इशारा

सपना चन्द्रा

“देखो! वहाँ कोई दिव्य चीज है जो हमेशा पर्दे के पीछे रहती है।”

पर्दे के सामने खड़ा व्यक्ति बोला!..”वो क्या है किसी को भी नही मालुम।
कोई इंसान,पुस्तक,या कोई बस्तु है कुछ कहा नहीं जा सकता।”
एक आदेश गुँजती है जिसका पालन करना होता है।”

भीड़ को सम्बोधित करता हुआ वह व्यक्ति बोला..!
“तुमसे से कितने लोग इस रास्ते पर आना चाहोगे.?”अपने हाथ उठाकर बताओ।
यह रास्ता मोह,माया से मुक्त कराती है।जीवन का असली ध्येय क्या है वह बतलाती है।
इसलिए सोच-विचार करके ही हाथ उठाना।”

सबने अपने हाथ हवा में लहराते हुए कहा…

“उनका जो भी आदेश होगा हम सब को मान्य होगा।”

“अगले दो घंटे बाद एक आदेश मिलेगा तुम सब यहीं इंतजार करो।”

दो घंटे के बाद आदेशपत्र में कुछ ऐसा लिखा था जिसे सुनकर भीड़ उतावली हो गई।
मुट्ठियां भींचते लोग ,अपने जबड़े कसते नजर आने लगे।

आखिर एक इशारे पर मानवता मर गई, रक्तपात और लुटपाट मचाते लोग वीर योद्धा की भांति अपना पुरुस्कार लेने को मचल उठे।

पर्दे के पीछे एक तेज अठ्ठास गुँज रहा था जिससे भीड़ अपना इनाम पक्का मान रही थी।