सीता राम शर्मा ” चेतन “
दुनिया को खुली आँखों से देखिए, पढ़िए, सुनिए, परखिए और फिर अपने तथा अपनों के लिए, देश समाज के लिए, मस्तिष्क का पूरा सदुपयोग कर किसी उचित निर्णय और निश्चय तक पहुंचिए । आइए, वर्तमान राष्ट्रीय और वैश्विक स्थिति-परिस्थिति को समझिए । वर्तमान और भविष्य की गंभीर चुनौतियों पर विचार कीजिए । आने वाली हर संभावित प्रायोजित विपत्तयों, संकटों और उससे होने वाली भीषण मानवीय, सामाजिक और राष्ट्रीय त्रासदियों पर सोचिए । सच मानिए, यदि आप पूरी ईमानदारी और गंभीरता से ऐसा करने का प्रयास करेंगे तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे । मन-मस्तिष्क में एक बवंडर सा उठेगा और फिर आप यह सोचने को विवश हो जाएंगे कि हमें एक व्यक्ति और राष्ट्र के रूप में समय रहते वर्तमान की बढ़ती और भविष्य की आने वाली उन मानवीय, सामाजिक और राष्ट्रीय विपत्तियों, घोर त्रासदियों से बचने के लिए, जो हमारे देश के ही कुछ भटके और षड्यंत्रकारी लोगों के द्वारा या सहयोग से घटित होती है और होने की प्रबल संभावनाएं हैं, जितनी जल्दी हो सके सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ कदम उठा लेने चाहिए । उसके लिए जो भी उचित और कठोर से कठोर नियम कानून बन सके, बना लेने चाहिए । सच मानिए, ये बातें किसी काल्पनिक कविता-कहानी या फिर व्यंग्य की मन बहलाऊ सरल बातें नहीं हैं, यह हमारे देश ही नहीं पूरी दुनिया के संकटग्रस्त वर्तमान का कठोर शत-प्रतिशत यथार्थ है, जो हमें अपने गले के साथ मन-मस्तिष्क में उतार लेना चाहिए और फिर बिना देर किए उसका हर संभव निदान भी खोज लेना चाहिए । एक बात याद रखिए, कि जो भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र दूरदर्शी हो अपने वर्तमान और भविष्य के कर्म, नीति, लक्ष्य निर्धारित करता है, वही निर्विघ्न शांतिपूर्ण विकास और समृद्धि का हकदार होता है, जो ऐसा नहीं करता संकटों को आमंत्रित करता है और उन्हें भोगने के लिए विवश होता और होता रहता है । सीधे विषय पर आते हुए अब बात देश के सुप्रीम कोर्ट में चल रही देशद्रोह कानून पर सुनवाई और उसको लेकर राष्ट्रव्यापी चर्चा की । यहां सबसे पहले हमें यह जानने समझने की जरूरत है कि देशद्रोह कानून है क्या ? इसकी जरूरत कब पड़ती है ? यह किस पर लागू होता है ? इसके फायदे क्या हैं ? इन सवालों के बाद या सच कहें तो सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि भारत में जब यह कानून लागू हुआ था, इसकी जरूरत तब ज्यादा थी या फिर तब जब इसे ज्यादा प्रभावी बनाया गया, या फिर इसे ज्यादा सख्त बनाने की जरूरत और विवशता आज है ? निःसंदेह और निर्विवाद रूप से इसका उत्तर सिर्फ और सिर्फ यही होगा कि देश को इस कानून की जरूरत आज बहुत ज्यादा है और आगामी भविष्य में आज से भी ज्यादा होगी, क्योंकि देश के खिलाफ षडयंत्र होने की संभावनाएँ वर्तमान समय में पहले से लाख गुणा ज्यादा है और यदि समय रहते हमने इसके विरूद्ध समुचित और अत्यंत कठोर कदम नहीं उठाए, ज्यादा सख्त और प्रभावी नियम कानून नहीं बनाए तो यह संकट कई गुणा बढ़ेगा ही । सर्वविदित और प्रमाणित सत्य यह है कि देशविरोधी ऐसे षड्यंत्रों का हम कई बार शिकार हो चुके हैं । मुंबई, कोयंबटूर, अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर में हुई बड़ी आतंकी वारदातें हो या फिर जम्मू-कश्मीर की विधानसभा से लेकर देश की संसद पर हुए आंतकी हमले, इनमें विदेशी आतंकवादियों के साथ हमारे देश के भी कई आतंकी और लोग प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे । एक आंकड़े के अनुसार भरत में वर्ष 2000 से लेकर 19 अप्रैल 2022 तक कुल 23,057 आतंकी हमले हुए हैं, जिसमें 14,098 आम लोग मारे गए और हमारे 7,392 सैनिक शहीद हुए हैं । स्पष्ट है कि इन सभी आतंकवादी हमलों में शामिल हमारे देश के आतंकी, अपराधी लोगों पर जो सबसे पहला मुकद्दमा बनता है वह देशद्रोह का है । देश के ऐसे गद्दारों के विरूद्ध अत्यंत कठोर कार्रवाई करे बिना, दोषियों को त्वरित और सख्त सजा दिए बिना, हम ऐसी आतंकी घटनाओं पर ना तो अंकुश लगा सकते हैं और ना ही आतंक की मानसिकता और आतंकवादियों की जमात को ही फलने-फूलने सै रोक सकते हैं । गौरतलब है कि आतंकवाद का खतरा और दायरा भारत ही नहीं लगभग पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहा है और दुनिया के कई देश इसका दंश झेलने के बाद इसके विरूद्ध बेहद सख्त और कठोर कदम उठा रहे हैं । कठोर नियम कानून बना बना रहे हैं । ऐसी विषम परिस्थितियों में, जब आतंकवाद दुनिया की सबसे बड़ी समस्या और चुनौति बन चुका है और कई देश आतंकवाद के वर्तमान और भविष्य को देखते सोचते हुए दूरदर्शी हो इसके खिलाफ अत्यंत सख्त कदम उठा रहे हैं, नियम कानून बना रहे हैं, तब यह घोर आश्चर्य का विषय है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश के विरूद्ध काम करने वाले लोगों के खिलाफ बने देशद्रोह कानून को ज्यादा कठोर बनाने की बजाय इसे खत्म करने की सिफारिश कर रहा है ! यह सर्वमान्य सच है कि मानवीय और तार्किक रूप से कोई भी व्यक्ति, समाज, देश या उसका कानून शत-प्रतिशत सही नहीं हो सकता और ना ही होने की गारंटी ही दे सकता है । सबकी अपनी खूबसूरती, उपयोगिता और जरूरत है तो सबमें कुछ कमियाँ और दोष भी संभावित है । हर कानून की तरह वर्तमान देशद्रोह कानून में भी यह संभावना होगी और लाख सुधार के बाद रहेगी भी, क्योंकि किसी भी दोषी और अपराधी व्यक्ति का पूरा सच बहुत सरलता से जान लिया जाए, अभी तक ऐसी कोई चमत्कारिक व्यवस्था या तकनीक इजाद नहीं हो पाई है । भविष्य में होने की संभावना भी नहीं है । इसलिए बेहतर होगा कि सर्वोच्च न्यायालय देश और जनहित में देश के साथ दुनियाभर में फैलते आतंकवाद और अंदरूनी संकटों को ध्यान में रखते हुए ही कोई निर्णय ले । यदि ऐसा हो तो यह निर्विवाद और अकाट्य सच है कि भारत और भारत के लोगों को वर्तमान और भविष्य की राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक बेहद सख्त, कठोर और त्वरित दंड देने वाली न्यायिक व्यवस्था की जरूरत है ना कि वर्तमान कमजोर देशद्रोह कानून को और ज्यादा लचीला या कमजोर बनाने की । आशा है सर्वोच्च न्यायालय कम से कम इस बेहद महत्वपूर्ण और जरूरी कानून पर सर्वोच्च दृष्टिकोण और विचार से न्यायसंगत फैसला लेगा और इस पर कोई भी फैसला लेते हुए यह याद रखेगा कि कोई भी कानून सबसे पहले सिर्फ और सिर्फ निर्दोष तथा देश समाज की सुरक्षा के लिए होता है, दोषी के प्रति सहानुभूति और दयाभाव के लिए नहीं, जिसकी जरूरत कम से कम देशद्रोह कानून के लिए तो कदापि नहीं होनी चाहिए ।