संदीप ठाकुर
महाराष्ट्र में हल्ला हंगामे के बाद जो परिणाम सामने आया वह न सिर्फ बेहद
चौंकाने वाला बल्कि भाजपा के राजनीतिक विवशता की पराकाष्ठा काे दर्शा
रहा है। वह भाजपा की मजबूरी,लाचारी और बेबसी की तरफ साफ साफ इशारा कर रहा
है। गोदी मीडिया,समान विचारधारा वाले लेखक, पैरोल पर काम करने वाले
पत्रकार और भक्तों की टोली बेशक इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक कहे लेकिन
सही मायने में देखा जाए ताे यह एकनाथ शिंदे का पार्टी के रणनीतिकारों के
मुंह पर करारा तमाचा है। यह बात भाजपा भी जानती है। यदि यह भाजपा की जीत
हाेती ताे इसका ढिंढोरा पार्टी के नेता आज तक पीट रहे हाेते। लेकिन ऐसा
हुआ क्या ? पार्टी ने ज्यादा उत्साह तक नहीं दिखया। यदि सब कुछ भाजपा की
प्लानिंग के हिसाब से हुआ होता तो हैदराबाद में हुई पार्टी की राष्ट्रीय
कार्यकारिणी में इसका कैसा डंका बजता ! लेकिन हाल ही में संपन्न दाे
दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महाराष्ट्र के इतने बड़े घटनाक्रम का
कोई जिक्र तक नहीं हुआ। कायदे से देवेंद्र फडणवीस को राष्ट्रीय
कार्यकारिणी का हीरो होना चाहिए था लेकिन वे इसमें शामिल होने के लिए
हैदराबाद भी नहीं गए। महाराष्ट्र के पूरे घटनाक्रम को इतना लो प्रोफाइल
रखा गया तो उसका मतलब है कि जो कुछ हो रहा है वह भाजपा की मजबूरी है।
भाजपा कोई त्याग करने वाली पार्टी ताे है नहीं । भाजपा काे एक शिवसैनिक
काे मुख्यमंत्री बनाना पड़ा । क्योंकि वह मुख्यमंत्री बनने पर अड़ गया।
उसके जिद के आगे सौदेबाजी में भाजपा रणनीतिकारों की एक न चली। बताते चलें
कि ये वही शिंदे हैं जिन्होंने पिछली पंचवर्षीय सरकार में सार्वजनिक
कार्यक्रम में अपना इस्तीफा देकर शिवसेना पर भाजपा गठबंधन से बंधन
तोड़ने का दवाब बनाया था। उनका कहना था कि भाजपा शिवसेना काे खाने की
चेष्टा कर रही है। बात यहीं नहीं रुकी। फिर शिवसेना से आए राहुल नार्वेकर
को विधानसभा का स्पीकर बनाना पड़ा। कहा कुछ भी जाए लेकिन यह मजबूरी के
सिवा और कुछ नहीं ।
राहुल नार्वेकर पहले शिवसेना में थे। वहां से एनसीपी में गए और पांच-छह
साल पहले ही भाजपा में शामिल हुए हैं। लेकिन मूलत: वे हैं ताे शिव सैनिक
ही। एक शिव सैनिक मुख्यमंत्री है और एक पूर्व शिव सैनिक स्पीकर है। फिर
भी गोदी मीडिया इस घटनाक्रम काे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बता रहा है।
पहली नजर में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार काे गिराना मास्टर
स्ट्रोक दिख रहा है लेकिन उसके बाद जैसी राजनीति हो रही है, उसे देख कर
तो लग रहा है कि यह सारा काम भाजपा मजबूरी में कर रही है। नहीं ताे काैन
सी ऐसी पार्टी है जिसे मुख्यमंत्री रह चुके अपने नेता काे उप मुख्यमंत्री
बनाना पड़े। लेकिन अंदरूनी सत्ता समीकरण की वजह से देवेंद्र फडणवीस
महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री हैं। उन्हें मजबूरी में उप मुख्यमंत्री का
पद लेना पड़ा है। भाजपा का कोई भी कद्दावर नेता इसे पार्टी का मास्टर
स्ट्रोक नहीं बता रहा है। यह गीत यदि कोई गा रहा है ताे वह है गोदी
मीडिया के गिने चुने टी वी एंकर।
अब सवाल है कि यह कथित मास्टरस्ट्रोक कितना कारगर होगा ? क्या एकनाथ
शिंदे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर और भाजपा की शह पर शिव सेना पर
कब्जा कर लेंगे ? फिलहाल ऐसा लग ताे नहीं रहा है। लाेग का मानना है कि
उद्धव ठाकरे बेशक बाल ठाकरे की तरह गरजने बरसने वाले नेता न हों लेकिन
हैं ताे बाल ठाकरे के बेटे न। तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद की तरह
जमीन से जुड़े और पिछड़ों के मसीहा वाली छवि के नेता नहीं हैं या हेमंत
सोरेन भी शिबू सोरेन की तरह जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ने वाले नेता
नहीं हैं या एमके स्टालिन भी करुणानिधि का करिश्मा लिए हुए नहीं हैं फिर
भी इन फिर भी ये नेता पार्टी का नेतृत्व ताे कर ही रहे हैं न। उसी तरह
अभी तस्वीर चाहे जैसी दिख रही हो शिवसेना ठाकरे परिवार से बाहर नहीं
जाने वाली है। शिव सैनिक असल में ठाकरे परिवार के सैनिक हैं। जब वे बाल
ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे के साथ नहीं गए तो क्या एकनाथ शिंदे के साथ चले
जाएंगे ? देखना यह है कि तात्कालिक सत्ता के लिए अल्पमत के नीचे बहुमत
होते हुए भी भाजपा कितने दिनों तक काम कर पाती है।