गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थान में इन दिनों कोयला का गहरा संकट मंडरा रहा है। कोयला का यह संकट प्रदेश में बिजली उत्पादन की दृष्टि से अब एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है।
राजस्थान में कोयले के संकट के चलते एक बार फिर से बिजली संकट की आहट होने लग गई है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा बुधवार को दिल्ली यात्रा पर थे। उन्होंने कोयला संकट की समस्या का समाधान निकालने के संबंध में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह और केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी से लंबी चर्चा की और राजस्थान के ऊर्जा क्षेत्र में आ रही दिक्कतों का स्थाई समाधान निकालने का आग्रह किया। प्रदेश के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर भी मुख्य्मंत्री भजन लाल शर्मा के साथ थे।
राजस्थान में कोयला संकट के मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली में उच्च स्तर पर लगातार मंथन किया जा रहा है और मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा केंद्रीय ऊर्जा और कोयला मंत्री के साथ ही केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से मिले है और इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए उनका सहयोग भी मांगा है।
मुख्यमंत्री के इन प्रयासों के बाद बताया जा रहा है कि दिल्ली से ऊर्जा विशेषज्ञों का एक दल राजस्थान आएगा और प्रदेश में बिजली संकट की स्थिति की समीक्षा करेगा। यह दल बिजली उत्पादन, प्रसारण और डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़ी दिक्कतों का रिव्यू भी करेगा। साथ ही टीम बिजली से जुड़ी केन्द्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी विस्तार से चर्चा करेगी। उच्च स्तरीय बैठक में तय किया गया कि एक्सपर्ट बिजली की मौजूदा स्थिति का अध्ययन करेंगे। बैठक में राजस्थान के ऊर्जा क्षेत्र में आ रही दिक्कतों के स्थाई समाधान पर भी चर्चा हुई है।
राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के अनुसार राजस्थान में इन दिनों कोयला संकट की स्थिति विकट होती जा रही है। समय पर कोयला की आपूर्ति नहीं होने पर प्रदेश में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बिजली का उत्पादन करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। प्रदेश ने मौजूद कोयला संयंत्रों कोटा थर्मल में तीन दिन,सूरतगढ़ थर्मल में एक दिन, छबड़ा थर्मल में भी एक दिन, छबड़ा सुपर क्रिटिकल में पांच दिन, कालीसिंध थर्मल पावर प्रोजेक्ट में चार दिनों का कोयला ही बचा है। इसी प्रकार सूरतगढ़ सुपर क्रिटिकल में भी सात दिन का कोयला शेष रह गया है। यदि विदेश से आयातित कोयले की गिनती नहीं करें तों तो यहां पर भी सिर्फ चार दिन का कोयला ही शेष बचा है। राजस्थान में कोयला आधारित सभी पावर प्लांट को अपनी पूरी क्षमता यानी फुल लोड पर चलाने के लिए प्रदेश को हर दिन 23 रैक कोयले की दरकार है,जबकि वर्तमान में कोल इंडिया से राजस्थान को औसतन 15 रैक ही कोयला मिल रहा है।
दरअसल राजस्थान में लगातार मंडरा रहें कोल संकट से राज्य सरकार की चिंता बढ़ गई है। छत्तीसगढ़ आदि में माइनिंग में हो रही देरी के कारण इस संकट के आगामी अक्टूबर तक बने रहने की संभावना है। राजस्थान के कोयला संकट को दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ में माइनिंग ही एकमात्र स्थाई विकल्प है। छत्तीसगढ़ के परसा पूर्वी कांटा बासन (पीईकेबी) से राजस्थान में सितम्बर 23 में अंतिम बार कोयला आया था,जबकि दूसरे फेज के लिए अधिकांश मंजूरी मिलने के बावजूद भी राज्य को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पीईकेबी माइनिंग के 1136 हेक्टेयर के दूसरे फेज से राजस्थान को बड़ी उम्मीद है। यहां माइनिंग शुरू होने पर प्रदेश को रोजाना 10 रैक कोयला मिलेगा। यहा माइनिंग के लिए पेड़ों की कटाई के बाद भी ओवर बर्डन रिमूवल में दो माह का समय लगेगा,लेकिन यदि अगर पेड़ कटाई में देरी हुई तो बरसाती सीजन की शुरुआत से ही ओवर बर्डन अटक जाएगी। ऐसे में अगले अक्टूबर माह तक राजस्थान में कोयले का विकट संकट रहेगा।
मुख्यमंत्री भजन लाल ने राजस्थान में कोयले का विकट संकट दूर करने के लिए पहल करते हुए जो कदम उठाए है इससे उम्मीद है कि प्रदेश इस संकट से शीघ्र ही उबरेगा। हालाकि इस संकट से उबरने के लिए केन्द्र सरकार से राजस्थान को समुचित हल निकाले जाने की उम्मीद है। प्रदेश की पिछली सरकारें भी हर वर्ष इस समस्या से जूझती रही है और हर बार केंद्रीय मंत्रियों से इस बारे में गुहार लगानी पड़ती है। प्रदेश के सांसदों ने इस मुद्दे को कई बार संसद में उठाया है। अब केंद्र के साथ ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकारें हैं ।इसलिए इस समस्या के शीघ्र समाधान की उम्मीद है।
देखना है कि प्रदेश में डबल इंजन की सरकार बनने के बाद कोयला संकट के स्थाई निराकरण के लिए होने वाले प्रयास कितने अधिक सार्थक परिणाम सामने आयेंगे।