मुझको “उसका” कोई पैग़ाम है देना वर्ना
चन्द सांसों के लिए कौन यहां आया है
दीपक कुमार त्यागी
देश व दुनिया में विभिन्न मंचों से अपनी शायरी से इन्सानियत का पैग़ाम देने वाले प्रसिद्ध कवि शिवकुमार बिलगरामी आज के दौर के एक बहुत ही महत्वपूर्ण गीतकार और शायर है । आज हम “शख्सियत कॉलम” में उनकी शख्सियत से जुड़े कुछ पहलुओं को जानते हैं। प्रसिद्ध कवि , गीतकार शिवकुमार बिलगरामी का जन्म उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के बिलग्राम कस्बे के निकट महसोनामऊ गांव में हुआ था । इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बीजीआर इंटर कॉलेज बिलग्राम से पूर्ण की। तत्पश्चात उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से यह लखनऊ आ गए और यहीं से इन्होंने अपनी बीए और एमए की पढ़ाई पूरी की । लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एमए करने के पश्चात यह सिविल सर्विस की तैयारी करने के उद्देश्य से दिल्ली आ गए । यहां इन्होंने भारतीय संसद अर्थात लोकसभा में प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी के रूप में सर्विस ज्वाइन की और यहीं से संयुक्त निदेशक पद से वह हाल ही में सेवा निवृत्त हुए । शिवकुमार बिलगरामी के दो ग़ज़ल संग्रह – “नई कहकशां” और “वो दो पल” – प्रकाशित हो चुके हैैं । “वो दो पल” शिवकुमार बिलगरामी के द्वारा लिखी गई ग़ज़लों का एक बहुचर्चित ग़ज़ल संग्रह है । इस ग़ज़ल संग्रह को वर्ष 2018 में प्रकाशित किया गया था। इस ग़ज़ल संग्रह में कुल 101 ग़ज़लें हैं जिनमें से अधिकतर ग़ज़लों को देश-विदेश के कई नामचीन गायकों द्वारा गाया जा चुका है । इस ग़ज़ल संग्रह को वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा प्रतिष्ठित “अदम गोंडवी सम्मान” से सम्मानित किया गया। इस ग़ज़ल संग्रह से संगीतबद्ध की गई ग़ज़लें यूट्यूब चैनल “Musictower MT” सहित कई अन्य चैनलों पर उपलब्ध हैं ।
अपनी शिक्षा के दौरान शिवकुमार बिलगरामी ने हिंदी , संस्कृत , अंग्रेजी और उर्दू साहित्य का गहराई से अध्ययन किया । शिवकुमार बिलगरामी ने सामाजिक विषमता, स्त्री विमर्श , बिखरते प्राचीन मूल्यों के प्रति चिंता , महत्वहीन होते जा रहे मानव संबंध , परिवार में बिखराव , अकेलापन , प्रवासन की समस्या , प्रकृति संरक्षण, समाज में व्याप्त स्वार्थपरता , राजनीति के साथ-साथ देश भक्ति , प्रेम और अध्यात्म जैसे विषयों पर बहुत ही जिम्मेदारी से समय-समय पर काफी कुछ लिखा है । शिवकुमार बिलगरामी के लेखन की एक विशेषता यह है कि उनके काव्य में बहुत अधिक सटीकता और कसाव है । उनके द्वारा लिखित श्री गणेश स्तुति , श्री राम स्तुति , शिव स्तुति , हनुमत ललिताष्टकम् , जय हिंद वंदे मातरम और पृथ्वी मंथन हिंदी काव्य की सर्वोत्कृष्ट कृतियों में से हैं ।
शिवकुमार बिलगरामी के गीत ग़ज़लों को अनुराधा पौडवाल , के एस चित्रा , जसपिंदर नरूला , हेमा सरदेसाई , महालक्ष्मी अय्यर , साधना सरगम , सुष्मिता दास , आख्या सिंह , सुरेश वाडेकर , शाद ग़ुलाम अली , कैलाश खेर , शान , रियाज़ खान , राजेश सिंह , निशांत अक्षर और सरिता सतीश मिश्रा , दक्ष और सक्षम जैसे वर्तमान दौर के मशहूर सिंगर्स द्वारा गाया गया है । प्रेम और अध्यात्म के साथ-साथ उनका लेखन आज के दौर की कई ज्वलंत समस्याओं को केंद्र बिंदु में रहकर लिखा गया है । वह बड़ी निर्भीकता और निष्पक्षता से अपने लेखन में मानवता का संदेश देते हैं । उनकी कुछ चर्चित रचनाओं को यहां उद्धृत किया जा रहा है ।
1-
न जाने कौन सा आनन्द इस अतिवाद में है
जिसे देखो वही अब युद्ध के उन्माद में है
कभी भी युद्ध से होती नहीं है हल समस्या
समर्थक युद्ध का फिर भी बड़ी तादाद में है
कहीं भी जंग हो अक्सर सज़ा पाते हैं बेबस
विगत की त्रासदी अब तक हमारी याद में है
सुना है जब से मैंने यह कि जल्दी युद्ध होगा
मैं सच कहता हूं तब से मन मेरा अवसाद में है
तुम अपनी चुप्पियां तोड़ो मैं अपनी बात रक्खूं
नहीं है वो मज़ा चुप्पी में जो संवाद में है
2-
हमारा कल तुम्हारा कल मुहब्बत है
हज़ारों मसअलों का हल मुहब्बत है
धमाकों में न तुम घायल न हम घायल
कहीं भी बम फटे घायल मुहब्बत है
जहां भी हो धरा प्यासी वहीं बरसे
जो बे मौसम वही बादल मुहब्बत है
लगाकर आंख में जिसको नज़र बदले
वही सुरमा , वही काजल मुहब्बत है
मेरी नज़रों में इस दुनिया की हर इक शय
जमीं , पानी , हवा , जंगल मुहब्बत है
3-
सैंकड़ों ग़ोते समन्दर में लगाए हैं
तब कहीं दो-चार मोती हाथ आए हैं
ज़िन्दगी अपनी भी जैसे “ऑक्टोपस” हो
रंग इसने भी उसी जैसे दिखाए हैं
अक़्ल आती है कहां बादाम खाने से
धोखे अपनों से हज़ारों बार खाए हैं
जंगली फूलों का रखवाला नहीं कोई
हौसला फूलों का है जो मुस्कुराए हैं
दर्द मेरा भी समझ ऐ नींद के मालिक !
आंख में सपने बड़ी मुश्किल से आए हैं
4-
फिर से रूठा है मुझे प्यार जताने वाला
मैं भी इस बार नहीं उसको मनाने वाला
सिर्फ़ तू चांद का टुकड़ा है कोई चांद नहीं
मैं नहीं तुझको मेरा चांद बताने वाला
मेरी सूरत तेरी आंखों में नहीं दिखती है
मैं भी तुझको नहीं आंखों में बसाने वाला
तेरी बातों में मेरा ज़िक्र नहीं आता है
मैं भी तुझको नहीं गुफ़्तार में लाने वाला
तेरी मर्ज़ी है कि तू साथ रहे या न रहे
मैं नहीं रोज़ तेरे नखरे उठाने वाला
5-
ज़िन्दगी की शम्अ को ज़ब्ते-गम बुझा न दे
थक चुकी ये ज़िन्दगी मुझको हौसला न दे
दानादिल को है पता हाले-दिल ग़रीब का
सब्र तू बनाए रख सब्र से वो क्या न दे
क्या मुझे पता नहीं प्यार की सज़ा है क्या
क़ैद दे न दे मगर हिज्र की सज़ा न दे
आज भी है मुझको डर, तुझ से ऐ अना! मेरी
जश्ने – ज़िन्दगी में तू मौत को भुला न दे
आग आग आग है हर किसी ज़ुबान पर
आग को दबाए रख आग को हवा न दे
6-
राजभवनों में बने कमरों की चाहत और है
आठ बाई आठ के कमरों की हसरत और है
ज़िन्दगी कटने को कट जाती है नफ़रत में मगर
प्यार से लबरेज जीवन की हक़ीक़त और है
यूं तो हैं पैसा कमाने के हज़ारों रास्ते
इल्म से पाई गई दौलत की बरक़त और है
मुल्क मज़हब पर नहीं इंसानियत पर ध्यान दें
इसकी वुस्अत और है औ’र इसकी रंगत और है
बेसहारों के लिए बनना सहारा बाख़ुशी
यह कमाई और है दुनिया की दौलत और है
शिवकुमार बिलगरामी की इन उपरोक्त चंद रचनाओं को पढ़कर ही उनकी उत्कृष्ट लेखनी का अंदाजा हो जाता है, वह भारतीय साहित्य जगत की एक ऐसी अनमोल धरोहर हैं जिसकी लेखनी इन्सानियत का पैग़ाम देते हुए लोगों के दिलो-दिमाग पर छा जाने का कार्य करती है।