सुरेश खांडवेकर
जो ना देखे रवि वह देखे मोबाइल फोन या कंप्यूटर ! ऑनलाइन सर्विसेज की कोई सीमा नहीं है, अनंत सेवाएं ! अब
तो बीमा , बीमारियां, ट्रांसपोर्ट, नौकर चाकर, बैंकिंग सुविधाएं , लेन देन में, सब कुछ ऑन लाइन सेवाओ में उपलब्ध है।
एक बार ऐसे ही माउस लिए कंप्यूटर के गूगल में खोजता रहा था, क्या दाह संस्कार की ऑनलाइन सुविधाएं हैं ? बहुत खोजबीन के बाद एक सूत्र मिला तो हमने पूछा, “महाशय नमस्कार , मुझे पता चला आप ऑनलाइन दाह संस्कार भी करते हैं । क्या मैं कुछ जानकारी ले सकता हूं ? आपको ऐसा काम मिलता रहता है ?”
“हां, विगत कुछ वर्षों से कर रहा हूं। आजकल यह सेवाएं लगातार बढ़ रही है। खासकर कोरोनावायरस के बाद से यह काम बढ़ गया है। ”
“क्या आपको इस प्रकार के ग्राहक मिलते हैं ? ग्राहक कहे या जजमान ? ”
“जो कहो, मिलते हैं। आजकल का समय बहुत खर्चे का और व्यस्तता का हो गया है। व्यस्तता तो बहुत ज्यादा है ।”
“कहां से मिलते हैं ऐसे ग्राहक ?”
“अधिकांश विदेशी भारतवंशी होते हैं। छुट्टियों के अभाव में वे समय पर भारत आ नहीं पाते। कुछ अकेले होते हैं। कुछ अशक्त होते हैं, बीमार होते हैं। ऐसी स्थिति में वह दाह संस्कार के कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाते तो वे हमसे संपर्क करते हैं।”
“आपसे यह लोग कैसे संपर्क करते हैं?”
“ऐसे ही जैसे आप करते हैं किंतु हमरा कुछ अस्पतालों से भी टाइप है वह हमें ऐसे हताश दीवारों की जानकारी देते रहते हैं! उनके साथ टाइप होता है! ”
“आप क्या-क्या करते हैं?”
“हम कई प्रकार का काम करते हैं । जैसे उनकी बीमारी का ध्यान में रखते हुए उनके सेवा सुश्रुषा भी करते हैं। अस्पताल से बॉडी लेकर ये अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी भी हम लेते हैं। उसने आगे कहा,”यजमान की इच्छा अनुसार धार्मिक विधि विधान के साथ-साथ , रोने धोने का परंपरा भी हम निभाते हैं!”
“अच्छा ‘
“अंतिम संस्कार में क्या-क्या होता है ?”
“उनकी इच्छा अनुसार दाह संस्कार करना, फूल चुनना, अस्थियां प्रवाहित करना, पिंड दान, पूजा अर्चन करना । अस्थि विसर्जन से लेकर दसवां, ग्यारहवीं , तेरहवीं, पगड़ी रसम आदि करना यह सब हमारी सेवाओं में सम्मिलित है।”
“यह सब कैसे करते हैं?”
” सारा कार्यक्रम लिखित होता है । सब टाइम टेबल होता है इच्छानुसार। यदि वे चाहें तो ऑनलाइन कार्यक्रम देख भी सकते हैं । उसमें सम्मिलित भी हो सकते हैं। हम सारे इंतजाम करते हैं । जिससे परमधाम सिधारने वाली आत्मा को शांति मिल सके।
और परिवार अपने धार्मिक परंपराओं को निभा कर संतुष्ट हो सके।”
पंडित जी का कहना था आजकल ऐसी समस्याएं बहुत आने लगी है परिवार बिखरते चले जा रहे हैं । हिन्दू समाज में एक- एक, दो -दो बच्चे होते हैं और सब देश विदेश में तो कहीं दूर रोजगार में लगे रहते हैं। समय पर आ जा नहीं सकते। ”
दो स्थितियां देखने को मिलती है ! एक माता पिता के साथ सामंजस्य किंतु , भौगोलिक दूरियों के कारण ना मिल पाना । दूसरे, माता पिता के साथ किसी कारण सामंजस्य के अभाव में ऐसी स्थितियां भी होती है ।
इसके अतिरिक्त धार्मिक और पारिवारिक मान्यताएं इतनी मजबूत होती है। वे रीति-रिवाजों के अनुसार दाह संस्कार कराने के लिए प्रतिबद्ध हो जाते है।
पहले भी इस प्रकार की सेवाए होती थी। किंतु उसमें आत्मभाव था, पारिवारिकता और सौहार्द था। सामाजिकता थी, मैत्री भाव था। अब स्थितियां बदल गई है। अब भौतिकवादी युग आ गया है । समाज बिखर गया है तो परिवार भी बिखर गया है। बातों बातों में उसने कहा, “समाज इस समय संवेदनहीन हो गया हैं । आपस में प्रेम और सद्भाव और लगाव में कमी आ गई है। लोग धार्मिक कर्मकांड किसी तरह विवश होकर करते हैं।”
“क्यों विवश होकर करते हैं?”
” भूतभय और भटकती आत्मा की आशंका का डर भी उन्हें विवश करता है । कहीं ऐसा वैसा ना हो जाए। इसलिए वह यह सब काम आवश्यक समझकर करते हैं।”
“क्या केवल हिंदू समाज के लोग मिलते हैं?”
“ऐसा तो नहीं है भूत बाधा का भय तो सभी जाति धर्म में है।”
“आपको दक्षिणा कैसे मिलती है ?”
“इसमें कोई पूछने की बात है इसमें भाव तो नहीं होता। यह है कि अजमान न्यूनतम खर्चे की मांग फिर भी करते रहते हैं । इसमें भी दौड़ भाग तो है ही! हम सारे कर्मकांड का हिसाब लगाकर दक्षिणा बताते हैं। ”
” पहले लेते हैं या बाद में लेते हैं?”
” पहले एडवांस 20% शेष काम संपन्न होने पर।”
” कभी ऐसा भी हुआ कि किसी यजमान ने आपको दक्षिणा पूरी न दी हो ?”
“नहीं। लगभग सारी दक्षिणा अग्रिम मिल जाती है, एडवांस!वह आगे बोले, “सारे कार्यक्रम की हम वीडियोग्राफी भेज देते हैं! दक्षिणा भी ऑनलाइन ही मिल जाती है।”
समय तेजी से बदल रहा है। पैसा दो हर सुविधा मिलेगी।
पंडित जी से हमने पूछा, ” मान्यवर, आपको इस प्रकार के काम करने की प्रेरणा कैसे मिली?”
बोले, “आपको जानकारी होगी कि यूरोप और अमेरिका में मरने वाले लोग अपने ताबूत पहले ही खरीद कर रखते हैं । एक बार, इसी तरह मेरा एक अकेले असहाय व्यक्ति से सामना हुआ । उस बूढ़े ने भी आपकी तरह मुझे गूगल में मुझे सर्च किया और कहां, ‘ पंडित जी , मैं अकेला हूं । मेरा आगे पीछे कोई नहीं है । लेकिन मरने के बाद सड़ने गलने से पहले मैं अपने अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी आपको देना चाहता हूं । क्या आप मेरी मदद करोगे ? जीवन का कोई ठिकाना नहीं। किस मोड़ पर मौन आ जाए । अंतिम सांसे कब रुक जाए कह नहीं सकते।”
वह रोते-रोते कहने लगा, ” पूरा जीवन जी लिया अब अकेला रह गया हूं। मैं पिघल गया । कहने लगा, ” तुम्हारे खर्चे पाने की मैं अभी से व्यवस्था कर देता हूं ।”
“बस मैंने यह सेवा शुरू कर दी। वह मुझे बेटा बेटा कहता रहा। मैं कैसे मना करू ?’
” में किसी प्रकार का प्रॉफिट नहीं लेता! बस एक तरह से धर्म निभाता हूं।”
अंत में पूछा,”और कौन-कौन सी सेवाएं क्षेत्र में आतें है ?”
“बंधुवर यह ऑनलाइन संस्कार विधि का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है ! मेरे पास भी समय की कमी है । फिर भी मैं आपको बता दूं। नौ ग्रहों की शांति, टोटका, बाधा , भूत प्रेत की शांति , परिवारिक कलह, अशांति दूर करने के लिए आध्यात्मिक उपाय, हवन इत्यादि सब काम के अलग-अलग विशेषज्ञ पंडित अपनी सेवाएं दे रहे हैं।”
“चीटिंग भी होती होगी ? ,”
“चीटिंग कहा नहीं है ? यमराज महोदय भी चीटिंग करते रहते हैं पहले एंबुलेंस में ले जाते हैं बाद में तड़पा तड़पा के अपने साथ। वैसे भी, जहां मानव है वहां सभी प्रकार का बाजार है।
“आज कल चीटिंग हीं बाजार है ! छीना झपटी प्रत्यक्ष चीटिंग है लेकिन ऑनलाइन चीटिंग सभ्यता का प्रतीक बन गया है।”
” धन्यवाद ! नमस्कार।”
मैंने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया। ध्यान आया , “अब कुछ कुछ स्टार्टअप वाले युवा, वरिष्ठ नागरिकों के पास जाकर बीमा एजेंटों की तरह ‘भगवान ना करे’ कह कर अपनी सेवाओं का प्रस्ताव रखते मिलने लगे हैं। जैसे “श्रीमान जी आप हमारे मातापिता तुल्य हो । कृपया आप अपने अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी हमें दे , प्लीज! हमारा नया नया स्टार्टअप है । आपकी आत्मा को शांति दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे! बच्चों से ज्यादा हम आपकी मरणोपरांत सेवा करेंगे। सब आपके इच्छा अनुसार करेंगे!