विनोद तकियावाला
क्या हुआ था उस पूरे दिन, जब 31 अक्टूबर 1984 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही सुरक्षा गार्डों ने कर दी थी।31अक्टूबर 1984 की शाम चार बजे तक दूरदर्शन और आकाशवाणी पर इंदिरा की हत्या की कोई खबर नहीं थी।
यें बात 34 साल के पहले की थी वें उस दिन समय का पहर ठहर गया था।देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके ही घर में गोलियों से भून दिया गया।यह समाचार सम्पूर्ण देश को हिला देने वाली दुखद घटना को उस समय के कुछ लोगों ने अपनी आंखों से देखा था।मै आप को 34 वर्ष पूर्व की उस घटना की अपने मानस पटल पर कुछ यादें अस्पष्ट तस्वीर के सहारे आप के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हुँ । आज के इस आलेख मे उस समय के प्रकाशित कई समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार व विशेषज्ञ के विचार व कई सुत्रो के सहारा लिया है।सर्व प्रथम उनका हृदय की गहराईयो से आभार। मै स्पष्ट कर दुं कि मेरा किसी राजनीति पार्टी या राजनीति नेता या समाज के धर्म सम्प्रदाय को ठेस पहुंचाने का है। फिर भी मेरी लेखनी या आलेख के किसी शब्द के ठेस पहुंचाई हो तो पहले ही माफी चाहता हूँ। आप को बता दे कि मै उस समय वी ए राजनीति विज्ञान का छात्र था ‘ मेरा फाईल पेपर चल रहा था।
मेरा राजनीति विज्ञान आर्नस के प्रथम पत्र हो गया था । दो दिन बाद दुसरा पेपर राजनीति चिन्तक था। अध्ययन में मै व्यस्त था,कुछ राज्य में विधान सभा के चुनाव होने वाले थे।तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी उड़ीसा में जबरदस्त चुनाव प्रचार के बाद 30 अक्टूबर की शाम दिल्ली पहुंची थीं।आमतौर पर जब वो दिल्ली में रहती थीं तो उनके घर एक सफदरजंग रोड पर जनता दरबार लगाया जाता था।ये भी एक अघोषित नियम था कि अगर इंदिरा दूसरे शहर के दौरे से देर शाम घर पहुंचेंगी तो अगले दिन जनता दरबार नहीं होगा।30 तारीख की शाम को भी इंदिरा से कहा गया कि वो अगले दिन सुबह के कार्यक्रम रद्द कर दें लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया।सुत्रो के अनुसार वो आइरिश फिल्म डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव को मुलाकात का वक्त दे चुकी थीं।इस बीच सुबह के आठ बजे इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन एक सफदरजंग रोड पहुंच चुके थे।धवन जब इंदिरा गांधी के कमरे में गए तो वो अपना मेकअप करा रही थीं.
इंदिरा ने पलटकर उन्हें देखा। दीवाली के पटाखों को लेकर थोड़ी नाराजगी भी दिखाई। इंदिरा बाहर निकलीं और एक अकबर रोड की ओर चल पड़ीं।
अब तक घड़ी ने नौ बजा दिए थे. लॉन साफ हो चुका था।इंटरव्यू के लिए सारी तैयारियां पूरी थीं. चंद मिनटों में ही इंदिरा एक अकबर रोड की तरफ चल पड़ीं।यहीं पर पेंट्री के पास मौजूद था हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह आइसोलेशन कैडर में होती थी। साढ़े सात से लेकर 8.45 तक पोर्च में ड्यूटी करने के बाद वो कुछ देर पहले ही पेंट्री के पास आकर खड़ा हुआ था।इंदिरा को सामने से आते देख उसने अपनी घड़ी देखी।समय 9 बजकर 05 मिनट था।सबकुछ ठीक था।तभी अचानक गोली की चलने की आवाज आई।आर के धवन उनके पीछे-पीछे चल रहे थे ।दूरी करीब तीन से चार फीट रही होगी।तभी वहां से एक वेटर गुजरा।उसके हाथ में एक कप और प्लेट थी । वेटर को देखकर इंदिरा थोड़ा ठिठकीं।पूछा कि ये कहां लेकर जा रहे हो।उसने जवाब दिया इंटरव्यू के दौरान आइरिश डायरेक्टर एक-टी सेट टेबल पर रखना चाहते हैं इंदिरा ने उस वेटर को तुरंत कोई दूसरा और अच्छा टी-सेट लेकर आने को कहा । ये कहते हुए वो आगे बढ़ गई।
तेज कदमों से चलते हुए इंदिरा उस गेट से करीब 11 फीट दूर पहुंच गई थीं जो एक सफदरजंग रोड को एक अकबर रोड से जोड़ता है।नारायण सिंह ने देखा कि गेट के पास सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह तैनात था।ठीक बगल में बने संतरी बूथ में कॉन्सटेबल सतवंत सिंह अपनी स्टेनगन के साथ अपनी ड्युटी पर मुस्तैद था।
तभी बेअंत ने अचानक सरकारी रिवॉल्वर निकाली और …आगे बढ़ते हुए इंदिरा गांधी संतरी बूथ के पास पहुंची. बेअंत और सतवंत को हाथ जोड़ते हुए इंदिरा ने कहा-नमस्ते. बेअंत सिंह ने अचानक अपने दाईं तरफ से .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली।इंदिरा गांधी पर एक गोली दाग दी।आसपास के लोग भौचक्के रह गए।सेकेंड के अंतर में बेअंत सिंह ने दो और गोलियां इंदिरा के पेट में उतार दीं।तीन गोलियों ने इंदिरा गांधी को जमीन पर झुका दिया।उनके मुंह से एक ही बात निकली-ये क्या कर रहे हो ।बेअंत ने क्या जवाब दिया ये शायद किसी को नहीं पता ।
तभी संतरी बूथ पर खड़े सतवंत की स्टेनगन भी इंदिरा गांधी की तरफ घूम गई ।जमीन पर नीचे गिरती हुई इंदिरा गांधी पर कॉन्सटेबल सतवंत सिंह ने एक के बाद एक गोलियां दागनी शुरू कर दीं।लगभग हर सेकेंड के साथ एक गोली।एक मिनट से कम वक्त में सतवंत ने स्टेनगन की पूरी मैगजीन इंदिरा गांधी पर खाली कर दी ।स्टेनगन की तीस गोलियों ने इंदिरा के शरीर को भूनकर रख दिया।मौके पर उपस्थित लोग हक्के-बक्के थे।समय का चक्र जैसे थम गया था।दिमाग में खून जमने जैसी हालत थी।तभी बेअंत सिंह ने आर के धवन की ओर देखकर कहा- हमें जो करना था वो हमने कर लिया।अब तुम जो करना चाहो, वो करो. वहां मौजूद सभी लोग एक झटके के साथ होश में आए।पास में खड़े एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट ने तुरंत बेअंत और सतवंत को काबू में ले लिया। उनके हथियार जमीन पर गिर गए ।उन्हें तुरंत पास के कमरे में ले जाया गया।एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट कहते हैं कि उस वक्त जो हो सकता था किया गया लेकिन हमला इतना अचानक और अनपेक्षित और झकझोर देने वाला था कि उसको रिकॉल करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।
प्रधानमंत्री आवास पर एक एंबुलेंस हमेशा तैनात रहती थी. उस दिन भी थी लेकिन उसका ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था
अब तक छाता लेकर भौचक्क खड़ा रहा हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह भी हरकत में आया ।उसने छाता फेंका और डॉक्टर को बुलाने के लिए दौड़ पड़ा। एक अकबर रोड के लॉन में इंदिरा का इंतजार करते हुए आइरिश डेलिगेशन को फायरिंग की आवाज अजीब सी लगी । फिर उन्हें लगा कि शायद फिर दीवाली के पटाखे फोड़े गए हैं।डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव वहीं पर इंदिरा का इंतजार करते रहे।
आर के धवन ने इंदिरा को उठाने की कोशिश की।तभी बुरी तरह घबराई सोनिया गांधी वहां पहुंचीं । तब तक कई दूसरे सुरक्षाकर्मी भी उस गेट के पास पहुंच चुके थे । धवन और सोनिया ने मिलकर इंदिरा को उठाया।आर के धवन बताते हैं कि मैंने उस वक्त एक एंबुलैंस जो वहां रहती थी,उसे बुलाया लेकिन एंबुलेंस नहीं आई. पता चला उसका ड्राइवर चाय पीने गया था ।तय हुआ कि कार से ही इंदिरा को एम्स लेकर जाया जाए ।इंदिरा गांधी का सिर सोनिया ने अपनी गोद में रखा. उनके शरीर से लगातार खून बह रहा था।इंदिरा गांधी को लेकर एंबेसडर कार तेजी से एम्स की तरफ भागती जा रही थी। घड़ी वक्त दिखा रही थी 9 बजकर 32 मिनट. एम्स पहुंचते ही इंदिरा गांधी को वीआईपी सेक्शन लेकर जाया गया लेकिन वो उस दिन बंद था।धवन उन्हें इमरजेंसी की तरफ लेकर भागे वहां कुछ नौजवान डॉक्टर मौजूद थे ।वो मरीज को देखते ही हड़बड़ा गए। तभी किसी का दिमाग काम किया ।उसने तुरंत अपने सीनियर कार्डियोलॉडिस्ट को खबर दी ।वो सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट कोई और नहीं डॉक्टर वेणुगोपाल थे।
डॉक्टर वेणुगोपाल बताते हैं कि हमारे सहयोगी डॉक्टर ने बताया कि आप नीचे आ जाइए इंदिरा गांधी को लेकर आए हैं।उनको देखना है।हम उसी ड्रेस में नीचे गए कैजुएलिटी में. ‘जब गए थे तो हमने देखा वो एक ट्रॉली पर लेटी हुई हैंऔर काफी खून बह रहा है ।इमरजेंसी में तब तक दर्जन भर सीनियर डॉक्टर जुट चुके थे। पहली कोशिश ये कि लगातार बहते खून को रोका जाए।इंदिरा के शरीर का तापमान भी तेजी से नीचे गिर रहा था।डॉक्टरों ने तुरंत उनके फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाने वाली मशीन लगाई। ईसीजी मशीन दिखा रही थी उनका दिल मंद गति से धड़क रहा था।इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें हार्ट मशीन भी लगा दी हालांकि उन्हें इंदिरा की पल्स नहीं मिल रही थी।धीरे-धीरे इंदिरा की पुतलियां फैलती जा रही थीं। साफ था कि दिमाग में खून पहुंचना लगभग रुक गया है।
जब इंदिरा जी का लहूलुहान शरीर जब एम्स पहुंचा,तब तक उनका खून बहुत बह चुका था।
डॉक्टरों की टीम ने उन्हें आठवें फ्लोर के ऑपरेशन थिएटर में ले जाने का फैसला किया ।हालांकि जिंदगी का कोई निशान उनके शरीर में नजर नहीं आ रहा था लेकिन फिर भी 12 डॉक्टरों की टीम चमत्कार की आस में उन्हें बचाने की कोशिश में जुट गई । इधर बीबीसी संवाददाता सतीश जैकब भी तेजी के साथ एम्स पहुंचे।उन्हें ये तो मालूम था कि एक अकबर रोड पर कुछअनहोनी हुई है लेकिन वो अनहोनी क्या है ये पता करना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गोली मारी गई है ।डॉक्टरों ने आस छोड़ दी।
डॉक्टर वेणुगोपाल कहते हैं कि पहले तो एक ही मकसद था. उनको बचाने के लिए जहां से खून बाहर आ रहा है उनको सारे को कंट्रोल करना था । वो 4-5 घंटे लगे उनको कंट्रोल करने में. इसी टाइम पर उनका हार्ट फंक्शन, ब्रेन फंक्शन ठीक करने के लिए मशीन पर लगाया । तापमान भी कम कर दिया उनको बचाने के लिए ,लेकिन इंदिरा का शरीर उनका साथ छोड़ रहा था। डॉक्टर बड़ी बारीकी के साथ उनके शरीर से सात गोलियां निकाल चुके थे वक्त निकलता जा रहा था।डॉक्टरों के सामने एक मुश्किल इंदिरा का ओ निगेटिव ब्लड ग्रुप भी था ।भारत में सौ लोगों में केवल एक का ओ निगेटिव ब्लड ग्रुप होता है ।इंदिरा को बचाने के लिए डॉक्टरों ने उन्हें 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया ।फिर एम्स में डॉक्टरों ने तमाम कोशिश के बाद सारी उम्मीदें छोड़ दीं लेकिन ये भी काम नहीं आया. एक तरह से इंदिरा सिर्फ मशीन के भरोसे जिंदा थीं।ये वो वक्त था जब डॉक्टरों ने भी हथियार डाल दिए ।अब कुछ नहीं हो सकता था. उधर ऑपरेशन थिएटर के बगल वाले कमरे में एक और जद्दोजेहद चल रही थी।इंदिरा की मौत के बाद कौन बनेगा देश का प्रधान मंत्री |इंदिराजी के निधन का आधिकारिक ऐलान सभी की राय थी कि राजीव गांधी को ही देश की सत्ता सौंपी जाए।
आखिरकार दोपहर 2 बजकर 23 मिनट पर आधिकारिक तौर ऐलान कर दिया गया कि इंदिरा गांधी की मौत हो चुकी है ।
पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर टी डी डोगरा कहते हैं कि उस वक्त दोपहर के 2.10 हुए थे. मुझे बुलाकर बताया गया कि इंदिरा गांधी की मौत हो चुकी है । वहां इतनी ज्यादा भीड़ थी कि मुझे लगा लोग ऑपरेशन थिएटर का शीशा तोड़कर भीतर घुस आएंगे । उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और कुल 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं ।उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और कुल 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं।इस वक्त तक एम्स के बाहर भी हजारों लोगों की भीड़ उमड़ आई थी. Iपुलिस वालों के लिए उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा था ।हर तरफ इंदिरा गांधी के नारे गूंज रहे थे. हालत ये हो गई कि इंदिरा समर्थकों को संभालने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा।लोग इंदिरा की मौत की खबर से बुरी तरह सन्न थे ।उतना ही ज्यादा फूट रहा था उनका गुस्सा । हालत ये थी कि विएना के दौरे से लौटकर सीधे एम्स पहुंचे राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर भी पथराव कर दिया गया।ये बहुत बड़े तूफान की आहट थी ।लोग रो रहे थे ।बिलख रहे थे । उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि इंदिरा को भी कोई ताकत हरा सकती है।यही वो भीड़ थी जो रोते-रोते जब थक गई तो उसकी जगह गुस्से ने ली । ये गुस्सा आगे क्या करने वाला था, इस बात का किसी को कोई एहसास नहीं था। तत्कालीन बीबीसी संवाददाता सतीश जैकब तेजी के साथ अपने दफ्तर वापस लौट रहे थे. दिल में तूफान कि इतनी बड़ी खबर है. उनका मन कर रहा था कि जितनी जल्दी हो सके ऑफिस पहुंचें। जैकब ने बताया कि हमें जो कोई भी खबर देनी होती थी वो हम टेलीफोन पर देते थे ।खबर हमारी आवाज में जाती थी।उस समय ना तो मोबाइल थे और ना ही एसटीडी. इंटरनेशनल कॉल बुक करानी पड़ती थीं.उस दिन मुझे जल्दी कनेक्ट करा दिया ।मेरे पास वक्त नहीं था टाइप करने का तो मैंने कहा कि छोटी सी खबर है ।मैंने कहा-अभी थोड़ी देर पहले भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर घातक हमला हुआ है।ये खबर बीबीसी रेडियो पर कुछ देर बाद चली लेकिन जब चलनी शुरू हुई तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया।उस वक्त अमेरिका में आधी रात हो रही थी.।जानकारी के मुताबिक राष्ट्रपति रीगन को आधी रात में इंदिरा की हत्या की खबर दी गई ।
अमेरिका से लेकर रूस तक में हड़कंप मच गया ।इधर देश के तमाम शहरों में बड़े-बड़े अखबार हरकत में आ चुके थे ।ज्यादातर पत्रकारों को उनके घर से बुला लिया गया।31 अक्टूबर 1984 की शाम चार बजे तक दूरदर्शन और आकाशवाणी पर इंदिरा की हत्या की कोई खबर नहीं थी । हालत ये थी कि अखबार की कॉपी बाजार में पहुंचते की हाथों-हाथ बिक रही थी लेकिन दुनियाभर में इस खबर का डंका पीटने वाले सतीश जैकब ने खुद ये बात आकाशवाणी के एक अधिकारी से पूछी ।सतीश जैकब ने बताया- वो कहने लगे भाई मैं क्या करूं. इतनी बड़ी खबर है और जब तक कि कोई सीनियर मिनिस्टर या अधिकारी इसको अप्रूव नहीं कर देता मैं इसको ब्रॉडकास्ट नहीं कर सकता। मैंने पूछा कि क्यों नहीं कराया अप्रूव तो उन्होंने कहा कि प्रेसिडेंट यमन में ।बीबीसी के लिए ये भारत में बहुत अहम दिन था।पूरा देश इंदिरा की हत्या की खबर बार-बार सुनने के लिए जैसे बीबीसी रेडियो से चिपक गया था ।खुद पश्चिम बंगाल से दिल्ली तक के रास्ते में राजीव गांधी भी बीच-बीच में बीबीसी पर ही खबरें सुनते आ रहे थे।सुबह से लेकर अब तक बहुत कुछ बदल चुका था।एम्स में एक अजीब सा तनाव बढ़ता जा रहा था।सैकड़ों की तादाद में वहां सिख भी आए थे।पहले इंदिरा गांधी अमर रहे के नारे भी लगा रहे थे लेकिन धीरे-धीरे वो एम्स से हटने लगे. जैसे-जैसे लोगों को ये पता चला कि इंदिरा की हत्या उनके ही दो सिख गार्डों ने की है ।नारों का अंदाज भी बदलने लगा. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव के बाद इन नारों की गूंज एम्स के आसपास के इलाकों में भी फैलती जा रही थी ।
दोपहर ढलते-ढलते एम्स से वापस लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी थी. हॉस्पिटल के पास से गुजरती हुई बसों में सिखों को खींच-खींच कर बाहर निकाला जाने लगा । दिल्ली में बरसों से रह रहे इन लोगों को अंदाजा भी नहीं था कि कभी उनके खिलाफ गुस्सा इस कदर फूटेगा. धीरे-धीरे बसों से सिखों को खींचकर निकालने का सिलसिला पूरी दिल्ली में फैल गया लेकिन लोगों का गुस्सा यहीं नहीं थमा। पहला हमला 5 बजकर 55 मिनट पर हुआ विनय नगर इलाके में. यहां एक सिख लड़के को बुरी तरह पीटने के बाद उसकी मोटरसाइकिल में आग लगा दी गई। इस आग में पूरी दिल्ली धधकने जा रही थी।
उस वक्त के हालात का अंदाजा लगना मुश्किल है. एक के बाद एक दुकानों के शटर गिर रहे थे. इंदिरा की मौत की घोषणा के बाद पूरे के पूरे बाजारों में सन्नाटा पसर गया ।सड़कों पर चल रही गाड़ियां ना जाने कहां गायब हो गईं. ऐसा लगा जैसे कर्फ्यू लगा दिया गया हो लेकिन इस सन्नाटे के बीच सिख विरोधी नारेलगातार बढ़ते जा रहे थे।31 अक्टूबर के सूरज ने दिन भर में बहुत कुछ देख लिया था।डूबते सूरज की लाल रोशनी भी धीरे-धीरे खत्म हो रही थी लेकिन सूरज के डूबने के बाद भी लाल रोशनी खत्म नहीं हुई. जलते हुए घरों से उठती हुई रोशनी…वो भी तो लाल ही थी।
भारत को विश्व के राजनीति के मानचित्र अपने मुक्काम पर पहुँचाने वाली अर्न्तराष्ट्रीय राजनीति के महान नेत्री श्री मति इन्दिरा गाँधी की उनकी पुण्य तिथि पर उन्हे कलम का यह सिपाई शत शत नमन व अश्रुपूर्ण श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।