शशि सहगल की कविताओं का मंचन : रेत और इंद्रधनुष

रावेल पुष्प

मैंने बहुत बार

लिखनी चाही कविता

संवेदना से अभिभूत होकर

पर लिखने तक संवेदना

चिथड़े चिथड़े होकर बिखर जाती है

अब मैं/उन बिखरे हुए टुकड़ों को

समेट- सहेज कर रखती हूं

करती हूं कोशिश पहचानने की हर चिथड़ा

होड़ लगा आगे आना चाहता है

बदहवास सी मैं

सभी को पिरोना चाहती हूं कविता में

इतने में कान बजबजाने लगते हैं

बच्चे की आवाज से -मम्मी भूख लगी है

सारे के सारे चिथड़े उसके मुंह में ठूंस

हताश मैं देखती हूं

कविता को रोटी में बदलते हुए

यह कविता है एक बेहद संवेदनशील कवियित्री की, जिनकी कविताएं जहां एक नारी की संवेदना को बड़े ही खूबसूरत अंदाज में इजहार करती हैं कि कैसे एक नारी कई- कई खंडों में जीती है, वहीं आज की सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों पर भी टिप्पणी करने से गुरेज नहीं करती, और जिनका नाम है- शशि सहगल!

शशि सहगल की कविताओं से गुजरना कहीं तपती रेत के सूखेपन का एहसास है तो कहीं जीवन के विविध रंगों के बनते इंद्रधनुष को देखने जैसा है, शायद इसीलिए उनकी बीस कविताओं पर आधारित एक ऐसी रंग प्रस्तुति कोलकाता में हुई जिसे देखकर प्रबुद्ध दर्शक अभिभूत हो गए और उनके मुंह से बेसाख़्ता निकल पड़ा- वल्लाह, कविताओं का ऐसा अद्भुत मंचन!

इस प्रस्तुति को अंजाम दिया कोलकाता की सक्रिय रंग संस्था लिटिल थेस्पियन ने और इसकी संकल्पना और निर्देशन किया रंग जगत की प्रवीण रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला ने और प्रस्तुति का नाम था- रेत और इंद्रधनुष!

मदन हालदार के मंच संयोजन में कहीं पुष्प गुच्छों से सुसज्जित झूला, कहीं सीढ़ियां,कहीं पर्दे की ओट और नृत्य के लिए उन्मुक्त प्राकृतिक वातावरण का संयोजन और फिर पार्श्व से उमा की संगीत योजना से आबद्ध संगीत की स्वर लहरियां, मंजे हुए जयदीप राय की प्रकाश योजना पूरी प्रस्तुति को एक अलग ही आयाम दे रहा था। शशि सहगल की काव्य पंक्तियों के पाठ और साथ ही युवा रंगकर्मियों द्वारा अभिनय तथा नृत्य कविताओं के भावों को दर्शकों के अंदर तक भर देने में पूरी तरह सक्षम था । मसलन कुछ काव्य पंक्तियां देखें-

पेड़ की आड़ी-तिरछी परछाईं

हर रोज आंगन के कोने से शुरू होकर

फैल जाती है पूरे फर्श पर

सरकती-सी चढ़ती है दीवार के ऊपर

कितना हास्यास्पद है

रोज एक ही तरफ से जिंदगी जीना

या फिर एक और काव्य पंक्ति –

सांप का खेल दिखाता है संपेरा

जितना भी दूध पिलाओ

बढ़िया किस्म का जहर उगलता है

…………

और मेरी चेतना जूझ रही थी

सांपों की किस्म वाले आदमियों से

ऐसी बीस कविताओं की अर्थ-छवियों को मंच पर साकार होते देखना और साथ ही महसूस करना बड़ा ही सुखकर और एक नये आस्वाद का अनुभव दर्शकों को करा गया।

लिटिल थेस्पियन ने अपने प्रतिष्ठाता रंगकर्मी अज़हर आलम, जिन्हें पिछले साल ही कोरोना ने छीन लिया था, उनके जन्मदिन पर इस प्रस्तुति ने एक रंगकर्मी को उनकी जीवन और रंग- जगत की सहयात्री उमा झुनझुनवाला द्वारा सच्चे अर्थों में स्मृति को संजोने/सहेजने का अभिनव और सफल प्रयास किया। मंच पर प्रस्तुति में महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों के युवा छात्र थे, जिन्हें रंगकर्म में पारंगत करने की दिशा में प्रयासरत थे दिवंगत अज़हर आलम ही और इस तरह उनके प्रति श्रद्धा में शामिल थे- नेहा यादव, प्रियंका सिंह,हीना परवेज़,पार्वती कुमारी शॉ,मनोहर कुमार झा, राकेश कुमार और राहुल शर्मा।

कोलकाता में कविताओं के हो रहे मंचन को दर्शकों की भरपूर सराहना मिलना निश्चय ही इसके देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले तमगे को सुरक्षित करता है।