नीति गोपेंद्र भट्ट
भगवान विष्णु के सातवें अवतार मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम का अवतरण आज से ठीक 1 करोड़ 85 लाख58हजार 121 वर्षों पहले हुआ था ।
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान राम ने धरती पर अवतार लिया था, अतः इस दिन को रामनवमी के नाम से जाना जाता है ।
इस वर्ष राम नवमी का पर्व 30 मार्च को मनाया जाएगा । इस दिन चैत्र नवरात्रि का नौंवा दिन भी है और नवरात्रिव्रत का समापन और व्रत का पारण किया जाएगा ।
इस बार राम नवमी पर 5 विशेष योग का गुरु पुष्य योग, अमृत सिद्धि योग, रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग औरगुरुवार का संयोग बन रहा है । इससे श्रीराम की पूजा का श्रेष्ठ फल सिद्धि और सफलता प्राप्त होगी ।
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय निम्बाहेड़ा के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसारवाल्मीकि रामायण और तुलसी राम चरित मानस में वर्णन है कि भगवान राम ने धरती पर अवतार लेने का वर्णनहै। इस दिन भगवान राम की विशेष आराधना की जाती है ।
श्रीराम भगवान विष्णु के 7वें अवतार हैं और गुरुवार का दिन विष्णु जी को अति प्रिय है । ऐसे में इस बार रामजन्मोत्सव के गुरुवार को होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है ।
ज्योतिषाचार्य डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी का कहना है कि शास्त्रों में राम नवमी का विशेष महत्व माना गया है । रामनाम में इतनी शक्ति है कि अगर व्यक्ति इस नाम का जाप करता रहे तो वो मोक्ष प्राप्त कर सकता है । ऐसे मेंइस दिन प्रभु श्रीराम की पूजा का महत्व कई गुना बढ़ जाता है । सच्ची पूजा से तमाम बुरे कर्म कट जाते हैं ।जीवन के दुख, कष्ट और घर के संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होंती है।
राम नवमी पूजा विधि
राम नवमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें । इसके बाद एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर प्रभु श्रीरामकी तस्वीर स्थापित करें । इस तस्वीर को ऐसे रखें की पूजा के दौरान आपका मुख पूर्व दिशा में रहे । पंचामृत सेप्रभु का अभिषेक करें। उन्हें धूप, दीप, पुष्प, रोली, चंदन, अक्षत, वस्त्र, कलावा, भोग आदि अर्पित करें । प्रभुश्रीराम के साथ हनुमान जी की भी पूजा करें। इसके बाद रामचरितमानस, श्रीराम रक्षा स्तोत्र, सुंदरकांड, हनुमानचालीसा, राम जी के मंत्रों का आदि का जाप करें । प्रेमपूर्वक आरती करें और शाम के समय राम जी के भजनआदि करें। इससे आपके घर की नकारात्मकता दूर होगी । प्रभु की कृपा से बिगड़े काम भी बनने शुरू हो जाएंगे।
राम की कुंडली में है महायोगों की भरमार
भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को दोपहर के समय में कर्क लग्न और कर्क राशि में हुआ था । डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी बताते हैं कि भगवान राम की कुंडली में पांच ग्रह उच्च राशि में विराजमान थे और चार ग्रहअपनी ही राशि में थे। प्रभु श्रीराम की कुंडली में महायोगों की भरमार है । चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को हर सालराम नवमी का व्रत रखा जाता है । दुनिया में आज तक किसी भी व्यक्ति की कुंडली में ऐसे योग नहीं बने हैं ।
वाल्मीकि रामायण में उनके जन्म के समय के ग्रहों की स्थिति को देख अनुमान लगाया जाता है कि भगवान रामजब अयोध्या के राजा बने, तब से उन्होंने 11 हजार वर्षों तक निर्बाध राज्य किया ।
रामचरितमानस में यह श्लोक है कि
*जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।।
नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सकल पुच्छ अभिजित हरिप्रीता।।
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥
इसका अर्थ है कि भगवान राम के जन्म के समय चैत्र माह, नवमी तिथि, शुक्ल पक्ष और अभिजित मुहूर्त था।अभिजित मुहूर्त दोपहर में होता है। मधुमास यानि वेदों में चैत्र माह को ही मधुमास कहा गया है। उस समय नज्यादा गर्मी और न ज्यादा सर्दी थी ।
भगवान राम की कुंडली
प्रभु श्री राम की कुंडली में श्रेष्ठतम गजकेसरी योग, महाबली योग, रूचक योग, हंस योग, शशक योग, कीर्तियोग, मालव्य योग, कुलदीपक योग, चक्रवर्ती योग जैसे श्रेष्ठतम योगों की भरमार है । डॉ. तिवारी बताते है किभगवान राम की कुंडली देखी जाए तो कर्क लग्न और कर्क राशि की है. लग्न में चंद्रमा और गुरु हैं । पराक्रमभाव में राहु, माता के भाव में शनि, पत्नी भाव में मंगल, भाग्य भाव में शुक्र के संग केतु, दशम भाव में सूर्य औरएकादश भाव में बुध है ।
इसलिए बने मर्यादा पुरुषोत्तम
देखा जाए तो भगवान राम की कुंडली के लग्न में बैठे गुरु नवमेश भी हैं और दशम भाव में उच्च राशि का सूर्य है ।गुरु और सूर्य की अच्छी स्थिति के कारण प्रभु राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । वे हमेशा नीति के अनुसार काम किए ।सूर्य के कारण प्रसिद्ध चक्रवर्ती सम्राट हुए ।
इन ग्रहों से जीवन रहा संघर्षपूर्ण
कुंडली में शनि और मंगल की स्थिति के कारण ही भगवान राम का जीवन अति संघर्षशील रहा । माता भाव मेंशनि होने से मातृ सुख की कमी दिखी । भाग्य भाव में शुक्र के संग केतु का होना और उस पर राहु की दृष्टि केकारण वे राजकुमार और बाद में राजा होते हुए भी एक संन्यासी सा जीवन व्यतीत किये ।
16 वर्ष में भाग्योदय का शुभारंभ
कुंडली में बृहस्पति और चंद्रमा की शुभ स्थितियों से भगवान राम के भाग्योदय का शुभारंभ 16 वर्ष की अवस्थासे हो गया और 25 वर्ष में पूर्ण भाग्योदय हुआ । पराक्रम भाव में राहु की उपस्थिति ने वीर और पराक्रमी बनाया।
प्रभु राम भगवान विष्णु के अवतार थे, लेकिन उन्होंने मनुष्य रूप में जन्म लिया, इसलिए उन पर भी ग्रहों काप्रभाव रहा। उन्होंने सभी परिस्थितियों में नीति का पालन करते हुए अपने जीवन में उच्च आदर्श स्थापित किए ।इस वजह से वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए और आज भी उनकी पूजा होती है ।
भारत में श्री राम की विशेष महिमा हैं और अयोध्या में श्री राम लल्ला के विशाल मंदिर का निर्माण शीघ्र पूरा होने वाला है। मंदिर में लग रही प्रस्तर शीलाएं राजस्थान के धोलपुर करौली जोधपुर जयपुर और दक्षिणी राजस्थान आदि से मँगवा कर लगाई जा रही हैं और मुख्य वास्तुकार भी राजस्थान से ही हैं।