सोशल मीडिया और युवा असंतोष

Social media and youth discontent

शिशिर शुक्ला

यह कितनी चिंता एवं शर्म की बात है की नेपाल में सोशल मीडिया पर पाबंदी के परिणामस्वरूप हिंसक प्रदर्शन हुआ और 19 लोगों की मौत हो गई। भले ही युवाओं के मध्य असंतोष एवं क्रोध की चिंगारी भड़कने के पीछे सरकार का भ्रष्टाचार एवं अन्य कारक दीर्घकालिक रूप से उत्तरदायी रहे हों, किंतु अगर मामले को गौर से देखा जाए तो इसे हिंसक रूप देने के पीछे जिम्मेदार तात्कालिक कारण सरकार के द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए जाने वाले प्रबंध ही हैं। स्थितियां इस तरह से अनियंत्रित हुईं कि पुलिस को जगह-जगह आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े और रबर की गोलियां भी दागनी पड़ीं। युवाओं के इस आंदोलन को जेनरेशन जेड का आंदोलन कहा जा रहा है। निश्चित रूप से आज सोशल मीडिया जीवन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता बन चुका है। किंतु किन्ही कारणोंवश इस पर प्रतिबंध लगा देने से युवाओं के मन में इस स्तर का आक्रोश फूटना एवं माहौल का इतनी बड़ी सीमा तक अनियंत्रित हो जाना निश्चित रूप से चिंताजनक बात है। नेपाल में संकट इतना गहरा गया है कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे तक की मांग तीव्र हो उठी है। हो सकता है कि इस बड़ी एवं दुखद घटना के पीछे जिम्मेदार मूल कारणों में वहाँ पर व्याप्त भ्रष्टाचार, असमानता एवं भाई भतीजावाद हो, किंतु इसे तूल देने के पीछे केवल और केवल सोशल मीडिया पर लगाई गई पाबंदियां ही हैं। दरअसल बीते 25 अगस्त को नेपाली कैबिनेट के द्वारा यह फैसला लिया गया था कि सभी इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्मों को ‘डायरेक्टिव ऑन रेगुलेटिंग द यूज़ ऑफ़ सोशल मीडिया 2023’ के तहत सात दिनों के अंदर पंजीकरण कराना होगा। समय सीमा खत्म होते ही सरकार के द्वारा पंजीकरण न कराने वाले 26 प्लेटफॉर्मों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बेशक सरकार के द्वारा लिया गया निर्णय बिल्कुल सही था, किंतु इसकी वजह से असंतोष एवं हिंसा का ऐसा माहौल पनप उठेगा, यह कल्पना शायद किसी ने नहीं की होगी। नेपाल की स्थिति यह है कि तीन करोड़ की जनसंख्या में लगभग 90 फीसदी लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। यह नेपाल की ही नहीं, अपितु विश्व के हर देश की स्थिति मानी जा सकती है। विशेष रूप से जेनरेशन जेड का सोशल मीडिया के साथ कहीं गहरा लगाव है। इस जेनरेशन के अंतर्गत वे लोग आते हैं जिनका जन्म 1997 से 2012 के मध्य हुआ है। सरकार के द्वारा सोशल मीडिया मंचों पर लगाए गए प्रतिबंध को प्रदर्शनकारियों के द्वारा अभिव्यक्ति पर आघात बताते हुए घोर आक्रोश जताया गया है।

दरअसल 1997 से लेकर 2012 तक पैदा हुई पीढ़ी इंटरनेट, सोशल मीडिया एवं आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ही बड़ी हुई है। लिहाजा सोशल मीडिया एवं इंटरनेट प्लेटफॉर्मों के साथ उसका एक गहरा अंतर्संबंध है। नेपाल में इस पीढ़ी के द्वारा पहले शांतिपूर्ण प्रदर्शन की बात कही गई थी, किंतु अचानक सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगने से प्रदर्शन उग्र हो गया। युवाओं के द्वारा यहां तक कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया का प्रयोग करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। दरअसल आज सोशल मीडिया समाज के भीतर अपने दो स्वरूपों में विद्यमान है। निस्संदेह इसका एक स्वरूप बच्चों से लेकर युवाओं एवं बुजुर्गों तक के लिए लाभकारी है, क्योंकि क्योंकि यह कहीं न कहीं वैचारिक अभिव्यक्ति एवं लोगों से जुड़ने के लिए एक बेहतर प्लेटफार्म प्रदान करता है। किंतु इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इसी सोशल मीडिया का अतिशय दुरुपयोग भी हो रहा है। नेपाल सरकार के द्वारा भी यह बताया गया था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का इस्तेमाल फेक आईडी, साइबर अपराध, भ्रामक सूचनाओं एवं नफरती बयानों के लिए हो रहा था। सरकार के द्वारा टिकटॉक एवं वाइबर जैसे प्लेटफार्म पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया क्योंकि उनके द्वारा समय सीमा के भीतर पंजीकरण कर लिया गया। निस्संदेह युवाओं की मांगें अपने स्थान पर पूर्णतया उचित हैं क्योंकि भ्रष्टाचार, भाईभतीजावाद एवं असमानता देश की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा हैं एवं इनके खिलाफ आवाज उठाना प्रत्येक युवा का अधिकार है। किंतु युवाओं के द्वारा जिस लहजे में एवं जिस स्तर पर प्रदर्शन किया गया, वह पूर्णतया अनुचित एवं अशोभनीय है। सोशल मीडिया के बढ़ते दुरुपयोग को देखते हुए उस पर प्रतिबंध लगाना किसी भी स्थिति में गलत नहीं है। हाल ही की अगर बात करें तो ऑस्ट्रेलिया में 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने संबंधी कानून को लाए जाने की पूरी तैयारी की जा रही है। सरकार के द्वारा यह निर्देश दिया गया है कि सोशल मीडिया कंपनियां नाबालिग उपयोगकर्ताओं के खातों को स्वयं हटाकर नए खातों के लिए आयु सत्यापन सॉफ्टवेयर का प्रयोग करें। ऑस्ट्रेलिया में यह कानून 10 दिसंबर से प्रभावी हो जाएगा। एक शोध के अनुसार दस में से चार ऑस्ट्रेलियाई बच्चे यू ट्यूब से होने वाले नुकसान की जानकारी दे चुके हैं। इतना ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बनीज ने कहा है कि उनके द्वारा बच्चों के लिए सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करने हेतु एक अंतरराष्ट्रीय समर्थन अभियान भी चलाया जाएगा। हाल ही में चीन के द्वारा भी बच्चों के द्वारा इंटरनेट उपयोग पर लगाम लगाने की तैयारी शुरू की जा रही है। वहां यह व्यवस्था की जा रही है कि बच्चे किसी एक दिन डिजिटल उपवास को धारण करेंगे अर्थात उस विशेष दिन में मोबाइल फोन, इंटरनेट एवं सोशल मीडिया का इस्तेमाल पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगा। फ्रांस के द्वारा भी वर्ष 2023 में कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी गई थी। इसके अतिरिक्त ईरान, उत्तर कोरिया, तुर्कमेनिस्तान, अमेरिका, माली, केन्या, बांग्लादेश, श्रीलंका एवं जॉर्जिया आदि देश भी सोशल मीडिया के प्रयोग पर प्रतिबंध से संबंधित कानून बना चुके हैं अथवा बनाने की तैयारी कर रहे हैं। आज का युग सूचना, तकनीक और संचार का युग है। इस युग की सबसे बड़ी पहचान है—सोशल मीडिया। इंटरनेट आधारित यह मंच केवल संवाद का माध्यम नहीं रह गया है, बल्कि विचार, संस्कृति, राजनीति, शिक्षा, व्यापार और समाज के स्वरूप को प्रभावित करने वाला प्रमुख औजार बन चुका है। विशेषकर युवाओं के जीवन में सोशल मीडिया की भूमिका इतनी गहरी हो चुकी है कि बिना इसके वे स्वयं को अधूरा महसूस करने लगते हैं। सुबह उठते ही स्मार्टफोन पर नोटिफिकेशन देखना और रात को सोने से पहले अंतिम बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म खंगालना, यह आज के युवा वर्ग की आम दिनचर्या बन चुकी है। किंतु यह परिवर्तन केवल सकारात्मक ही नहीं है। सोशल मीडिया जहां एक ओर युवाओं को अभिव्यक्ति, रोजगार, शिक्षा और वैश्विक जुड़ाव का अवसर दे रहा है, वहीं दूसरी ओर यह उन्हें आभासी जगत में उलझाकर मानसिक तनाव, सामाजिक अलगाव, फेक न्यूज़, साइबर अपराध और असंयमित उपभोग की आदतों का भी शिकार बना रहा है। अतः आवश्यक है कि सोशल मीडिया और युवा पीढ़ी के संबंध का संतुलित मूल्यांकन किया जाए। निश्चित रूप से सोशल मीडिया युवाओं के लिए ज्ञान के विविध द्वार खोलकर विज्ञान, तकनीक, कला एवं संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार में सहयोग देता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं स्वरोजगार के विविध आयामों से युवाओं का परिचय सोशल मीडिया के माध्यम से ही संभव हो सका है। यह सोशल मीडिया ही है जिसने सीमाओं को प्रत्येक स्तर पर लगभग खत्म सा कर दिया है एवं वैश्विक संपर्क तथा संवाद के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय क्रांति को जन्म दिया है। किंतु यह भी एक कटुसत्य है कि नकारात्मक प्रभावों के रूप में यही सोशल मीडिया नेपाल में हुई हिंसक घटनाओं का कारण भी बन जाता है। सोशल मीडिया से अति एवं अनावश्यक लगाव की वजह से युवावर्ग का बाहरी दुनिया से संबंध टूट सा जाता है एवं वह कहीं न कहीं सामाजिक एकाकीपन की ओर मुड़ने लगता है। निस्संदेह इन समस्याओं से निजात पाने के लिए सटीक एवं मजबूत समाधान करने की आवश्यकता है। ऐसा तभी संभव है जब सरकारें एवं सोशल मीडिया कंपनियां परस्पर समन्वय स्थापित करके ऐसी नीतियां एवं नियम निर्धारित करें, जो पूर्णतया युवाओं के हित में हों। नीतियां ऐसी हों कि फेक न्यूज़, साइबर अपराध एवं अनावश्यक कंटेंट पर पूर्णतया अंकुश लग सके एवं युवा वर्ग उसकी चपेट में आकर दिशाहीनता की ओर मुड़ने से बच सके। निश्चित रूप से सोशल मीडिया एक ऐसा आईना है जिसमें आज का युवा खुद को एवं अपने स्वप्नों को देखने का प्रयास कर रहा है। किंतु इस आईने में उजली तस्वीर भी है और धुँधली परछाईं भी।।अगर युवा विवेक, संतुलन और जिम्मेदारी से इसका प्रयोग करें, तो यह उन्हें अवसर, रोजगार, शिक्षा और वैश्विक जुड़ाव देगा। लेकिन यदि वे केवल आभासी मोह में डूबे रहे, तो यह उन्हें अकेलापन, तनाव और भ्रम में भी धकेल सकता है और इसके साथ ही नेपाल में हुई हिंसक घटनाओं के प्रति भी प्रेरित कर सकता है। इसलिए आज आवश्यकता है कि सोशल मीडिया साधन बने न कि साध्य। वास्तविक जीवन की संवेदनाओं, रिश्तों और ज़िम्मेदारियों को पीछे छोड़कर यदि युवा पूरी तरह सोशल मीडिया की काल्पनिक दुनिया में खो जाएँगे, तो भविष्य निस्संदेह खोखला होगा। लेकिन यदि वे संतुलित रूप से इसका उपयोग करेंगे, तो यही मंच उन्हें सतत विकास का मार्ग दिखाते हुए अभिप्रेरित करेगा।