
ललित गर्ग
अगस्त का महीना अनेक अंतर्राष्ट्रीय दिवसों की वजह से विशेष महत्व रखता है। युवा दिवस, मित्रता दिवस, हिरोशिमा दिवस, अंगदान दिवस, स्तनपान दिवस, आदिवासी दिवस, मच्छर दिवस, फोटोग्राफी दिवस, मानवीय दिवस आदि की तरह एक महत्वपूर्ण दिवस है-विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस, जो हर वर्ष वृद्धों को समर्पित किया जाता है। यह दिन वरिष्ठ नागरिकों के स्वस्थ, सम्मानजनक और खुशहाल जीवन के लिए दुनियाभर में मनाया जाता है। इसकी आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि आधुनिक समाज में वृद्धपीढ़ी उपेक्षा, अवमानना और अकेलेपन का शिकार होती जा रही है। जिस पीढ़ी ने अपने खून-पसीने से परिवार और समाज की नींव रखी, वही पीढ़ी आज भावनात्मक रिक्तता और उदासी में जीने को विवश है। चेहरे पर झुर्रियां, आंखों में धुंधलापन, तन की थकान और मन की उदासी हमारी आधुनिक सोच और स्वार्थपूर्ण जीवनशैली की त्रासदी को बयां करते हैं।
भारत जैसे देश में, जहां माता-पिता और बुजुर्गों को भगवान समान माना गया, जहां श्रीराम ने पिता की आज्ञा से राजपाट त्याग दिया और श्रवणकुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थयात्रा कराई, वहां आज संतान और बुजुर्ग माता-पिता के बीच दूरियां क्यों बढ़ रही हैं? क्यों वरिष्ठजन स्वयं को निरर्थक और अनुपयोगी समझने को विवश हैं? यह प्रश्न केवल परिवार के विघटन का नहीं है, यह नई पीढ़ी के संस्कार और समाज की आत्मा से भी जुड़ा है, यह नये समाज एवं नये राष्ट्र की आदर्श संरचना से भी जुड़ा है। वरिष्ठजन परिवार और समाज के लिए ताकत और सम्बल हुआ करते थे, वे जीवन को संवारने का सबसे बड़ा माध्यम थे। उनकी सूझ-बूझ, अनुभव और ज्ञान की संपदा समाज के लिए अमूल्य थी। फिर भी क्यों हम उनकी उपेक्षा कर रहे हैं? क्यों उनके अनुभवों का उपयोग करने से कतराते हैं? इस विडंबना को समझने के लिए हमें यह मानना होगा कि उपेक्षा का यह गलत प्रवाह केवल बुजुर्गों को ही नहीं, बल्कि पीढ़ियों के बीच भावनात्मक दूरी और संवेदना की कमी को भी बढ़ा रहा है। यदि यह प्रवृत्ति इसी तरह बढ़ती रही तो परिवार और समाज अपनी नैतिक जिम्मेदारी से विमुख हो जाएंगे। नई और पुरानी पीढ़ी के बीच संवाद और संवेदनशीलता का सेतु टूट जाएगा और यह स्थिति किसी भी दृष्टि से हितकर नहीं है। जरूरत इस बात की है कि वरिष्ठजनों को उनके अंतिम पड़ाव में मानसिक शांति और सम्मान का माहौल मिले, वृद्धजन को भार नहीं, आभार माने, वृद्धों को बंधन के रूप में नहीं, आत्मगौरव के रूप में स्वीकारें, वृद्धों की शाम उदासी नहीं, उमंग का माध्यम बने।
वरिष्ठ नागरिक दिवस इसी चेतना को जगाने का अवसर है। यह दिवस हमें स्मरण कराता है कि हमें बुजुर्गों के ज्ञान, अनुभव और निरंतर योगदान की सराहना करनी चाहिए। 2025 में यह विशेष दिवस 21 अगस्त को मनाया जाएगा। इसका उद्देश्य परिवारों, मित्रों और संगठनों को प्रेरित करना है कि वे बुजुर्गों का सम्मान करें और उनके अधिकारों की रक्षा करें। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी जड़ें अमेरिका से जुड़ी हैं, जहां राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 1988 में इस दिवस की शुरुआत की। तब से यह दिवस सीमाओं से परे फैल गया है और संयुक्त राष्ट्र सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठन वृद्धावस्था की गरिमा और अधिकारों पर जोर दे रहे हैं। इस दिवस की इस वर्ष की थीम है-“समावेशी भविष्य के लिए वृद्धजनों की आवाज को सशक्त बनाना”। यह हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि वरिष्ठजनों की बात ध्यान से सुनी जाए और परिवार, समुदाय और नीतिगत निर्णयों में उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए। यह विषय एक कार्रवाई का आह्वान है कि उम्र कभी भी भागीदारी और नेतृत्व में बाधा नहीं बननी चाहिए। वरिष्ठों को नेतृत्व के अवसर देना, उनकी कहानियां सुनना, उनकी सलाह लेना, उन्हें रचनात्मक दायित्व सौंपना, यही सच्चे सम्मान का मार्ग है। अध्ययनों से यह तथ्य सामने आया है कि जीवन संबंधी जटिल समस्याओं को हल करने में बुजुर्गों की सोच, धैर्य और दृष्टिकोण युवा पीढ़ी की तुलना में अधिक परिपक्व साबित होता है। यदि उन्हें कोई लक्ष्य दिया जाए तो वे अपनी धीमी गति की भरपाई अपने पैने नजरिए और बेहतर योजनाओं से कर लेते हैं। पारदर्शी सोच, परिणामों का आकलन और अच्छे-बुरे का विवेक जैसे गुण बुजुर्गों में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसीलिए दफ्तरों, संस्थाओं और घरों में उन्हें उपेक्षित करना अनुचित ही नहीं, बल्कि हमारे लिए नुकसानदेह भी है।
समाज में कई स्तरों पर ऐसे कदम उठाए जा सकते हैं, जिनसे बुजुर्ग स्वयं को उपेक्षित न महसूस करें। परिवारों में नियमित रूप से संगोष्ठियां हों जिनमें वरिष्ठजन अपने अनुभव साझा करें। स्कूलों में ग्रैंड-पैरेंट्स डे आयोजित हो, जिससे बच्चे अपने दादा-दादी से सीख सकें और बुजुर्गों को सक्रियता और अपनापन महसूस हो। समाज और धार्मिक संस्थाओं को संयुक्त संगोष्ठियां करनी चाहिए, जहां नई और पुरानी पीढ़ी एक-दूसरे को समझ सके। व्यवसायिक प्रतिष्ठानों और परिवारों को भी बुजुर्गों की क्षमताओं का रचनात्मक उपयोग करना चाहिए। छोटे-छोटे आयोजन जैसे परिवार के भोज, स्मृति पुस्तकों का निर्माण, या बच्चों और बड़ों के बीच कौशल साझा करने की गतिविधियां पीढ़ियों के बीच पुल का काम कर सकती हैं। आने वाले वर्षों में इसकी प्रासंगिकता और बढ़ जाएगी। 2050 तक दुनिया की लगभग 22 प्रतिशत आबादी 60 वर्ष या उससे अधिक आयु की होगी। वृद्धजन समाज और परिवार को ज्ञान, परंपरा और स्वयंसेवा से समृद्ध करेंगे, लेकिन साथ ही उन्हें स्वास्थ्य समस्याओं, अकेलेपन और सामाजिक उपेक्षा जैसी चुनौतियों का भी सामना करना होगा। इसलिए जरूरी है कि हम आज से ही एक ऐसे समाज का निर्माण करें जिसमें उम्र सम्मान और गरिमा की पहचान बने, न कि उपेक्षा की।
प्रश्न है कि दुनिया में वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों हुई? क्यों वृद्धों की उपेक्षा एवं प्रताड़ना की स्थितियां बनी हुई है? चिन्तन का महत्वपूर्ण पक्ष है कि वृद्धों की उपेक्षा के इस गलत प्रवाह को रोके। क्योंकि सोच के गलत प्रवाह ने न केवल वृद्धों का जीवन दुश्वार कर दिया है बल्कि आदमी-आदमी के बीच के भावात्मक फासलों को भी बढ़ा दिया है। वृद्धावस्था जीवन की सांझ है। वस्तुतः वर्तमान के भागदौड़, आपाधापी, अर्थ प्रधानता व नवीन चिन्तन तथा मान्यताओं के युग में जिन अनेक विकृतियों, विसंगतियों व प्रतिकूलताओं ने जन्म लिया है, उन्हीं में से एक है वृद्धों की उपेक्षा। वस्तुतः वृद्धावस्था तो वैसे भी अनेक शारीरिक व्याधियों, मानसिक तनावों और अन्यान्य व्यथाओं भरा जीवन होता है और अगर उस पर परिवार के सदस्य, विशेषतः युवा परिवार के बुजुर्गों/वृद्धों को अपमानित करें, उनका ध्यान न रखें या उन्हें मानसिक संताप पहुँचाएं, तो स्वाभाविक है कि वृद्ध के लिए वृद्धावस्था अभिशाप बन जाती है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि वृद्ध व्यक्ति ज्ञान और अनुभव के अमूल्य स्रोत हैं और उनके पास शांति, सतत विकास और हमारे ग्रह की सुरक्षा में योगदान करने के लिए बहुत कुछ है।’ फिर वृद्धजन क्यों स्वयं को इतना खाली, एकांकी एवं उदासीन बनाये हुए हैं? वृद्धावस्था में खालीपन एक बड़ी समस्या है। कहावत भी है कि खालीपन सजा भी है और मजा भी है। यह वृद्धावस्था को प्राप्त लोगों पर ही निर्भर है कि वे खालीपन में मजा ले रहे हैं, आनन्द ले रहे हैं या उसे सजा बना रहे हैं। धर्म की जड़ पाताल में और पाप की जड़ अस्पताल में, यह साक्षात् अनुभव करते हुए वृद्धजन अपने वृद्धावस्था को उपयोगी बनाये।
विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाने की सार्थकता तभी है जब हम वृद्धों की देखभाल करने के दायित्व का निर्वाह ईमानदारी से करें, जिन्होंने कभी हमारी देखभाल की थी, सर्वोच्च सम्मानों में से एक है। उम्र दरअसल उन वर्षों की गिनती है जिनमें दुनिया ने हमारे साथ यात्रा की है। बुजुर्ग जीवित पुस्तकालय हैं, जिनमें ज्ञान की अनगिनत दुनिया छिपी है। उनका सम्मान करना अपने भविष्य का सम्मान करना है, और यही शक्ति, अनुग्रह और विरासत को सहेजने का मार्ग है। यह दिवस हमें यह संकल्प लेने का अवसर देता है कि हम बुजुर्गों को केवल जीने के लिए ही नहीं, बल्कि सम्मान और उत्साह के साथ जीने का अधिकार देंगे। हमें अतीत का सम्मान करना है, वर्तमान को संजोना है और सभी उम्र के लोगों के लिए एक समावेशी भविष्य की आशा करनी है।