प्रेम की नई परिभाषाएं गढ़ रहे सोशल मीडिया मंच !

Social media platforms are creating new definitions of love!

सुनील कुमार महला

आज सूचना तकनीक और प्रौद्योगिकी का जमाना है। समय लगातार परिवर्तित हो रहा है और होना भी चाहिए, क्यों कि परिवर्तन ही असली जीवन है, लेकिन आज तकनीक और प्रौद्योगिकी के इस जमाने में सोशल मीडिया मंच हमारे पारंपरिक मूल्यों, आदर्शों, प्रतिमानों, हमारे सांस्कृतिक-सामाजिक नैतिक मूल्यों को कहीं न कहीं धूमिल करते चले जा रहे हैं। हाल ही में हरियाणा के रोहतक में एक नेता की हत्या से पूरा हरियाणा सन्न है। ख़बरें बतातीं हैं कि नेता की लाश एक मार्च को सूटकेस में मिली थी। पुलिस ने इस मामले में तेजी से कार्रवाई की और कातिल तक जा पहुंची और अब इस सनसनीखेज हत्याकांड का मुख्य आरोपी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से पकड़ा जा चुका है।पूछताछ में यह पता चला है कि हत्या का आरोपी शादीशुदा ही नहीं, बल्कि उसके दो बच्चे भी हैं। वास्तव में,हरियाणा के रोहतक में नेता की नृशंस हत्या ने एक बार फिर सोशल मीडिया को निशाने पर ला दिया है। जानकारी के अनुसार गिरफ्तार आरोपित से मृतका का परिचय कथित रूप से सोशल मीडिया मंच फेसबुक के माध्यम से हुआ और उसकी चरम परिणति इस हत्याकांड के रूप में सामने आई है। हालांकि, मामले में क्या सच है और क्या झूठ है, यह सब तो मामले की पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही सामने आ पायेगा लेकिन इतना जरूर है कि हरियाणा में हुई इस घटना ने हाल फिलहाल एक गहरी सामाजिक बहस ज़रूर छेड़ दी है। कहना चाहूंगा कि आज के इस आधुनिक युग में एक ओर जहां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक और इंस्टाग्राम नए रिश्तों की नींव बन रहे हैं, वहीं दूसरी ओर फेसबुकिया प्यार ऐसा भी है, जो व्यक्ति को न घर का छोड़ता है और न ही घाट का। आज इन सोशल मीडिया मंचों पर प्यार,धोखा,शादी जैसे अनेक शगूफे (विलक्षण बातें) चलते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज सोशल मीडिया कमोबेश हम सभी के सामाजिक(सोशल) और रचनात्मक(क्रिएटिव)जीवन का एक बड़ा व महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि हम सोशल मीडिया के लाभों की बात करें तो इनमें आपसी संपर्क, सीखना और रचनात्मकता को शामिल किया जा सकता हैं, लेकिन इसके साथ ही इन मंचों के अनेकजोखिम भी हैं जैसे अनुपयुक्त सामग्री, साइबर धमकी, तथा गोपनीयता एवं डेटा उल्लंघन आदि। दूसरे शब्दों में कहें तो आज के इस आधुनिक दौर में सोशल मीडिया हम सभी की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है, जिसके बहुत सारे फीचर हैं, जैसे कि सूचनाएं प्रदान करना, मनोरंजन करना और शिक्षा प्रदान करना मुख्य रूप से शामिल हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज सोशल मीडिया संचार का द्रुत गति माध्यम है, और इसकी सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की ही भूमिकाएं हैं। मसलन यदि सकारात्मक भूमिकाओं की बात करें तो इससे किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश आदि को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लोकतंत्र को समृद्ध बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।यह हमारे देश की एकता, अखंडता, पंथनिरपेक्षता, समाजवादी गुणों को बनाए रखने में भी कहीं न कहीं अपनी भूमिका निभा रहा है।मसलन आज सोशल मीडिया के माध्यम से अनेक जन-जागरूकता अभियान चलायें जाते हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने में, चुनावों, स्वच्छता अभियान भी इसकी भूमिका है। आज अनेक कार्यक्रम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर चलाए जाते हैं, लेकिन इसकी नकारात्मक भूमिका भी है। आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ग़लत कंटेंट फैलाया जाता है, इस मंच पर दुर्भावनाएं फैलाकर समाज को बांटने की कोशिशें की जातीं हैं। भ्रामक, ग़लत, अश्लील ,अभद्र जानकारियों को हवा दी जाती है। सूचनाओं को तोड़ मरोड़कर कर प्रस्तुत कर दिया जाता है। साइबर अपराध, जानकारियों का स्वरूप बदलना, सूचनाओं,डेटा की चोरी आदि इसके नकारात्मक प्रभाव हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि ये सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के स्याह/काले पक्ष हैं।संवाद और संबंधों के नए द्वार के बीच आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स यथा फेसबुक-इंस्टाग्राम जैसे मंच, प्रेम की नई परिभाषाएँ गढ़ रहे हैं। ये बहुत ही दुखद है कि आज के समय में इन फेसबुकिया प्रेम कहानियों का अंत अक्सर त्रासदियों में बदलता दिखाई देता है।सच तो यह है कि आज वर्चुअल वर्ल्ड (सोशल नेटवर्किंग साइट्स) ने कहीं न कहीं हमारे रिश्तों में धोखे, ब्लैकमेलिंग, आत्महत्या, हत्या और सामाजिक विघटन को जन्म दिया है। आज इन मंचों पर दिखावा, छल-कपट, धोखाधड़ी का बोलबाला है। इन मंचों पर अधिक से अधिक लाइक, शेयर, कमेंट्स के चक्कर में अनेकों बार हम अपना सर्वस्व लुटा बैठते हैं। युवा पीढ़ी तो इनके जाल में फंसती प्रतीत होती है। क्यों कि युवा पीढ़ी आज नेम एंड फेम के चक्कर में इन मंचों का शिकार बन रही है। कहना चाहूंगा कि आभासी दुनिया आज हमारी युवा पीढ़ी पर हावी हो चली है। सच तो यह है कि आज फेसबुकिया किस्म के प्रेम की परिणतियाँ हत्या, आत्महत्या, ऑनर किलिंग, धोखाधड़ी और अनेक प्रकार की आपराधिक वारदातों के रूप में देखने को मिली हैं। फेसबुकिया प्रेम में फंसकर अच्छा भले बसे , जीवनयापन कर रहे परिवार बर्बाद हो रहे हैं। अपहरण, ब्लैकमेल(अश्लील वीडियो बनाकर), साइबर ठगी, धोखाधड़ी की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। इससे युवा पीढ़ी में तनाव और अवसाद पैदा हो रहा है। वास्तव में, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म में हमारे विचारों और कार्यों को प्रभावित करने की अभूतपूर्व शक्ति व क्षमताएं है, लेकिन इस शक्ति का उपयोग अच्छे के लिए करना हम पर निर्भर है। अक्सर सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग व प्रयोग करते समय हमें यह चाहिए कि हम लोगों के व्यवहार का ठीक से निरीक्षण करें और किसी भी पैटर्न या प्रवृत्ति की पहचान करने की कोशिश करें। वास्तव में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग या प्रयोग करते समय हमें यह चाहिए कि हम लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री के प्रकार, उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा, कंटेंट(सामग्री)और उनके द्वारा व्यक्त की जाने वाली भावनाओं का जागरूक होकर भली प्रकार से विश्लेषण करें। वास्तव में, अपने शोध अनुभवों(रिसर्च एक्सपीरियंसेज)और विभिन्न निष्कर्षों के आधार पर, हमें सकारात्मक ऑनलाइन व्यवहार को बढ़ावा देने और नकारात्मक वास्तविक दुनिया की कार्रवाइयों को कम करने के लिए रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है। इनमें नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने वाले सोशल मीडिया अभियान या जिम्मेदार सोशल मीडिया उपयोग सिखाने वाले विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम(एजुकेशनल प्रोग्राम) शामिल हो सकते हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के क्रम में आज सतत् निगरानी और मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है, क्यों कि आज के इस दौर में सोशल मीडिया की भूमिका हमारी सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बाँटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है। यह ठीक है कि आज सोशल मीडिया ने समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ने और खुलकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया है, लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि आज माता-पिता, अभिभावकों की निरंतर व्यस्तता, बच्चों के लिए असीमित इंटरनेट की सुविधा(अनलिमिटेड इंटरनेट फेसिलिटी) कहीं न कहीं अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में भारत में तकरीबन 350 मिलियन से भी ज्यादा सोशल मीडिया यूज़र हैं। वर्ष 2023 तक यह संख्या लगभग 447 मिलियन तक थी और आज इससे भी अधिक हो गई है। पाठकों को बताता चलूं कि वर्ष 2019 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय उपयोगकर्त्ता औसतन 2.4 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं।डाटारिपोर्टल डॉट कॉम और केपियोस की मानें, तो अक्तूबर 2024 तक दुनियाभर में सक्रिय सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की संख्या 5.22 अरब पर पहुंच गयी थी। एक आंकड़ा बताता है कि जनवरी 2024 में भारत में 46.2 करोड़ (462.0 मिलियन) सक्रिय सोशल मीडिया यूजर थे।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत की कुल इंटरनेट यूजर बेस का (बिना किसी आयु निर्धारण के), 61.5 प्रतिशत ने जनवरी 2024 में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग किया था।जनवरी 2024 में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के बीच,68.6 प्रतिशत भारत के सोशल मीडिया यूजर पुरुष थे, जबकि 31.4 प्रतिशत महिलाएं थी। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स वर्चुअल वर्ल्ड की दुनिया है, जहां प्रेम की आभासी स्वीकृति हमारे देश के युवाओं को दिशा भ्रमित कर रही है। इसके लिए जरूरत इस बात की है कि इन मंचों पर लगातार तकनीकी निगरानी और सख्ती तो रखी जाए ही, साथ ही साथ आभासी दुनिया से परे विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी में संवाद संस्कृति को सशक्त करने की दिशा में यथेष्ठ और नायाब प्रयासों की पहल की जाए। पाठकों को बताता चलूं कि ‘इंटरनेट इन इंडिया’ के मुताबिक, भारत में इस वर्ष यानी कि 2025 के दौरान इंटरनेट‎ यूजर्स की संख्या 90 करोड़ के पार हो‎ सकती है। यह एक आश्चर्यजनक लेकिन सत्य तथ्य है कि आज ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट यूजर शहरी क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहे हैं। जानकारी के अनुसार वर्ष 2024 में भारत में 88.6 करोड़ एक्टिव इंटरनेट यूजर थे। इनमें से 48.8 करोड़ ग्रामीण इलाकों से थे। गौरतलब है कि यह देश के कुल इंटरनेट यूजर्स का 55 प्रतिशत हिस्सा है। देश में इंटरनेट यूजर्स में से 47 प्रतिशत महिलाएं हैं। इस ट्रेंड से यह साफतौर पर जाहिर होता है कि डिजिटल क्रांति अब सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि गांवों तक भी हर वर्ग में अपनी पहुंच सुनिश्चित कर रही है। ऐसे में आज जरूरत इस बात की है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को डिजिटल साक्षरता के साथ-साथ भावनात्मक रूप से परिपक्व होना भी सिखाएं। वास्तव में, हमें अपनी युवा पीढ़ी को स्क्रीन की दुनिया से परे (वर्चुअल दुनिया से परे) आज वास्तविक दुनिया की ओर अग्रसर करने के लिए उन्हें भारतीय संस्कृति, संस्कारों, आदर्शों, नैतिकता से पुनः जोड़ने की जरूरत है और इसके लिए हमें अपने यथेष्ठ प्रयासों को गति देनी होगी।