
सुनील कुमार महला
हेट स्पीच(द्वेषपूर्ण/घृणास्पद भाषण/नफरती भाषण) के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस 18 जून को मनाया जाता है। दरअसल,हेट स्पीच के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने, हेट स्पीच की पहचान करने, इसका विरोध करने तथा देश और समाज में समावेशिता व सहिष्णुता को बढ़ावा देने के क्रम में ही 18 जून को प्रत्येक वर्ष यह दिवस मनाया जाता है।
हेट स्पीच या यूं कहें कि घृणास्पद भाषण किसी व्यक्ति, समुदाय और देश को नुकसान पहुंचाते हैं, क्यों कि हेट स्पीच किसी भी देश के सामाजिक सद्भाव, आपसी भाईचारे, शांति को भंग करने का काम करती है। यह बहुत ही दुखद है कि आज हमारे समाज में ऐसे कई लोग मौजूद हैं,जिनके खिलाफ नफरत फ़ैलाने वाले भाषण के मामले दर्ज हैं। वास्तव में, नफरती भाषण(हेट स्पीच) समाज में हिंसा, भेदभाव की भावना पैदा करते हैं तथा असहिष्णुता को उकसाते हैं और इस प्रकार के भाषणों से समाज और देश को बहुत नुकसान पहुंचता है। यह ठीक है कि सोशल मीडिया आज के समय में अभिव्यक्ति का एक बड़ा और शानदार माध्यम है, लेकिन यह बहुत ही अफसोसजनक है कि सोशल मीडिया आज धमकियों का प्लेटफार्म बन चुका है। वास्तव में, सोशल मीडिया पर आज किसी को भी ट्रोल करना, किसी व्यक्ति विशेष पर ऊल-जलूल और अभद्र टिप्पणियां करना, धमकियां देना, जो भी मन में आए वह कंटेंट डाल देना जैसी बातें आम हो चली हैं।सच तो यह है कि आज सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से लोगों में सहानुभूति की कमी, साइबर बुलिंग(बिना किसी डर के दूसरों को निशाना बनाना) और व्यक्तिगत जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। लोग अब अपनी निजता का सम्मान नहीं करते हैं और दूसरों की भावनाओं की बिल्कुल भी परवाह नहीं करते हैं कि वे एक सार्वजनिक स्टेज(मंच) पर क्या कह रहे हैं और वास्तव में उन्हें क्या कहना चाहिए और क्या नहीं कहना चाहिए तथा इसका समाज और देश पर क्या और किस कदर प्रभाव पड़ सकता है? वास्तव में होना तो यह चाहिए कि सोशल मीडिया पर हम दूसरों के प्रति सम्मान और सहानुभूति दिखाएं, और उनके विचारों का सम्मान करें। सोशल मीडिया पर ग़लत सूचनाओं, जानकारी को शेयर ना करें और सोशल मीडिया पर अपने समय को सीमित करते हुए हम व्यक्तिगत जीवन को प्राथमिकता दें। हम जानते हैं कि आज के समय में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक शक्तिशाली उपकरण है जो हमारे जीवन में, समाज और देश में कई सकारात्मक बदलाव ला सकता है, लेकिन हमें इसका उपयोग सावधानीपूर्वक और नैतिक रूप से करना चाहिए, ताकि हमारे नैतिक मूल्यों में गिरावट न आए और दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। हेट स्पीच दूसरों की भावनाओं को आहत करती है। वास्तव में इस दुनिया को आज नफरत की नहीं अपितु प्यार की जरूरत है।नफरती टिप्पणियां उकसातीं हैं, लेकिन आज हेट स्पीच जैसे एक फैशन सा हो चला है, यह हमारे लोकतंत्र पर एक आघात है। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि भारत के विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट में घृणास्पद भाषण को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन अभिविन्यास, धार्मिक विश्वास और इसी तरह के संदर्भ में परिभाषित व्यक्तियों के एक समूह के खिलाफ नफरत को उकसाने वाला बताया गया है। हेट स्पीच लोकतंत्र को तो कमजोर करने का काम करती ही है, यह ह्यूमन राइट्स (मानवाधिकारों) पर भी एक बड़ा प्रहार होती है। इतना ही नहीं, हेट स्पीच कानून के शासन को भी कमजोर करती है। कुल मिलाकर यह बात कही जा सकती है कि हेट स्पीच किसी भी समाज और देश पर व्यापक हानिकारक प्रभाव छोड़ती है। आज सोशल मीडिया का दौर है और सोशल मीडिया के इस दौर में हेट स्पीच हमारे समाज और देश के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। कहना ग़लत नहीं होगा कि संचार की तकनीकों ने आज हेट स्पीच के पैमाने और प्रभाव को बढ़ाने का काम किया है, क्यों कि आज पूरी दुनिया संचार क्रांति के कारण बहुत छोटी हो चुकी है। आज का समय वह समय है जब संचार क्रांति के कारण कोई भी बात विश्व भर में फैलने में ज़रा सी भी देर नहीं लगती। कहना ग़लत नहीं होगा कि हेट स्पीच समाज में संघर्ष और तनाव को जन्म देती है तथा यह मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक बेस या आधार तैयार करके समाज व देश के विकास और शांति,संयम को व्यापक तौर पर नकारात्मक ढंग से प्रभावित करती है। वास्तव में, हेट स्पीच या घृणास्पद भाषण को भाषण, लेखन या व्यवहार में किसी भी प्रकार के संचार के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी व्यक्ति या समूह के संदर्भ में उनके धर्म, जातीयता, राष्ट्रीयता, नस्ल, रंग, वंश, लिंग या अन्य पहचान कारक के आधार पर हमला करता है या अपमानजनक या भेदभावपूर्ण भाषा का उपयोग करता है। दूसरे शब्दों में और सरल शब्दों में यदि कहें तो हेट स्पीच एक ऐसा भाषण, लेखन या व्यवहार है जो किसी व्यक्ति या समूह के प्रति घृणा, शत्रुता या हिंसा को बढ़ावा देता है। यह आमतौर पर नस्ल, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता, या अन्य पहचान के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देता है। बहरहाल,आज हर कहीं पर घृणास्पद भाषणों(हेट स्पीच) का बोलबाला हो गया है, इसलिए ज़रूरत इस बात की है ऐसे घृणास्पद भाषणों पर रोक लगाई जाए। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज जरूरत इस बात की है हमारा समाज, हमारी देश, सामाजिक संगठन और सरकारें हेट स्पीच का मुकाबला करने के लिए कृत संकल्पित होकर आगे आए। यहां पाठकों को बताता चलूं कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार घृणास्पद भाषण, ‘किसी भी प्रकार का संचार है जो किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ भेदभाव, शत्रुता या हिंसा को उकसाता है, लक्षित करता है, या उसका समर्थन करता है।’ यह भाषण/ स्पीच नस्ल, धर्म, लिंग, यौन अभिविन्यास, राष्ट्रीयता या किसी अन्य पहचान के आधार पर हो सकता है। बहरहाल पाठक जानते हैं कि हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी दी गई है, लेकिन यह अधिकार निरपेक्ष नहीं है और ,यदि हम यहां पर भारत में हेट स्पीच की कानूनी स्थिति की बात करें तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(2) संविधान में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करता है । गौरतलब है कि यह अनुच्छेद सरकार को कुछ आधारों पर, जैसे ‘लोक व्यवस्था के हित में’, ‘मानहानि’, ‘अपमान’, ‘राजद्रोह’, ‘शालीनता या नैतिकता के विरुद्ध’ आदि, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि हेट स्पीच के पहलू से संबंधित विभिन्न दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं। मसलन,भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए और 153बी उन कृत्यों को दंडित करती है, जो दो समूहों के बीच दुश्मनी और घृणा पैदा करते हैं।इसी प्रकार से भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए उन कृत्यों को दंडित करने से संबंधित है, जो जानबूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादे से किसी वर्ग के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं। गौरतलब है कि धारा 505 (1) और 505 (2) के अनुसार ऐसी सामग्री का प्रकाशन और प्रसार जो विभिन्न समूहों के बीच दुर्भावना या घृणा पैदा करे, अपराध है।इसी प्रकार से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (आरपीए) की धारा 8, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अवैध उपयोग के दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकती है।आरपीए की धारा 123(3A) तथा 125 चुनावों के संदर्भ में नस्ल, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता अथवा घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने पर रोक लगाता है और साथ ही इसे भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं के अंतर्गत शामिल करता है। इसी प्रकार से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 सार्वजनिक रूप से किसी भी स्थान पर अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति को लक्षित करने वाले घृणास्पद भाषण पर प्रतिबंध लगता है। नागरिक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 1955 मौखिक अथवा लिखित शब्दों के माध्यम से या संकेतों एवं दृश्य प्रस्तुतियों द्वारा अथवा अस्पृश्यता को उकसाने एवं प्रोत्साहित करने पर दंड का प्रावधान करता है। अंत में संक्षेप में यही कहूंगा कि
हेट स्पीच(नफरती भाषण)के दूरगामी परिणाम होते हैं, जो हमारे सामाजिक सद्भाव, सामाजिक ताने-बाने और व्यक्तिगत कल्याण, तथा मानवता के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं। नफरती भाषणों या यूं कहें कि द्वेषपूर्ण भाषणों से निपटने के लिए आज जरूरत इस बात की है कि हम अपने यहां शिक्षा को बढ़ावा दें। कानून को तो सख्त बनाने की आवश्यकता है ही।एक आचार संहिता का पालन किया जाना आवश्यक है।डिजिटल या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का प्रभाव लंबे समय तक रहता है, इसलिए इसका विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित किया जाना आज की महत्ती आवश्यकता है।