एच-1बी वीज़ा फ़ीस में भारी बढ़ोतरी: भारतीय पेशेवरों के लिए वरदान या संकट?

Steep Hike in H-1B Visa Fees: A Boon or a Woe for Indian Professionals?

प्रीति पांडेय

अमेरिका ने एच-1बी वीज़ा पर काम करने वाले विदेशी पेशेवरों के लिए एक चौंकाने वाला फ़ैसला लिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नए आदेश के तहत हर नए आवेदक या वीज़ा नवीनीकरण करने वाले को अब प्रति वर्ष 1,00,000 डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) फ़ीस अदा करनी होगी। यह नियम 21 सितंबर 2025 से लागू हो जाएगा।

अब तक यह फ़ीस करीब 1,500 डॉलर (1.32 लाख रुपये) थी। यानी अचानक लगभग 66 गुना वृद्धि कर दी गई है। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लटनिक ने साफ कहा है कि कंपनियों को यह तय करना होगा कि वे विदेशी पेशेवरों पर इतना बड़ा खर्च करना चाहती हैं या फिर स्थानीय लोगों को नौकरी पर रखें।

भारत पर सीधा असर क्यों?

यूएससीआईएस (USCIS) के 2024 के आँकड़ों के मुताबिक, स्वीकृत एच-1बी वीज़ा में से 71% भारतीयों को मिले थे, जबकि चीन 11.7% के साथ दूसरे स्थान पर था। यानी यह बदलाव सबसे ज़्यादा भारतीय आईटी पेशेवरों और कंपनियों को प्रभावित करेगा।

भारत सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह इस फ़ैसले के प्रभावों का अध्ययन कर रही है और इस कदम से कई परिवारों की स्थिति कठिन हो सकती है। विदेश मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि अमेरिकी प्रशासन मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखेगा।

भारतीय कंपनियों और पेशेवरों पर असर

भारतीय आईटी उद्योग लंबे समय से एच-1बी वीज़ा पर निर्भर रहा है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS), इन्फोसिस, विप्रो जैसी दिग्गज कंपनियां और माइक्रोसॉफ़्ट, गूगल, अमेज़न जैसी अमेरिकी दिग्गज भी भारतीय टैलेंट पर भरोसा करती रही हैं।

आईटी-बीपीएम इंडस्ट्री संगठन नैसकॉम ने इस बदलाव को लेकर चिंता जताई है। संगठन के अनुसार यह अचानक लिया गया निर्णय व्यवसायों और छात्रों के लिए गंभीर अनिश्चितता पैदा करेगा। ऑनसाइट प्रोजेक्ट्स प्रभावित होंगे और कंपनियों को क्लाइंट्स के साथ नई शर्तों पर बातचीत करनी होगी।

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी भारी फ़ीस से भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिका में कर्मचारियों को भेजना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में वे रिमोट वर्क मॉडल को बढ़ावा देंगी। इसका सीधा असर अमेरिकी ग्राहकों पर होगा—प्रोजेक्ट महंगे होंगे, डिलीवरी धीमी होगी और इनोवेशन की रफ्तार कम हो जाएगी।

क्या भारत को भी फ़ायदा हो सकता है?

कुछ विशेषज्ञ इसे भारत के लिए अवसर मानते हैं। नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत का कहना है कि अमेरिका ने ग्लोबल टैलेंट के रास्ते बंद करके वास्तव में भारत के लिए मौके खोले हैं। अब बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम जैसे शहर दुनिया के नए इनोवेशन हब बन सकते हैं। भारतीय डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल सीधे भारत की प्रगति के लिए करेंगे।

अमेरिकी विशेषज्ञों की चिंता

अमेरिका के भीतर भी यह कदम विवादों में है।

डेविड जे. बियर (Cato Institute) का कहना है कि यह फैसला अमेरिका की समृद्धि और स्वतंत्रता को खतरे में डाल देगा और विदेशी पेशेवरों पर लगभग प्रतिबंध जैसा असर करेगा।

डेनियल डी. मार्टिनो (Manhattan Institute) ने चेतावनी दी है कि हेल्थकेयर, उच्च शिक्षा और टेक्नोलॉजी सेक्टर बुरी तरह प्रभावित होंगे।

न्यूयॉर्क के इमिग्रेशन अटॉर्नी साइरस मेहता के मुताबिक, जो पेशेवर अमेरिका से बाहर गए हैं, वे 21 सितंबर की आधी रात से पहले वापस नहीं पहुंचे तो फंस जाएंगे।

कुल तस्वीर: नुकसान ज़्यादा या फ़ायदा?

नुकसान भारतीयों का: अमेरिका में काम करने का सपना देखने वाले लाखों पेशेवरों के लिए रास्ता लगभग बंद हो जाएगा। आईटी कंपनियों को नए प्रोजेक्ट्स के लिए अधिक लागत झेलनी होगी।

नुकसान अमेरिकियों का: स्थानीय कंपनियों को सस्ता और योग्य टैलेंट नहीं मिलेगा। हेल्थकेयर और टेक्नोलॉजी सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ेगा।

संभावित फ़ायदा भारत का: ग्लोबल टैलेंट वापस भारत की तरफ़ आएगा, जिससे भारतीय स्टार्टअप और इनोवेशन इकोसिस्टम मज़बूत हो सकता है।

ट्रंप प्रशासन का यह निर्णय व्यावहारिक रूप से एच-1बी वीज़ा को अप्रभावी बनाने जैसा है। अल्पकाल में भारतीय पेशेवरों और कंपनियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा, लेकिन दीर्घकाल में यह भारत के लिए अवसर में भी बदल सकता है। सवाल यह है कि क्या अमेरिका अपने ही इनोवेशन इंजन को धीमा करने का जोखिम उठा पाएगा?