस्थित मे देखा जाए तो नौकरी निबाहते लडका हो या लडकी उसे अपने अभिभावक से ज्यादातर समय दूर ही रहना पडता है। मै पिछले सात साल से अपने घर कुछ महिनो के अंतराल पर कुछ दिन के लिए ही जा पाता हूँ। मेरा छोटा भाई भी पिछले चार साल से अधिक समय घर से दूर ही रहता है। इसलिए कंहा रहना चाहिए प्रश्न ही बेमानी है। हां जंहा तक माता पिता के प्रति जिम्मेदारी का भाव है बेशक वो आदर और प्रेम शादी के बाद दोनो घरो मे समान रूप से विद्यमान रहेगा। ” पिता के चेहरे पर सुकुन भरी मुस्कान तैर आई थी। अपने भावो को जज्ब करते उन्होने अगला सवाल दागा ” जीवन मे कितना पैसा कमा लेने की चाह है ? ” “जितना भी प्राप्त होगा वो हमारे लिए पर्याप्त होगा। मेरा मानना है कि स्वयं के लिए बहुत अधिक धन संग्रह अनाचार का मार्ग प्रशस्त करने का सहायक बनता है। इसलिए अगली पीढी के लिए तो जोड़ने का तो हम सोचेंगे भी नही। मै अपने माता पिता से अब आगे जीवनयापन के लिए मदद की अपेक्षा नही रखूंगा। जो भी आवश्यकताओ की पूर्ति होगी अपनी मेहनत और किस्मत से ही होगी। अगली पीढ़ी को भी अपने पुरूषार्थ से अपना स्थान बनाने के ही संस्कार देने की कोशिश करेंगे। ” अब माता पिता के नयन सजल हो चुके थे। युवा मन की इतनी तर्क पूर्ण सकारात्मक जीवन ज्ञान की उन्हे बिल्कुल अपेक्षा नहीं थी। कुछ पल पूर्ण शांति मे नजरो ने ही आपस में एक दूसरे से बाते की। फिर माताजी की तरफ से सवाल आया ” आने वाले भविष्य को तेजी से बदलती दुनिया के परिप्रेक्ष्य मे तुम अपनेआप को कंहा देखते हो। ” वैसे तो मै वर्तमान पर केंद्रित रहना पसंद करता हूँ। पर मेरा यह अवश्य मानना है कि तेज विकास धरती की उम्र को कम कर रहा है। हवा , पानी और उर्जा का जितना अधिक भोग करेंगे उतना आने वाली पीढी के लिए मुश्किल हालात पैदा करेंगे। अतिभोग हर तरह का प्रदूषण बढ़ाता है इसलिए हमे सचेत होकर पैसे के साथ साथ भगवान की दी हुई नेमतो का इस्तेमाल करना चाहिए। ” मंजरी उसकी बातो का समर्थन करते हुए बोली “यह तो हम लोगो भी पानी , बिजली की बर्बादी रोकने के लिए टोकता रहता है। प्लास्टिक और एसी का इस्तेमाल भी कम से कम करता है। ” ” ऐसा करने से शरीर चुस्त-दुरुस्त रहता है और पर्यावरण संरक्षण मे योगदान का सुख भी प्राप्त हो जाता है। ” विक्रम ने अपना कारण स्पष्ट किया।
माता – पिता ने पूरे स्नेह से अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेरती हुए बोले कि हमे ढूंढने पर भी इतना अच्छा दामाद नही मिल सकता था। अब विक्रम के माता पिता से मिलने का समय तय होने की बाते होने लगी थी जिनको विक्रम ने मंजरी के बारे मे पहले से ही बता रखा था। बेटी के सुनहरे भविष्य की कल्पना मे जीने वाले मां – बाप के लिए वो पल बहुत आत्मिक संतोष देने वाले थे।