शंघाई सम्मेलन- बदलते वैश्विक परिदृश्य में नई चुनौतियाँ

Shanghai Conference- New Challenges in the Changing Global Scenario

डॉ रघुवीर चारण

दुनिया में ट्रेड वॉर अपने चरम पर है हालिया ट्रंप टैरिफ से भारत सहित कई देशों ने वैश्विक बाजार में अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए कूटनीतिक समीकरण रचने शुरू किए।पश्चिम देशों के एकाधिकार नीति के विरुद्ध हालही में सम्पन्न शंघाई शिखर सम्मेलन काफ़ी चर्चा में रहा जिसने ग्लोबल साउथ की अवधारणा को बुलंद किया ।
वर्ष 2025 के शंघाई सम्मेलन का आयोजन चीन के तियानजिन शहर में हुआ जहाँ शंघाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देशों ने भाग लिया जिसमें चीन,भारत,रूस और मध्य एशियाई देशों ने ट्रेड से टेरर तक सभी वैश्विक मुद्दों पर सार्थक चर्चा की।25वाँ एससीओ सम्मेलन अमरीकी प्रभुत्व के विरुद्ध केंद्रित रहा। जहाँ सदस्य देशों ने बहुध्रुवीयता,बहुपक्षवाद और वैश्विक दक्षिण नेतृत्व पर आधारित एक नई वैश्विक व्यवस्था पर ज़ोर दिया।

शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना वर्ष 2001 में चीन के शंघाई शहर में हुई जिसमें चीन,रूस,कज़ाकिस्तान,किर्गिस्तान और तजाकिस्तान सहित पाँच देशों को शंघाई फाइव के नाम से जाना जाता था बाद में उज़्बेकिस्तान को भी शामिल किया गया। संगठन का विस्तार 2017 में भारत और पाकिस्तान को फिर 2023 में ईरान और 2024 में बेलारूस को शामिल करने के लिए किया गया जिससे कुल सदस्य देशों की संख्या दस हो गई।भौगोलिक रूप से एससीओ दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है जिसका जीडीपी में क़रीब 20 प्रतिशत योगदान है यह संगठन आतंकवाद के ख़िलाफ़ समन्वित प्रयास, क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया था ।

शिखर सम्मेलन में भारत,रूस और चीन ने एकता का संदेश दिया तथा पश्चिमी प्रभुत्व के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की।भारत ने एससीओ सम्मेलन में प्रमुख भूमिका निभाई जहाँ भारत की आत्मविश्वासी और सतर्कशील छवि देखने को मिली अर्थात् एक ऐसा राष्ट्र जो अपनी संप्रभुता का त्याग किए बिना मानदंडों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।तियानजिन में भारत ने “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य पर जोर दिया” जो हमारी “वसुधैव कुटुम्बकम”परंपरा का हिस्सा है भारत की ये दार्शनिक सोच वर्तमान समय में बहुत प्रासंगिक है जहाँ एक तरफ़ दुनिया युद्धों से जूझ रही है उस समय भारत ने विश्व को एकता और शांति का पैग़ाम दिया।

एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत ने आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता पर बल दिया अर्थात् क्षेत्रीय संगठन को दोहरे मानदंडों से ऊपर उठकर सामूहिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन में आंतकवाद,अलगाववाद और जातिवाद से उपजी वैश्विक समस्याओं को साझा चुनौती बताया। एससीओ पर भारतीय दृष्टिकोण को तीन स्तंभों यानी सुरक्षा,संपर्क और अवसर में रेखांकित किया तथा दुनिया के समक्ष भारत की प्रगतिशील विकास गाथा का उल्लेख किया।

शिखर सम्मेलन में आतंकवाद,उभरती प्रौद्योगिकी,ऊर्जा सहयोग और वित्तीय आत्मनिर्भरता पर चर्चा हुई जिसमें भविष्य के रोडमैप और ग्लोबल साउथ की रणनीति पर जोर दिया गया ।तथा सभी सदस्यों राष्ट्रों ने एकमत होकर सयुंक्त घोषणा पत्र जारी किया जिसकी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं- आतंकवाद के ख़िलाफ़ दोहरे मापदंड की निंदा एवं सीमा पार आतंकवाद रोकने पर साझा प्रयास ,क्षेत्रीय सुरक्षा पर ज़ोर,वैश्विक एकता पर सतत विकास ,एससीओ थिंक टैंक समूह की सराहना ,आर्थिक सहयोग का विस्तार सहित कई महत्वपूर्ण विषयों का ज़िक्र किया ।