सुशील दीक्षित विचित्र
यह देखना जितना आश्चर्यजनक है उससे भी अधिक चिंताजनक कि यूनाइटेड नेशन और मानवाधिकार संगठन को हमास के आतंकवादियों की तो चिंता है लेकिन इजरायली बंधकों की कोई चिंता नहीं । हमास की बर्बरता को साबित करने वाले साक्ष्यों से आंखें चुराते हुए घुमा फिरा कर इजरायल को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिशे शुरू हो गयी है । क्रूरता की इतनी खुली तरफदारी देख कर अब यह सुनिश्चित करना मुश्किल हो गया है कि दुनिया आतंकवाद मुक्त हो पाएगी । जो मरने वाले निर्दोषों के स्थान पर मारने वाके क्रूरकर्मा आतंकवादियों के अधिकारों के लिए चिंतत हो कर दिखाएं उनसे न्याय और अहिंसा की आशा कैसे की जा सकती है ।
यूएनओ ने तो इजरायल को विशेष युद्ध अपराधी बता दिया । संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिफक कहना है कि इजरायल द्वारा गाजा पट्टी के 23 लाख निवासियों को गाजा छोड़ने का जो अल्टीमेटम दिया है उसके विनाशकारी मानवीय परिणाम होंगे । पता नहीं अप्रासंगिक हो चुका यूएनओ क्या कहना चाहता है लेकिन उसकी बातों का लब्बोलुआब इजरायल को अपने रक्षा अधिकार से वंचित करने वाला है । जहां तक विनाशकारी मानवीय परिणामों की बात है तो यह तो हमास के क्रूर कृत्यों से निकलने भी लगे । वैसे यदि आतंकवाद के खिलाफ इजरायल जैसी कार्यवाही न किये जाने से अधिक विनाशकारी परिणाम अतीत में भी निकले थे इजरायल पर हमास के हमले से भी निकले और आगे भी निकलेंगे । यूएनओ हो या अन्य कोई संस्था किसी भी देश को उसके रक्षा अधिकार से वंचित नहीं कर सकती । हर देश को अपनी रक्षा करने का अधिकार है कैसे इस अधिकार को चुनौती दे सकता है ।
अब जरा हयूमन राइट वॉच की बात करें । इस संस्था ने न तो इजरायली बंधकों के जिंदा रहने के अधिकार पर कुछ कहा , न हमास के आतंकवादियों द्वारा नरसंहार और बलात्कार जैसी घटनाओं पर कुछ बोला लेकिन वह इस बात से बहुत चिंतित है कि इजरायल गाजा पट्टी में आतंकवादियों के विनाश के लिए प्रतिबंधित युद्ध सामग्री का इस्तेमाल कर रहा है जो कि युद्ध नियमों का उल्लंघन है । यह एकतरफा आरोप है बल्कि पक्षपात से भरा हुआ है और आतंकवादियों के हौसले बढ़ाने वाला भी । संस्था परोक्ष रूप से हमास को क्लीनचिट दे रही है जबकि युद्ध नियमों का उल्लंघन हमास ने किया जो कि फिलिस्तीन सरका का हिस्सा है । इजरायल ने युद्ध से पहले नागरिकों को अल्टीमेटम दे दिया था जबकि हमास ने ऐसा तो कुछ नहीं ही किया साथ ही उसने महिलाओं बच्चों और पर्यटकों को भी निशाना बनाया जो कि निश्चित युद्ध अपराध है लेकिन इस पर दोनों ही संस्थाएं चुप्पी ओढ़े हैं ।
अब जरा इजरायल के हालातों की तुलना भारत से करिये तो आप को कई समानतायें मिलेंगी । मसलन दोनों ही इस्लामी आतंकवाद से पड़ित हैं । वहाँ गाजा और यहां कश्मीर पर आतंकवादी काबिज होने की फिराक में हैं या फिर हो चुके हैं । कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का नसंहार होता रहा तब न यूएनओ की कान पर जूं रेंगी और न ह्यूमन राइट ने कुछ वॉच करने की जरूरत समझी लेकिन आतंकवादियों के खिलाफ जैसे ही कार्यवाही शुरू हुयी ह्यूमन राइट आतंकवादियों की ढाल बन कर खड़ा हो गया । इजरायल के साथ भी तो यही हो रहा है । यूएनओ और मानवाधिकारी हमास की जगह इजरायल को धमका रहे हैं । इजरायलियों के नरसंहार की पूरी बेशर्मी से नजन्दाज कर इजरायल को युद्ध अपराधी बताने में लगे हैं । इसके बाबजूद लगे हैं कि संयुक्त राष्ट्र के मंच से आतंकवाद के खिलाफ कठोर कार्यवाही की दर्जनों बार कसमें उठायी गयीं । फिलिस्तीनियों की चिंता गलत नहीं है लेकिन इजराइलियों के नरसंहार को भुला कर चिंता जताना गलत ही नहीं है बल्कि गंभीर गलती है । इसी गलती के कारण आतंकवाद के आज हजारों हाथ हो चुके है । इजरायल पर हमला भी कहीं न कहीं इसी खराब और आतंकवादपीड़ितों को ही दोषी ठहराने वाली सोंच का परिणाम है ।
क्या यह विद्रूप दृष्टिकोण नहीं है कि इजरायल से तो हमले रोकने का दबाब बनाने की कोशिश हो रही है लेकिन हमास द्वारा बंधक बनाए गए इजरायलियों पर कोई चर्चा तक नहीं होती । इनका क्या होगा इस पर न ह्यूमन राइट वाच का कोई बयान आया और न ही यूएनओ के प्रवक्ता ने अभी तक कुछ कहा । बच्चों की हत्या पर , उनको छुड़ाने पर भी कोई विचार किया गया हो ऐसा नहीं लगता । लगता है कि ह्यूमन राइट केवल अपराधियों के राइट वॉच करने के लिए बना अपराधी सहायता समूह है जो निर्दोष नागरिकों और महिलाओं बच्चों के भी राइट वॉच नहीं करता । एक उलटबांसी देखिये कि 57 इस्लामिक देशों के समूह इस्लामिक सहयोग संगठन युद्ध को नागरिकों के लिए घातक बताता है लेकिन युद्ध पीड़ित फिलिस्तीनी नागरयकों को अपने यहां लेने को तैयार नहीं है । अपनी जड़ जमीन से उखड़े हुए नागरिक सीमाओं पर अटके हुए इजरायल के क्रोद्ध का शिकार हो रहे हैं । इन पर बातें तो बहुत बड़ी बड़ी जो रही हैं । इस्लामिक कंट्रिया हमास की जयजयकार कर रही हैं । उनके साथ खड़े होने का दम्भ भर रही हैं लेकिन शरणार्थियों को लेने के लिए कोई तैयार नहीं । मिस्र ने तो साफ़ कह दिया कि उसके यहां शरणार्थियों के लिए कोई जगह नहीं ।
युद्ध की ज्वाला जल्दी ठंडी होने के आसार नहीं दीखते । इजरायल ने यह कह कर कि कोई भी फिलिस्तीनी नागरिक बेगुनाह नहीं , अपने इरादों को जाहिर कर दिया है कि उसके हमले नागरिक और आतंकवादियों में फर्क नहीं करने वाले । अपनी पीठ पर इस्लामिक देशों के एक समूह को पा कर हमास भी दुस्साहस छोड़ने को तैयार नहीं जिससे युद्ध और अधिक भयावह होने की ओर बढ़ता लग रहा है । भविष्य में जीते कोई भी लेकिन अंत में हमेशा की तरह इस युद्ध में भी मानवता हारेगी । महिलायें हारेंगी , बच्चे हारेंगे और यह सब होगा मध्ययुगीन हत्यारी मानसिकता वाले हमास और उसके सहयोगी देशों की पूरी दुनिया हरे रंग में रंग देने के जूनून के कारण । उसी कारण से जिस कारण कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया था । हत्यारे भले ही अलग अलग नाम वाले हों लेकिन मानसिकता एक है और वैचारिक जमीन भी एक है ।
इजरायल पर अमानवीय हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र जैसी अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने आतंकवाद को ले कर अपने सुर नहीं बदले तो इनकी रही बची प्रांसगिकता और साख समाप्त हो जायेग़ी । कश्मीर मामले में यूएनओ का ढुलमुल सारे देश ने तो केवल देखा जबकि कश्मीर और समूचे भारत ने इसे भोगा । आतंकवादियों द्वारा दिए गए जख्मों के कारण ही भारत पूरी तरह इजरायल के साथ खड़ा है । अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर निर्भरता को छोड़ कर आतंकवाद से पीड़ित सभी देशों को एक साथ आ कर आतंकवाद ही नहीं आतंकवाद के समर्थकों पर भी प्रहार करना होगा अन्यथा दुनिया के सामने एक बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा ।