अमन चैन का माहौल रास नहीं आ रहा है कुछ संगठनों को

सुशील दीक्षित विचित्र

दो अप्रेल को राजस्थान के करौली में हिंसा , तीन अप्रेल को गोरखनाथ मंदिर पर हमला , इसी रात अमरोहा के कांकरसराई की दरगाह पर आगजनी | ठीक एक हफ्ते बाद करौली की ही तर्ज पर देश के विभिन्न राज्यों में राम शोभायत्रा पर पत्थरवाजी समेत हुई कुछ और साम्प्रदायिक विद्वेष की घटनायें स्पष्ट इशारा कर रही हैं कि किसी समूह अथवा कुछ संगठनों को अमन चैन का माहौल रास नहीं आ रहा है और वे अपनी बंद हो चुकी दुकानों को फिर से चालू करने के लिए दंगे भड़का कर देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकने की फिराक में हैं | यह भी ध्यान रखने की बात है कि ऐसी कोशिशे इसी महीने से शुरू नहीं हुई | सीएए , एनआरसी के विरोध की परिणति दिल्ली दंगा से कर्नाटक के हिजाब विवाद तक और वहां से गोरखपुर के हमले तक तमाम ऐसे प्रकरण हुए जो यही बताते हैं कि समाज के खिलाफ कोई बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है और इस षड्यंत्र को न केवल राजनीतिक दल जाने -जाने अनजाने हवा तो दे ही रहे हैं , अपराधी के पकडे जाने पर उसके बचाव में उतर आते हैं |

गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर पर अहमद मुर्तजा द्वारा हमला करने के बाद मामले की जब जांच शुरू हुई तो बहुत चौकाने वाले खुलासे हुए | खुलासों से आँख फेर कर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव हमलावर के बचाव में न केवल उतर आये बल्कि उलटा भाजपा पर ही दोषारोपण करने लगे | उन्होंने बताया कि मुर्तजा के पिता ने कहा है कि उसका पुत्र मनोरोगी है | अच्छी दलील है अखिलेश यादव की | उन्हीं की दलील पर प्रतिप्रश्न खड़ा होता है कि जब वह मनोरोगी था तो उसने अपने परिजनों पर , किसी मस्जिद पर या मदरसे पर हमला क्यों नहीं किया ? उसने किसी अन्य सजातीय संस्थान पर हमला क्यों नहीं किया ? अब जो कुछ सामने आ रहा है उससे यही साबित होता है कि हमला किसी सिरफिरे ने अंजाम नहीं दिया क्योंकि हमलावर कोई अनपढ़ या अनूठाटेक नहीं था बल्कि आईआईटी था | उसे सिरफिरा कहकर मामले को हल्का करने के जो राजनीतिक प्रयास हो रहे हैं उनसे सहमत नहीं हुआ जा सकता |

यह लोन वुल्फ अटैक था और ऐसे अटैक यूरोप , श्रीलंका और चीन में पहले भी हो चुके हैं | हमलावर के पास से बरामद साहित्य भी वह इसी बात की चुगली करता है कि अहमद मुर्तजा नाम का हमलावर उसी आतंकी मिशन का एक छोटा सा पुर्जा है जो आईएसआईएस जैसे संगठन विश्व के विभिन्न देशों में हिंसा की आतंकी वारदाते करके पूरा करना चाहते हैं | इसीलिए वुल्फ अटैक वाला तरीका अपनाया गया | वुल्फ अटैक में एक ही व्यक्ति धारदार हथियार से निश्चित टार्गेट पर हमला करता है | यूरोप में पहले भी ऐसे अटैक सामने आ चुके हैं | चीन में नकाबपोशों ने भी कई बार वुल्फ अटैक करके कई लोगों की हत्या की जा चुकी है | इसलिए यह कहना कि मुर्तजा मासूम था , मनोरोगी था या किसी बीमारी से ग्रसित था आतंकी मंसूबों को हवा देना है | ऐसे ही रुख से वामपंथी और कांग्रेस पहले भी आतंकियों का मनोबल बढ़ाते आये हैं | दुर्दांत आतंकवादी बुरहान बानी को मास्टर का मासूम बेटा बताया गया , शरजील इमाम को बहुत अच्छा चित्रकार बताया गया , अफजल गुरू को क्रांतिकारी बताकर महिमामंडित किया गया और मुंबई हमले के अपराधी कसाब को निर्दोष बताकर अंतिम समय तक बचाने की कोशिश की गयी | यह भी एक तथ्य है कि समाजवादी पार्टी तो आतंकवादियों के मुकदमें ही वापस लेने की कोशिश कर चुकी है |

नरेंद्र मोदी के केंद्रीय सत्ता में आने के बाद बहुत तेजी से राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में भारी बदलाव हुआ | 2014 से पहले अल्पसंख्यकों के वोट निर्णायक माने जाते थे | यह कहना अधिक उचित होगा कि अल्पसंख्यकों को वोट बैंक माना जाने लगा | ऐसा वोट बैंक जिससे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दल अपनी सत्ता के अवसर कैश कराते रहे | पिछले आठ वर्षों के दौरान भारत की नदियों के पानी के साथ वोट बैंक की ताकत भी बह गयी | सत्ता को अपनी बपौती समझने वाले दलों और खुद को सत्ता का नीतिनियंता मानने वालों के लिए यह एक बड़ा झटका था | ऐसा झटका , जिसकी उन्होंने उम्मीद भी नहीं की थी | दोनों ने सोंचा भी नहीं था कि धर्मनिरपेक्षता का कवच इस तरह कट जायेगा कि उसका बचा खुचा अवशेष बोझ हो जाएगा | दोनों पक्षों की यही खिसियाहट देश में साम्प्रदायिक घटनाओं के पीछे खड़ी साफ़ देखी जा सकती | वे इसे छिपाने का प्रयास भी नहीं करते | अभी हाल में कई ऐसी घटनाये हुईं जिसमें भाजपा को वोट देने और समर्थन करने वालों को इनके ही समुदाय के लोगों ने प्रताड़ित किया | एक युवक को इसीलिये मॉवलीचिंग का शिकार बनाया गया कि उसने अल्पसंख्यक होते हुए भी भाजपा का प्रचार किया था |

मध्य प्रदेश के खरगोन समेत देश के चार राज्यों में रामनवमी के जुलूस पर हमलों का पैटर्न वहीँ है जो राजस्थान की करौली में देखा गया था और इससे पहले दिल्ली दंगों में देखने को मिला था | करौली में तो कांग्रेस के सभासद ने खुद दंगों का नेतृत्व किया | वहां से पलायन भी शुरू हो गया है लेकिन कांग्रेस सरकार अपने पुराने तौर तरीकों पर चलती हुई दंगाइयों को बचाने की कोशिश में लग रही है | मध्य प्रदेश में दंगाइयों के घरों को बुलडोजर से गिरा देने से नाराज ओवैसी और कुछ मुस्लिम पत्रकार सवाल कर रहे हैं कि किस क़ानून के तहत उन पर बुलडोजर चला | उनसे जब पलट कर पूछा गया कि किस क़ानून के तहत धार्मिक जुलूसों पर पत्थरबाजी हुई तो उन्हें जबाब नहीं सूझा |

कांग्रेस और सपा समेत सभी विपक्षी दल अपनी खोई जमीन पाने के लिए अभी भी धार्मिक उन्मादियों का जिस तरह बचाव कर यह हैं उससे उनकी राजनीतिक सूझबूझ का स्तर पता चलता है | वे नहीं देख पा रहे हैं कि सांप्रदायिकता के आधार पर अपराधी का समर्थन या विरोध करने से निकले सन्देश को उन्होंने बहुसंख्यकों को नरेंद्र मोदी के पीछे लामबंद कर दिया | यह लामबंदी वोटबैंक पर ऐसी भारी पड़ रही है कि कांग्रेस कई राज्यों में हासिये से भी बाहर हो गयी है | यूपी में बसपा हाशिये पर पहुँच गयी और सपा उस मुकाम पर पहुँचने की बहुत तेजी से बढ़ चुकी है | मुर्तजा जैसों का समर्थन और दंगाइयों की पक्षधरता के परिणाम किसी भी दल के लिए शुभ साबित नहीं हो सकते | पहले भी साबित नहीं हुए और भी नहीं होंगे | पत्थरबाजी की घटनाये बंद नहीं हुईं तो इसकी प्रतिक्रिया भी हो सकती है जो और भी घातक होगी |

देश के टुकड़े करने का सपना देख रहे षड्यंत्रकारियों का उद्देश्य भी देश को गृहयुद्ध के मुहाने पर ले जा कर खड़ा कर देना है | यह देखना और भी अचम्भित करता है कि संविधान की आड़ में विपक्षी राजैतिक दल भी अपनी खोयी सत्ता की वापसी के लिए कहीं न कहीं पर देश विरोध और विरोधियों को बढ़ावा देते रहे हैं और उनके समर्थकों को राजनीतिक प्रश्रय भी हासिल कराते रहे हैं | कांग्रेस ने कश्मीर में अलगाववादियों का किस तरह पोषण किया और किस तरह उन देशद्रोहियों पर मेहनतकश जनता से लिए टैक्स का अरबों रुपया लुटा कर उनको संरक्षण दिया यह किसी से छुपा नहीं है | उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में माफियाओं और दंगाईयों पर चले बुलडोजरों का सबसे अधिक कष्ट सपा और कांग्रेस को ही हुआ | कांग्रेस के सुपर स्टार नेता दिग्विजय सिंह ने तो धार्मिक उन्माद भड़का के उद्देश्य से ट्यूटर पर कहीं और की तस्वीर एमपी की बताकर पोस्ट कर दी | जब उसकी पोल खुली तो हटा भी ली |

अब अगर कोई विपक्षी दल यह समझता है कि ऐसे सामाजिक शान्ति विरोधी हथकंडों से भाईचारा बढ़ेगा और साम्प्रदायिक सौहार्द मजबूत होगा तो वे बहुत बड़े मुगालते में हैं और स्पष्ट लगता है कि वर्तमान में घट रही घटनाएं से कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं | उनकी इसी घातक नीति ने कर्नाटक को साम्प्रदायिक वैमनस्य की कगार पर खड़ा कर दिया है | आगे सारे देश में इसके परिणाम अच्छे होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि बहुसंख्यकों के पक्ष की लामबंदी भी तेज हो चुकी है | इससे पहले कि ध्रुवीकरण और तेज हो लामबंदी और मजबूत हो देश के नेताओं को अपने दोहरे मानदंडों वाले एजेंडों से परहेज करना होगा अन्यथा यही मापदंड उनके लिए वैसे ही घातक बन जाएंगे जैसे कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टीकरण का हथकंडा आज उनके लिए जी का जंजाल बना हुआ है |