डॉ. सुधीर सक्सेना
55 वर्षीय अनुरा कुमारा दिसानायके अब द्वीप- राष्ट्र श्रीलंका के निर्वाचित जनाधिपति है। जनाधिपति यानि राष्ट्रपति। श्रीलंका के प्रबुद्ध मतदाताओं ने उन्हें बड़ी उम्मीदों के साथ अपना राष्ट्राध्यक्ष चुना है। यूं तो उनकी जीत की खबर रविवार, 22 सितंबर की सुबह ही मिल गयी थी, अलबत्ता संवैधानिक प्रावधान के तहत उनके निर्वाचन की औपचारिक घोषणा में चौबीस घंटे से अधिक का विलंब हुआ। ऐलान में देरी की वजह यह रही कि राष्ट्रपति पद के लिये चुने जाने के लिये जरूरी है कि उम्मीदवार को मतों के 50 प्रतिशत से एक मत अधिक मिले। श्रीलंका के संसदीय इतिहास में यह पहला मौका था कि अनुरा जीतकर भी इस शर्त को पूरा नहीं कर पाये। लिहाजा मतदाताओं की द्वितीय वरीयता की गणना शुरू हुई और उसमें अनुरा कसौटी पर खरे उतरे। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी सजिथ प्रेमदासा को 12.7 लाख से अधिक वोटों से मात दे दी।
कोलंबो खूबसूरत शहर है और अनुरा राष्ट्रपति चुने जाने के पूर्व तक कोलंबो से निर्वाचित सांसद थे, लेकिन उनकी जीत पर न तो कोलंबो और न ही अन्यत्र ढोल-ताशे बजे, न आतिशबाजी हुई और न ही विजयोन्मत्त कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी से आकाश गुंजाया। सोमवार को कोलंबो में लाल ड्रेस पहने जनता विमुक्ति पेरामुना के समवेत विजयगीत गाते हुये कार्यकर्ताओं की अनुशासित और प्रभावशाली रैली जरूर निकली। दरअसल, स्वयं अनुरा दिसानायके ने कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वे आर्थिक संकट के अभूतपूर्व दौर में सड़को पर जश्न नहीं मनाएं, बल्कि घर पर ही जीत की खुशी को सेलीब्रेट करें। कार्यकर्ताओं ने अपने नेता की बात मानी।
सुश्री सुभाषिणी रत्नायक कोलंबो के केलानिया दात्री विश्वविद्यालय में छात्र- परामर्शदात्री हैं। वह अन्य दो विश्वविद्यालयों में हिन्दी की अतिथि- आचार्य भी है। सुश्री रत्नायक उन लाखों युवाओं से में एक हैं, जो अनुरा दिसानायक की जीत से हर्ष विह्वल है। इन युवाओं को लगता है कि अनुरा अपनी दृढ़ता और समाजवादी नीतियों से श्रीलंका को आर्थिक- बोगदे से बाहर निकालने में कामयाब होंगे। यह बात कतई लुकीछिपी नहीं है कि अनुरा वामपंथी रुझान के राजनीतिज्ञ हैं और अन्य अधिकांश नेताओं के विपरीत अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कोष (आईएमएफ) की शर्तों से सहमति नहीं रखते। वह आईएमएफ की शर्तों को बुरी तरह से ऋमग्रस्त और आर्थिक रूप से जर्जर श्रीलंका पर थोपा हुआ मानते हैं। वह करीब तीन अरब डॉलर के बेल-आउट पैकेज को रद्द करने की बात तो नहीं करते, लेकिन शर्तों पर बातचीत को जरूरी मानते हैं। वह श्रीलंका के ‘पुनरोदय’ के हिमायती हैं। वस्तुत: उन्होंने सन् 2022 में अभूतपूर्व आर्थिक संकट के विरुद्ध उपजे जनआंदोलन – अर्गालय – से ही शोहरत की सीदियां चढ़ीं, अन्यथा सन 2019 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में उन्हें कुल जमा तीन फीसद यानि 4,18,553 वोट मिले थे। सन् 22 में अर्गालय से अनुरा भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक बनकर उभरे। उनकी खरी-खरी लोगों को रास आई। गौरतलब है कि अनुराधापुर में थंबूट्ूटेगमा में 24 नवंबर, सन् 1968 को जनमे अनुरा श्रमिक पिता की संतान हैं। अपने पूरे नाम के आद्य अक्षरों के समुच्चय से बने ‘एकेडी’ के तौर पर लोकप्रिय अनुरा केलानिया विश्वविद्यालय से स्नातक है। वह जेवीपी से सन् 1987 में ही जुड़ गये थे। सन् 2000 में उनका सितारा चमका और तब से या तो राष्ट्रीय सूची से अथवा पहले कुरूनेगला और फिर गत दो बार कोलंबो से साँसद चुने गये। सन् 2004-05 में सुश्री चंद्रिका कुमारतुंगा के राष्ट्रपति और महेन्द्र राजपक्षे के प्रधानमंत्री रहते वह कृषि और पशुधन मंत्री रहे। सन् 2014 में वह जेवीपी और सन् 2019 में राष्ट्रीय जनशक्ति के नेता चुने गये। इस चुनाव में भ्रष्टाचार को केन्द्रीय मुद्दा बनाकर रूपक गढ़ने में वह सफल रहे और यदि सन् 19 में उनको प्राप्त मतों को देखें तो कह सकते हैं कि वह ‘क्वांटम-लीप’ की बदौलत जनाधिपति के सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पद तक पहुंचे।
अनुरा कुमारा दिसानायके वामपंथी रुझान रखते हैं। उनकी शख्सियत वामविचारों में पगी है। हम उन्हें स्वाभाविक तौर पर नव-मार्क्सवादी कह सकते हैं उनकी यही चरित्रावलि उनको भावी नीति और कदमों को लेकर शंकायें और अटकलें उपजाती है। वह उस जेवीपी से जुड़े हैं, जिसने सन् 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते और शांति सेना का विरोध किया था। श्रीलंका और हिन्द महासागरीय क्षेत्र में चीन की गहरी रूचि और हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन को दिये जाने से सब परिचित हैं। ऐसे में अनुरा की वामपंथी रुझान से अटकले स्वाभाविक है। मानना चाहिये कि जातीय और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा भारत की चार बिलियन डॉलर की मेगा मदद के मद्देनजर भारत और श्रीलंका के रिश्ते मैत्री और सौहार्दपूर्ण रहेंगे। इसी साल फरवरी में अनुरा के नेतृत्व में उच्चस्तरीय शिष्ट मंडल की विदेशमंत्री जयशंकर और रक्षा सलाहकार अजीत डोवाल से भेंट और चर्चा को विस्मृत नहीं किया जा सकता। हां, यह जरूर देखना होगा कि वह तमिलों को सत्ता में भागीदारी के लिए संविधान में किये 13 वें संशोधन पर अमल करते हैं या नहीं। गौरतलब है कि उनके मुकाबले सजिथ प्रेमदासा को तमिल-इलाकों में ज्यादा वोट मिले।
इसमें शक नहीं कि अनुरा अपने सरोकारों के चलते सामाजिक कल्याण के उपक्रमों को अनुदान में वृद्धि के साथ स्वास्थ्य, चिकित्सा, भोजन और शैक्षिक सेवाओं पर कम कराधान की नीति अपनायेंगे। बिलाशक उनके निर्वाचन से श्रीलंका में नये युग का सूत्रपात हुआ है। राजपक्षे परिवार का दो दहाई से अधिक के वर्चस्व का दौर समाप्त हुआ और बूढ़े रानिल विक्रमसिंघे पर अवलंबन का भी। तमिल नेता एमए सुमंथिरन की यह बात मायने रखती है कि यह चुनाव जातीय या धार्मिक अंधता व उन्माद की अनुपस्थिति के लिए याद किये जाएंगे। श्रीलंका में भारत के पूर्व सह उच्चायुक्त धीरेन्द्रसिंह दुनिया में दक्षिण पंथ के वर्चस्व के दौर में इसे जेवीपी का ‘चमत्कार’ मानते हैं। वह कहते हैं कि इसके लिए वित्तीय संकट और विक्रमसिंघे का कमजोर प्रशासन उत्तरदायी है। उनकी मान्यता है कि श्रीलंका तटस्थता की नीति पर चलेगा और भारत से मैत्री निभायेगा।
अनुरा ने दीर्घकालिक स्थायित्व के लिए क्रमिक परिवर्तनों का संकेत दिया है। अनाज, दवाओं और ईंधन की किल्लत से जूझ रहे अर्थ-जर्जर श्रीलंका जैसे छोटे टापू राष्ट्र में चुनौतियां बढ़ी है। अनुरा की जीत को नये चोले में कम्युनिज्म की वापसी के तौर पर भी देखा जा सकता है।