गन्ना किसानों से सौतेला बर्ताव

Step-motherly treatment to sugarcane farmers

कुलदीप सिंह

किसानों की आय दोगुना करने का भरोसा केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार बार-बार दोहराती रहीं हैं। गन्ना एक ऐसी फसल है जिससे किसानों के मुनाफे में इजाफा होने के साथ देश की जी.डी.पी का ग्राफ भी बढ़ता है। संयोग से इस सूबे के गन्ना विकास मंत्रियों को ही जिले के प्रभारी मन्त्री की जिम्मेदारी सौंपी जाती रही है। पिछले गन्ना मंत्री थाना भवन (ष्यामली) से विधायक सुरेश राणा और अब छाता (मथुरा) के विधायक चैधरी लक्ष्मी नरायण इन दोनों के कार्यकाल में अलीगढ़ और हाथरस जिलों की एक मात्र चीनी मिल कबाड़ा हो गई और गन्ना किसानों के हालात बद से बदतर होते चले गये।

असल में जनपद अलीगढ़ के सभी विकासखण्डो में मिलाकर करीब 21 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ना की खेती मुख्य पैदावार थी, जिस पर लगभग 15 हजार किसान परिवार रोजीरोटी के लिए आश्रित थे गन्ने की बुवाई के बाद लगातार 3 सालों तक पैदावार मिलने की खास वजह से गन्ने की खेती करना किसानों की पहली पसन्द रही है। नतीजतन साल 2015 में यहाँ गन्ने की रिकाॅर्ड पैदावार 66,17,483 कुन्तल की ऊँचाई पर थी। इससे पहले निजी चीनी मिल गोपी (लघौआ) बंद हो जाने के बाद किसान गन्ना पेराई के लिये मजबूरन एक मात्र किसान सहकारी साथा चीनी मिल पर आश्रित हो गये। इस मिल की पैराई क्षमता 12 हजार 5 सौ क्वंटल प्रतिदिन थी। लेकिन रख-रखाव के प्रति सरकार को उदासीनता के कारण इस मिल को पैराई क्षमता 2017-18 तक आधी होकर साल 2020-21 में एक चैथाई ही रह गयी। तभी से जिले के किसान और उनकी यूनियन लगातार आन्दोलन की राह पर हैं। मिल पैराई क्षमता घटने के कारण गन्ना की फसल में किसानों की रूचि कम होती चली गई और अब महज 3-4 हजार किसान ही गन्ना उगा रहे है जिससे गन्ना फसल का क्षेत्रफल करीब 4 हजार हेक्टेयर में सिमट गया है।

मजबूर किसान अब गन्ने के बजाय मक्का, आलू और धान की फसल उगा रहे हैं जो मुनाफे के लिहाज से जोखिम भरी खेती बनी हुई हैं। किसान रोबी ठाकुर ने बताया, गतवर्ष अधिक बरसात में उसकी 10 बीघा धान की फसल डूब गई थी और मक्का की फसल में 6 हजार रुपया प्रति बीघा लागत पर मुश्किल से 1500 रुपया मुनाफा होता है, जबकि गन्ना में लागत के बराबर ही लाभ मिलता था। इसी तरह आलू उगाने वाले किसान संजय (गाँव देवपुर) की व्यथा है कि गत साल 1200 रुपये प्रति कट्टा (50 किलो) आलू की बिक्री का भाव था जो इस साल घटकर एक तिहाई 400 रुपये प्रति कट्टा रह गया है, कारणवष किसानों की आर्थिक कमर टूट गयी है।

किसान इन सभी विपरीति हालातों से उबरने की छटपटाहट के दौर से गुजर रहे हैं। जिला अलीगढ़ व हाथरस के किसानों की प्रबल इच्छा है कि खण्डहर हो चुकी साथा चीनी मिल उच्च क्षमता के साथ पुनः स्थापित करवाई जाये। इसी उद्देश्य से ‘‘साथा चीनी मिल संघर्ष मोर्चा’’ बीते 8 साल से आंदोलन को हथियार बनाये हुऐ हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विगत विधान सभा व लोक सभा के चुनावी मंचों से क्रमशः कासिमपुर व गभाना की सभाओं में नयी चीनी मिल स्थापित करवाने के वायदे किये थे। साथ ही विधान सभा के अनुपूरक बजट में कई चीनी मिलों के लिए 5 हजार करोड़ रुपया खर्च किया जाना पारित भी कर दिया गया, पर ताज्जुब है, 4 साल बाद भी इस बजट से एक भी किष्त साथा चीनी मिल के लिए मुक्त नहीं हो सकी। यहाँ के सांसद और विधायकों की उदासीनता भी गजब स्तर की है। इनको बार-बार ज्ञापन देने का नतीजा सिफर ही निकला। विधान परिषद सदस्य (षिक्षक) मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने उल्टा पहाड़ा पढ़ा कि जब गन्ना का रकवा ही समाप्ति की ओर है तो चीनी मिल की जरूरत क्या है? वहीं प्रभारी मंत्री चैधरी लक्ष्मी नारायण आगामी विधान सभा चुनाव से पहले अलीगढ़ में चीनी मिल स्थापित हो जाने का भरोसा बार बार दोहराते हैं।

जबकि जिला गन्ना अधिकारी मनोज कुमार पाण्डेय ने स्पष्ट किया साथा सहकारी चीनी मिल के नवीनीकरण का प्रस्ताव सरकार ने अभी तक नहीं मांगा है, बस् मिल के जीर्णोद्धार करने की मांग मिल प्रबन्धन के द्वारा सरकार को प्रस्तुत की है, इस मांग को भी दो साल बीत चुके हैं, लेकिन जबाब अभी नहीं आया है।

दूसरी तरफ गन्ना मंत्री ने अपने विधान सभा क्षेत्र छाता (मथुरा) में नयी चीनी मिल के लिये कवायत तेज कर दी है। मिल के लिये मुख्यमंत्री ने करीब 500 करोड रुपये बजट में से जारी करने की मंजूरी दे दी है। मथुरा के जिला गन्ना अधिकारी ओम प्रकाश सिंह ने बताया, चीनी मिल स्थापना के लिये टेन्डर प्रक्रिया चल रही है, पर मिल तैयार होने का समय अनिश्चित है। मिल साल 2008-09 से बन्द पड़ी थी। नई मिल की गन्ना पेराई क्षमता 3000 टी.सी.डी. (टन गन्ना प्रति दिन) होगी। गन्ना अधिकारी के मुताबिक मथुरा जिला में करीब 250 किसानों को गन्ना की फसल उगाने के लिये राजी किया गया है जो मात्र 295 हेक्टेयर भूमि में गन्ना उगायेंगे, जो अलीगढ़-हाथरस के गन्ना क्षेत्रफल के मुकाबले न के बराबर है। किसान नेता शैलेन्द्र पाल सिंह का कहना है कि गन्ना मंत्री निजी राजनीतिक लाभ की मंशा से अपने क्षेत्र में चीनी मिल का बजट ले गये हैं। जबकि अलीगढ़ में चीनी मिल की स्थापना से करीब 20 हजार किसान परिवारों की माली हालत में सुधार के साथ प्रदेश की चीनी उत्पादन क्षमता का वास्तविक रूप से विस्तार हो जाता।

बड़ा सवाल है कि गन्ना किसान लगातार संघर्ष व आन्दोलन कर रहे हैं और राजनेता बार बार घोषणा कर रहे हैं, पर ऐसी क्या अदृष्य मजबूरी है जिससे सरकार अलीगढ़ में गन्ना मिल को स्थापित करने का मनोबल पैदा नहीं कर पा रही है।