वन नेशन-वन इलेक्शन का ड्राफ्ट देखे बिना विरोध पर उतरी सपा-कांग्रेस

SP-Congress started protesting without seeing the draft of One Nation-One Election

अजय कुमार

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में अब एक देश एक चुनाव पर राजनीति शुरू हो गई है। बसपा जहां इसका समर्थन कर रही है वहीं कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को एक देश-एक चुनाव की तरफ बढ़ती मोदी सरकार रास नहीं आ रही है। अखिलेश ने तो वन नेशन-वन इलेक्शन के खिलाफ जनमत तैयार करने की बात भी कहना शुरू कर दी है। इसके लिए पार्टी द्वारा गांव-गांव अभियान चलाया जाएगा। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के माध्यम से कहा कि एक देश-एक चुनाव सही मायनों में एक अव्यावहारिक है, क्योंकि कभी-कभी सरकारें अपनी समय अवधि के बीच में भी अस्थिर हो जाती हैं। उस स्थिति में क्या वहां की जनता बिना लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के रहेगी? इसके लिए संवैधानिक रूप से चुनी गई सरकारों को बीच में ही भंग करना होगा, जो जनमत का अपमान होगा।मगर सवाल यह है कि क्या अखिलेश ने वन नेशन-वन इलेक्शन के लिये तैयार किया गया ड्राफ्ट पढ़ लिया है या फिर बिना पड़े ही ऐसी बातें अपनी राजनीति चमकाने के लिये कर रहे हैं। ऐसा इसलिये भी लगता है क्योंकि अखिलेश यादव जो खामियां और समस्याएं गिना रहे हैं उस पर मोदी सरकार ने मंथन नहीं किया होगा,ऐस असंभव है।

सपा प्रमुख तो यहां तक सोचने लगे हैं कि एक देश, एक चुनाव लोकतंत्र के खिलाफ एकतंत्री सोच का बड़ा षड्यंत्र है, जो चाहता है कि एक साथ ही पूरे देश पर कब्जा कर लिया जाए। इससे चुनाव एक दिखावटी प्रक्रिया बनकर रह जाएगी। सपा सूत्रों के मुताबिक इस मामले में अखिलेश यादव ने पार्टी की लाइन स्पष्ट कर दी है। इस मुद्दे को लेकर पार्टी लोगों के बीच जाएगी ताकि भाजपा सरकार पर दबाव बना सके। उधर, यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि एक देश-एक चुनाव के जरिये भाजपा अपनी नाकामी छुपाने की कोशिश में लगी। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र व यूपी सरकार हर मोर्चे पर फेल है। भाजपा का झूठ उजागर हो चुका है। जनता अब इनके झांसे में नहीं आ रही है। ऐसे में एक नया शिगूफा लाया गया है।बता दें कांग्रेस और सपा से इतर बसपा सुप्रीमो मायावती एक देश-एक चुनाव का समर्थन कर चुकी हैं। बीते सितंबर में केंद्रीय कैबिनेट द्वारा इस प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने के बाद उन्होंने कहा था कि इस पर उनकी पार्टी का स्टैंड सकारात्मक है। लेकिन इसका उद्देश्य देश व जनहित में होना जरूरी है। माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर बसपा अपने पुराने स्टैंड पर ही कायम रहेगी।

बात बुद्धिजीवियों की कि जाये तो लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि पूर्व में कांग्रेस के समय में भी एक देश-एक चुनाव की व्यवस्था को लागू करने के प्रयास किए गए थे। आज भले ही विपक्ष इसे संविधानी ढांचे के विरुद्ध बताए, लेकिन ऐसा है नहीं। विपक्ष यह कह रहा है कि अगर कोई सरकार दो साल बाद गिर जाती है, तो क्या होगा। केंद्र इसके लिए नियमों में संशोधन भी करेगी। इसके लागू होने से विकास कार्य को गति मिलेगी। लखनऊ विश्वविद्यालय के ही प्रो. सौरभ मालवीय का भी कहना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने से देश का खर्च और संसाधनों की बचत होगी। साथ ही राजनीतिक पार्टियों को भी कार्य में सुविधा होगी। वर्तमान समय वैज्ञानिक युग का है, ऐसे में कम संसाधन के उपयोग से अधिक लाभ लेना ही प्रगति का सूचक है। अतः एक देश-एक चुनाव जनहित और देशहित में होगा।