खिलौने से खेलने की उम्र में कुछ बच्चे ऐसे बन जाते हैं नागा साधु

Some children become Naga Sadhus at the age of playing with toys

अजय कुमार

लखनऊ : महाकुंभ की भव्यता और आस्था के बीच यहां मौजूद नागा साधुओं की चहलकदमी सबके आकर्षण और जिज्ञासा का केन्द्र बने हुई है। नागा साधुओं का नाम जहन में आते ही अक्सर आम आदमी और श्रद्धालुओं के मन में थोड़ी मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। नागाओं से जुड़े तमाम सवालों को लेकर तमाम सवाल लोगों के मन मस्तिष्क को विचलित करते रहते हैं।ऐसे लोगों की ंिजज्ञासा को एक नागा साधु ने अपने बारे में कई खुलासे करके आमजन के कौतुहल को काफी हद तक शांत कर दिया । जूना अखाड़े के नागा संन्यासी, संत अर्जुन पुरी ने नागाओं से जुड़े विभिन्न भ्रांतियों को लेकर कई गलतफहमियां दूर कर दीं। नागा साधु संत अर्जुन पुरी न विस्तार से बताया कि आखिर कैसे बनाए जाते हैं नागा संत? कितनी कठिन होती है यह प्रक्रिया और महाकुंभ के बाद कहां रहते हैं नागा संन्यासी।

नागा संत अर्जुन पुरी ने बताया कि वह पांच वर्ष की अवस्था से नागा संन्यासी हैं। जब बोध हुआ तो संतों की शरण में थे। उन्होंने बताया कि ज्ञान, भक्ति, वैराग्य के द्वारा मेरा पालन-पोषण हुआ। अब तक का पूरा जीवन संत जीवन ही रहा है। नागा संत ने बताया कि उन्हें जूना अखाड़े की तरफ से धर्म प्रचार के लिए पूरी दुनिया में भेजा जाता है। भारत समेत अन्य देशों में सनातनी लोगों का प्रचार-प्रसार करना मुख्य उद्देश्य है।नागा संत अर्जुन पुरी ने बताया कि हम सनातन के सिपाही हैं। यह सनातन की फौज है। सनातन को विस्तारित करने, इसे सशक्त बनाने और इसका ध्वज पूरे विश्व में लहराने के लिए, नागा संतों की फौज बनाई जाती है। फिर उनको गुप्तचरों की तरह पूरे देश और विदेश में भेज दिया जाता है। वहां जाने के बाद हम लोग सनातनी धर्म-संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।

संत अर्जुन पुरी ने बताया कि नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन है। सभी को नागा संन्यास नहीं दिया जाता। सिर्फ उन्हीं को दिया जाता है जो बचपन से नागा संन्यासियों की शरण में आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि इसके बाद उन्हें कई तरह की कठोर साधनाओं, तपस्याओं, ध्यान-योग और पूजा-पाठ से गुजरना पड़ता है। बचपन से ही उनका लिंग मर्दन किया जाता है। नागा संन्यास में दिगंबर और श्री दिगंबर बनने के लिए बचपन से ही इसकी दीक्षा ली जाती है