लघुकथा: ज़रूरत का रिश्ता

Short story: "Relationship of need"

डॉ सत्यवान सौरभ

रामेश्वरी देवी को मोबाइल चलाना नहीं आता था, पर बेटे की तस्वीर स्क्रीन पर देखना उन्हें अच्छा लगता था। सुबह-सुबह मोबाइल पर घंटी बजी। कोई कॉल नहीं था, एक नोटिफिकेशन था—“Order Delivered”.

उनके बेटे रोहित ने दूध, दवाई और फल का ऑनलाइन ऑर्डर दिया था… अपने घर से, जो कि दिल्ली में था। माँ हरियाणा के छोटे से कस्बे में अकेली रहती थीं।

“बेटा बहुत ध्यान रखता है मेरा,” रामेश्वरी देवी हर किसी से गर्व से कहतीं।
पर सच यह था कि बेटा फोन नहीं करता था, बस महीने में एक बार सामान भिजवा देता था।

एक दिन मोहल्ले की बिटिया आरती आई, बोली,
“अम्मा जी, आपके बेटे का बर्थडे है आज, आपने विश किया?”

रामेश्वरी देवी मुस्कुरा दीं,
“हमारा रिश्ता अब सिर्फ OTP तक सीमित रह गया है बेटा,
बर्थडे विश करने के लिए ‘प्यार’ चाहिए होता है,
ज़रूरत नहीं।”

आरती चुप हो गई।
अम्मा की आँखें भी।
कभी बेटे की फोटो को छूतीं, कभी छत पर उड़ते पंछियों को देखतीं।

रिश्ते जब एहसास से ज़्यादा सुविधा बन जाएं,
तो प्यार की ज़मीन दरकने लगती है।