
कितने सफल रहे देश के दुश्मनों के खिलाफ चले दो ऑपरेशन
विवेक शुक्ला
जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ के बीच दूरी तो बहुत है। पर इन दोनों राज्यों में बीते कुछ महीनों के दौरान एक मकसद से देश के दुश्मनों के खिलाफ सघन अभियान चले। इनका लक्ष्य था आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी कुष्ठ रोगों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करना। इन ऑपरेशनों ने साफ संदेश दिया कि देश सीमापार के आतंकवादियों और आंतरिक विद्रोहियों को धूल चटाने के लिए एकजुट है।
ऑपरेशन महादेव जम्मू-कश्मीर की धरती पर एक मील का पत्थर साबित हुआ, जो आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो टॉलरेंस नीति का जीवंत प्रमाण है। जुलाई 2025 में शुरू हुआ यह अभियान, विशेष रूप से पहलगाम हमले के मास्टरमाइंड्स को निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया था। पहलगाम हमला, जिसमें निर्दोष पर्यटकों और नागरिकों को निशाना बनाया गया था, ने पूरे देश को झकझोर दिया था। लेकिन भारतीय सुरक्षा बलों—भारतीय सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस—के संयुक्त प्रयासों ने मात्र 14 दिनों में तीन शीर्ष पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादियों को मार गिराया। इनमें हाशिम मूसा सुलेमान शाह जैसे प्रमुख नाम शामिल थे, जो पाकिस्तान से घुसपैठ कर भारत की शांति भंग करने का प्रयास कर रहे थे। अभियान की सफलता का राज था सटीक खुफिया जानकारी और तकनीकी सिग्नल ट्रैकिंग, जो पहलगाम हमले के दौरान इस्तेमाल हुए सिग्नल से मेल खा रही थी। आतंकवादियों के पास पाकिस्तानी पहचान पत्र, बायोमेट्रिक्स और यहां तक कि चॉकलेट्स जैसे सामान बरामद हुए, जो उनकी विदेशी साजिश को उजागर करते हैं।
इस ऑपरेशन ने देश-विरोधी ताकतों की कमर तोड़ दी क्योंकि यह केवल सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक झटका था। लश्कर जैसे संगठन, जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रतीक हैं, अब भारत की सीमाओं के पास सांस लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। पहले जहां ये तत्व घुसपैठ कर निर्दोषों का खून बहाते थे, अब वे छिपने के लिए मजबूर हैं।
ऑपरेशन महादेव ने स्पष्ट संदेश दिया कि भारत की सुरक्षा एजेंसियां किसी भी साजिश को कुचलने में सक्षम हैं। नतीजतन, जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी आई है, और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में विश्वास बहाल हुआ है। यह सफलता न केवल स्थानीय आबादी को सुरक्षा का आश्वासन देती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की मजबूत इच्छाशक्ति को प्रदर्शित करती है। गृह मंत्री अमित शाह ने इसे “सिंदूर स्ट्राइक” का हिस्सा बताते हुए कहा कि यह आतंक के आकाओं को चेतावनी है कि भारतीय नागरिकों की जान से खेलने का अंजाम विनाशकारी होगा।
अब बात करते हैं ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट की, जो नक्सलवाद के खिलाफ भारत की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है। मई 2025 में छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर शुरू हुआ यह 24-दिवसीय अभियान, करेगुट्टालु पहाड़ियों जैसे नक्सली किलों को लक्ष्य बनाया गया। नक्सलवाद, जो दशकों से आदिवासी क्षेत्रों में विकास को बाधित कर रहा था, अब अपनी अंतिम सांसें ले रहा है। सुरक्षा बलों ने 31 कुख्यात माओवादियों को मार गिराया, जिनमें टॉप लीडर बसवराजू जैसे नाम शामिल थे, जिन पर कुल 1.72 करोड़ रुपये का इनाम था। इसके अलावा, 214 नक्सली ठिकाने और बंकर ध्वस्त किए गए, 450 आईईडी, 818 बीजीएल शेल और 899 कोडेक्स बंडल जब्त किए गए। यह ऑपरेशन न केवल सैन्य दृष्टि से सफल रहा, बल्कि यह नक्सलवाद के ‘यूनिफाइड कमांड’ को तोड़ने में भी कारगर साबित हुआ।
देश-विरोधी ताकतों को धूल चटाने का यह अभियान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि नक्सली लंबे समय से ‘रेड टेरर’ फैला रहे थे। वे विकास परियोजनाओं को नष्ट करते, निर्दोष ग्रामीणों को निशाना बनाते और सरकार को कमजोर दिखाने का प्रयास करते। लेकिन ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट ने इन तत्वों की कमर तोड़ दी। 27 से अधिक विद्रोहियों की मौत, जिसमें शीर्ष कमांडर शामिल थे, ने नक्सल नेटवर्क को विखंडित कर दिया। अब करेगुट्टालु पहाड़ियों पर तिरंगा लहरा रहा है, जो माओवादी किले से शांति का प्रतीक बन गया है। सीआरपीएफ महानिदेशक ने इसे “नक्सलवाद के अंत की शुरुआत” बताया, जो सही मायने में सत्य है। इन परिणामों से न केवल आंतरिक सुरक्षा मजबूत हुई, बल्कि आदिवासी समुदायों में विकास का द्वार खुला है। स्कूल, अस्पताल और सड़कें अब बिना डर के बन सकेंगी, जो नक्सलियों की सबसे बड़ी हार है।
बेशक, इन दोनों अभियानों की सफलता का श्रेय निस्संदेह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह के दूरदर्शी नेतृत्व और सुरक्षा बलों के बहादुर जवानों को जाता है। मोदी जी का विजन “नई भारत” का है, जहां सुरक्षा प्राथमिकता है। उन्होंने संसद में कहाकि “आतंकवादियों को कहीं भी मारेंगे,” जो इन सफलताओं में झलकता है। गृह मंत्री अमित शाह ने इन अभियानों की समयबद्धता और समन्वय सुनिश्चित की। उन्होंने ऑपरेशन महादेव के बाद सैनिकों को सम्मानित करते हुए कहा कि यह “आतंक के आकाओं को स्पष्ट संदेश” है। इसी प्रकार, ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट में उन्होंने 21-दिवसीय सफलता को “रेड हिल पर तिरंगे की जीत” बताया।
ऑपरेशन महादेव में ड्रोन और सिग्नल इंटेलिजेंस का उपयोग, तथा ब्लैक फॉरेस्ट में ग्राउंड ऑपरेशंस का समन्वय, उनके विजन का फल है। इससे न केवल देश-विरोधी ताकतें कमजोर हुईं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि मजबूत हुई। इन अभियानों के व्यापक प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऑपरेशन महादेव ने जम्मू-कश्मीर में शांति प्रक्रिया को गति दी, जहां अनुच्छेद 370 हटाने के बाद विकास तेज हुआ। पर्यटन में वृद्धि, निवेश और स्थानीय रोजगार बढ़े हैं। वहीं, ब्लैक फॉरेस्ट ने छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को मुक्त किया, जहां अब सरकारी योजनाएं—बिना बाधा पहुंच रही हैं। देश-विरोधी ताकतें, जो विकास को रोककर अपनी साजिशें रचती थीं, अब अपनी प्रासंगिकता खो चुकी हैं। ये अभियान साबित करते हैं कि भारत अब कमजोर नहीं, बल्कि एक सुपरपावर के रूप में उभर रहा है।
बेशक,ऑपरेशन महादेव और ब्लैक फॉरेस्ट ने देश-विरोधी ताकतों को पूरी तरह धूल में मिला दिया है। आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी चुनौतियां अब इतिहास का हिस्सा बन रही हैं। यह विजय न केवल सुरक्षा बलों की बहादुरी का सम्मान है, बल्कि पूरे राष्ट्र की एकता का प्रतीक भी। भविष्य में, ऐसे अभियान जारी रहेंगे, और भारत एक सुरक्षित, समृद्ध राष्ट्र के रूप में ोलचमकेगा। पर देश को देश के अंदर और बाहर के शत्रुओं को परास्त करने के लिए सदैव तैयार रहना होगा।