नरेंद्र तिवारी
भाजपा मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने जा रही है। यह चर्चा अब आम हो गयी है। चेहरे का परिवर्तन बीजेपी का आंतरिक मामला है। इस पर भाजपा आलाकमान कब निर्णय लेता है। इस प्रकार का कोई निर्णय लेता भी है या नहीं पर जिस तेजी के साथ अब यह चर्चा चल रही है। इससे पहले एमपी की सियासत में मुख्यमंत्री और वह भी शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को बदलने की चर्चाओं में इतनी गति नहीं रही।दरअसल एमपी की राजनीति में अब शिवराज का चेहरा पुराना हो गया है। लंबे समय से जो चेहरा मतदाताओं में आकर्षण का केंद्र बना हुआ था। क्या अब उस चेहरे की चमक कम हो चली है ? क्या जनता के मध्य मामा शिवराज अब उतने लोकप्रिय नहीं रहे जो भाजपा को 2023 में सत्ता के सिंहासन पर पहुचाने का कारण बन सके ? वें कौनसे कारण है जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चेहरे को परिवर्तन किये जाने की हवा दे रहे है ? शिवराज के बाद कौन होगा 2023 में भाजपा का एमपी में मुख्यमंत्री का चेहरा ? इन सवालों के जवाब ढूंढ़तें वक्त मध्यप्रदेश की सियासत में शिवराज के उदय होने, लंबे समय तक एमपी के राजनैतिक आकाश में ध्रुवतारे की मानिंद अपनी रोशनी से बीजेपी को सत्ता के सिंहासन पर आरूढ़ रखने ओर प्रदेश की जनता के मर्म को समझकर, मामा का रिश्ता जोड़कर भाजपा को सफलता-दर-सफलता दिलाने वाले शिवराज सिंह चौहान के विकल्प की तलाश इतनी सरल भी नहीं है, जितनी चर्चाओं में सुनाई दे रही है। प्रदेश में चेहरे परिवर्तन के कयास इससे पूर्व भी लगे जो निराधार साबित हुए। दरअसल एमपी भाजपा में शिवराज चौहान की राजनीति अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से शुरू होतें हुए भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पांच बार लोकसभा सदस्य ओर चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज शिवराज ने एमपी की 29 लोकसभाओं ओर 230 विधानसभाओं को घुमा है। हर जिले तहसील के पार्टी कार्यकर्ताओं को वें नाम से जानतें है। प्रदेश के सामाजिक और जातीय गणित से परिचित है। बरसों उन्होंने प्रदेश में भाजपा के संगठन को मजबूत किया है। मजबूत सांगठनिक क्षमता के बल पर मध्यप्रदेश को भाजपा का गढ़ बनाने में सफलता प्राप्त की है।
एमपी 2003 के विधानसभा में भाजपा की सरकार बनाने में कढ़ी मेहनत करने वाले शिवराज सिंह ने 2008 और 2013 में अपने दम पर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया था। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुमत से कम 109 विधानसभाओं में विजयी का परचम लहराया। सरकार कमलनाथ के नैतृत्व में बनी 15 महीने चलने के पश्चात कांग्रेस में जारी आंतरिक कलह कमलनाथ सरकार के पतन का कारण बन गयी। शिवराज चौहान राजनीति में कर्मठता के साथ किस्मत के भी धनी है। 2020 में वह चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। लोकसभा चुनाव 2014 में देश मे मोदी मैजिक भले चल रहा हो, किंतु प्रदेश में 27 लोकसभा शिवराज के करिश्मे के बल पर भाजपा जीत पाई थी। 2019 में भी शिवराज सिंह की सांगठनिक क्षमता के बल पर कमलनाथ सरकार के होते हुए भी 28 लोकसभा सीटों पर विजय होना शिवराज की विराट सफलता मॉनी जाना चाहिए। राजनीति के इस आम से लगने वाले चरित्र का जमीनी जुड़ाव गहरा है। बहरहाल चर्चा मध्यप्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बदलने की है। जिसके पक्ष में यह तर्क दिए जा रहें है कि वें प्रदेश में फैले सरकारी भष्ट्राचार पर लगाम नहीं लगा पाए है। बेरोजगारी की समस्या पर भी सरकार का नियंत्रण खत्म सा हो गया। प्रदेश में अपनी चौथी पारी में उनकी सांगठनिक पकड़ कमजोर पड़ गयी है। प्रदेश की सरकार अफसरों के भरोसे चल रहीं है। मंत्री, विधायकों, सांसदों से अधिक ताकतवर जिले के कलेक्टरों को बना दिया है। सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग को लेकर प्रदेश सरकार से नाराज चल रहे है। मंचों से अधिकारियों, कर्मचारियों का फ़िल्म नायक की तर्ज पर निलंबन भी सरकारी कर्मियों की शिवराज के प्रति नाराजगी का कारण है। शायद परिवर्तन के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क यह भी हो सकता है कि प्रदेश में नए मतदाताओं में शिवराज के चेहरे का आकर्षण दिनों-दिन कम होता जा रहा है। उनकी मंचीय घोषणाएं जमीनी स्तर पर क्रियान्वित नहीं हो पा रही हैं। इन सब कारणों से सत्ता विरोधी वातावरण बन गया है। जिसे नियंत्रित करने का एकमात्र उपाय नए चेहरे को सीएम बनाकर 2023 के चुनावी मैदान में उतरने से पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल सकता है। आलाकमान के सामने शिवराज के विकल्प के तौर पर अब ज्योतिरादित्य सिंधिया सबसे मजबूत दावेदार है जिसका कारण उनका बेदाग, ऊर्जावान ओर युवा होना है। प्रदेश के युवा मतदाताओं में सिंधिया का चेहरा आकर्षण का केंद्र बन सकता है। इस रेस में मप्र के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी बने हुए है। उनकी आक्रमक शैली जनता को आकर्षित कर रहीं है। प्रदेश में उन्हें बोलडोजर मंत्री के रूप में खूब सुर्खियां मिल रही है। नरेंद्र सिंह तोमर, बीड़ी शर्मा भी इस दौड़ में शामिल है। भाजपा आलाकमान को यह भी एहसास है कि प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक किसी की भी सरकार को बना बिगाड़ सकता है। गुजरात चुनाव में आदिवासी मतदाताओं का भाजपा की तरफ झुकाव ऐतिहासिक विजयी का कारण बना इस लिहाज से मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री चेहरा भी सामने आ सकता है। आलाकमान ने भाजपा की केंद्रीय समिति से कुछ समय पूर्व शिवराज को हटा कर अपनी नाराजगी के संकेत भी दे दिए थै। चेहरे परिवर्तन के यह कयास कितने सच के करीब है या हर बार की तरह से महज कयास ही साबित होगें। किँतु राजनीति के जानकारों का कहना है कि प्रदेश में 2023 के विधानसभा के चुनाव में विजयी को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने कमर कस ली है। देश के ह्रदय प्रदेश पर भाजपा किसी भी स्थिति में अपनी सत्ता काबिज रखना चाहेगी। इस हेतुक को पूरा करने के लिए पुराने पड़ चुके शिवराज को बदलने में भी केंद्रीय नैतृत्व कोई गुरेज नहीं करेगा। नई सम्भावना को तलाशना वर्तमान बीजेपी की महत्वपूर्ण विशेषता बन गयी है।