
निर्मल रानी
हमारा देश भारतवर्ष कभी न कभी ज़रूर विश्व गुरु रहा होगा। इसके लक्षण तो आप आज भी देख सकते हैं। जगह जगह लोग आपको सलाह देने वाले, घरेलु नुस्ख़ा या टोटका बताने वाले मिल जायेंगे। जो स्वयं अपने ही भविष्य के बारे में अनजान हैं ऐसे तमाम लोग फ़ुट पाथ से लेकर बड़े बड़े आधुनिक कार्यालयों तक में बैठे भविष्य वक्ता आपको पूरे देश में बैठे मिल जायेंगे। । भारत चूँकि अपना भविष्य जानने वाले जिज्ञासुओं का एक बड़ा बाज़ार है। इसलिये तमाम बाबाओं व ज्योतषियों की ‘दुकानदारी ‘ इसी पर चल रही है। हमारे देश का एक काफ़ी बड़ा वर्ग इन अवैज्ञानिक व ग़ैर तार्किक बातों पर विश्वास भी करता है। आप देखिये कि भारत ही अकेला ऐसा देश है जहाँ करोड़ों रूपये कोठी निर्माण पर ख़र्च करने के बाद कोठी के मस्तक पर नज़रबट्टू ‘भूत ‘ लगाना नहीं भूलते,कहीं जूता या काला टायर भी लटका मिल जायेगा। यह हमारे देश के शिक्षित व संपन्न लोगों का हाल है तो ग़रीबों या अशिक्षित लोगों की बौद्धिकता पर सवाल ही क्या उठाना ?
बहरहाल,चूँकि हमारे देश के अधिकांश जनता अशिक्षित परन्तु धार्मिक प्रवृति की है इसलिये स्वयं को पढ़े लिखा कहने वाले कुछ चतुर्बुद्धि लोग उनकी सादगी,शराफ़त,भोलेपन,धार्मिक आस्था व विश्वास का लाभ उठाकर तरह तरह की धार्मिक व पौराणिक बातें बताकर उन्हें यह जताने की कोशिश करते हैं की हम चूँकि समान आस्था विश्वास व विचार वाले हैं इसलिये हम ही तुम्हारे शुभचिंतक हैं। लिहाज़ा हमें वोट दो और हमें सत्ता में बने रहने दो। परन्तु वैज्ञानिक व तार्किक सोच रखने वाले लोग जब इन्हें व इनके तर्कों को ख़ारिज करते हैं तो यह लोग बड़ी चतुराई व शातिरपने से सही बातों को झुठलाने के लिये इस पढ़े लिखे व तर्कशील वर्ग को अधार्मिक,धर्मद्रोही और ज़रूरत पड़ने पर राष्ट्रद्रोही भी बता देता है। गोया सच को झूठ और झूठ को सच बताने लगता है। और इससे बड़ा दुर्भाग्य यह कि लालची प्रोपेगंडा गोदी मीडिया भी इस घातक मिशन में ऐसे लोगों का साथ देता है।
उदाहरण के तौर पर इस्लामी यहूदी व ईसाई धर्म में समान रूप से माने जाने वाले पैग़ंबर हज़रत मूसा के बारे में एक क़िस्सा प्रचलित है कि उन्होंने अल्लाह के हुक्म से चमत्कारिक रूप से लाल सागर को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया था । बताया जाता है कि जब फ़िरऔन की सेना ने मूसा और उनके अनुयायियों को मारने के लिये उनका पीछा किया, तो मूसा ने अपने असा (एक प्रकार की छड़ी ) को समुद्र पर मारा। उसी समय अल्लाह ने समुद्र को दो भागों में बाँट दिया, जिससे मूसा व उनके समर्थक समुद्र पर कर गये परन्तु जब समुद्र के बीच बने इसी रस्ते से फ़िरऔन की सेना ने उनका पीछा किया, तो समुद्र फिर से मिल गया, और फ़िरऔन की सेना डूब गयी । इस घटना का उल्लेखन केवल कुरान नहीं बल्कि बाइबिल में भी मौजूद है। परन्तु क्या इस बात पर इस्लामी यहूदी व ईसाई धर्म के लोगों के अलावा किसी अन्य धर्म से सम्बन्ध रखने वाले तार्किक व वैज्ञानिक सोच के लोग विशवास करेंगे ? बिल्कुल नहीं क्योंकि उसके संस्कारों शिक्षा और उसके विश्वास या मान्यताओं में यह बातें हैं ही नहीं।
इस्लाम धर्म की ही एक क़िस्सा है जिसे पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद के जीवन का एक सर्व प्रमुख चमत्कार माना जाता है। इसे इस्लामी इतिहास में “शक्क-ए-क़मर” यानी चाँद का दो टुकड़ों में बँटना,के नाम से जाना जाता है। मक्का की इस घटना के बारे में कहा जाता है कि जब कुरैश क़बीले के कुछ लोगों ने पैग़ंबर हजरत मुहम्मद की सिद्धि को परखने के लिये उनसे इस बड़े चमत्कार की माँग की। तब पैगंबर मुहम्मद ने अल्लाह की इजाज़त से चाँद को दो हिस्सों में बाँट दिया। कुछ देर तक अलग-अलग रहने के बाद चाँद फिर एक हो गया। इस ‘चमत्कार’ का उल्लेख क़ुरआन में भी है। परन्तु इतिहास के दौर में घटी इस घटना और इसकी व्याख्या पर भी विद्वानों और इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ की नज़रों में यह चमत्कार है जबकि कुछ की नज़रों में यह प्रतीकात्मक या आध्यात्मिक अर्थ की घटना।
इसी तरह पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है,हनुमान जी सूर्य निगल गये थे,चाहे समुद्र में वानरों द्वारा पत्थर फ़ेंक फ़ेंक कर लंका जाने का पुल तैयार कर देना हो,या फिर भगवान भोले शंकर द्वारा अपने ही पुत्र का सिर तन से जुदा कर उस पर हाथी का सर लगाने की बात हो,गणेश जी की सवारी चूहा हो या मछली के पेट से पैदा होने या घड़े से पैदा होने,मैल से पैदा होने की घटना या संजीवनी के लिये हनुमान जी द्वारा पूरा पर्वत उठा लाना,पुष्पक विमान होना और न जाने इस तरह की अनगिनत बातें जो हमें हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ या धार्मिक पुस्तकें हमें बताती आई हैं उन पर हम आस्था वश या बचपन से मिले संस्कारों व धार्मिक ज्ञानों के नाते विश्वास तो ज़रूर कर करते हैं परन्तु यह बातें विज्ञान की कसौटी पर आज के वैज्ञानिक युग में क़तई खरी नहीं उतरतीं। इसलिये हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मुंबई के एक अस्पताल के उद्घाटन के समय यह कहते हैं कि भगवान गणेश का हाथी का सिर मनुष्य के शरीर पर लगाना प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी के अस्तित्व का प्रमाण है। जब वे कहते हैं कि “हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, जिनका सिर हाथी का है। इसका मतलब है कि हमारे पूर्वजों को प्लास्टिक सर्जरी का ज्ञान था।” प्रधानमंत्री का यह कथन निश्चित रूप से पौराणिक कथाओं पर आधारित है, परन्तु न तो इस घटना के ऐतिहासिक प्रमाण हैं न ही पुरातात्विक प्रमाण। वैज्ञानिक रूप से असमर्थित दावा होने की वजह से ही प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान की उस समय बहुत आलोचना हुई थी। क्योंकि उनका यह बयान आधुनिक विज्ञान को मिथकों से जोड़कर अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाला माना गया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने ही उन्हीं दिनों कहा था कि “महाभारत में कर्ण अपनी मां के गर्भ से बाहर पैदा हुआ था, इसका मतलब है कि उस समय जेनेटिक साइंस मौजूद था।” वैज्ञानिक समुदाय ने इसे अस्वीकार किया, क्योंकि यह भी पौराणिक कहानी पर आधारित है और आधुनिक जेनेटिक्स से इसका कोई संबंध नहीं है। मोदी वैसे भी नाली के गैस से चाय बनाना बादलों में रडार का काम न करना जैसे न जाने कितने हास्यास्पद दावे करते रहे हैं जो हमारे देश के शिक्षार्थियों व वैज्ञानिक सोच रखने वालों के लिये ख़तरनाक हैं। दुनिया भी ऐसी बातों का मज़ाक़ उड़ाती है। इसी तरह गत दिनों केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश के ऊना ज़िले के पीएम श्री स्कूल में राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए छात्रों से पूछा: “अंतरिक्ष में यात्रा करने वाला पहला यात्री कौन था?” उस समय अधिकांश छात्रों ने “नील आर्मस्ट्रॉन्ग” का नाम लिया जो अंतरिक्ष में नहीं बल्कि चंद्रमा पर पहला क़दम रखने वाले पहले यात्री थे। हालांकि कुछ छात्रों ने रूस के यूरी गागरिन का नाम भी लिया जो अंतरिक्ष में पहले मानव यात्री थे। परन्तु अनुराग ठाकुर ने बच्चों का जवाब सुनकर कहा “मुझे तो लगता है हनुमान जी थे।” साथ ही उन्होंने यह ज्ञान भी दिया कि छात्रों को टेक्स्टबुक से बाहर निकलकर अपनी प्राचीन परंपरा, वेदों और संस्कृति की ओर देखना चाहिए, क्योंकि “जब तक हमें अपनी हज़ारों वर्ष पुरानी परंपरा, व संस्कृति का ज्ञान नहीं होगा, तब तक अंग्रेज़ों ने जो हमें दिखाया है, वहीं तक हम सीमित होकर रह जाएंगे।”
अब ज़रा बताइये देश का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री व केंद्रीय मंत्री स्तर के लोगों के ‘ज्ञान ‘ से प्रेरित कोई बच्चा यदि नासा में या अन्य किसी वैज्ञानिक मंच पर अपने साक्षात्कार में यही सब बताने लगेगा तो क्या उसे सफलता मिलेगी ? वैसी भी सीधे सादे लोगों में स्वयं को धर्म और आस्था का बहुत बड़ा पैरोकार बताकर लोगों को अज्ञान में धकेलने की कोशिश करना देश के युवाओं के भविष्य के साथ बड़ा धोखा है। वास्तव में इस तरह का ‘महाज्ञान ‘ सभी धर्मों में उनके धर्मगुरुओं के मुंह से तो शोभा दे सकता है राजनेताओं के मुंह से क़तई नहीं। ज़रा सोचिये कि क्या इसी तरह के “ज्ञान ” हमें विश्व गुरु बनायेंगे ?