लोकतंत्र की मजबूती पवित्र साधनों से ही संभव

Strengthening democracy is possible only through sacred means

नरेंद्र तिवारी

भारत में आमचुनाव चल रहे है। हर पांच साल में होने वाले यह चुनाव संसदीय लोकतंत्र की एक व्यवस्था है। जिसके माध्यम से देश की सरकार चुनी जाती है। भारत दुनियां का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है। आजादी के बाद से भारतीय लोकतंत्र ने अनेकों खामियों के बावजूद दुनियां को मजबूत और लगातार बढ़ते लोकतंत्र होने का संदेश दिया है। लोकतंत्र की सलामती और मजबूती के लिए पवित्र साधनों की आवश्यकता होती है। किंतु देखने में आया है की अपनी राजनीतिक मजबूती के लिए नेतागण अपवित्र साधनों से चुनाव में विजय होने का प्रयास करते है। वर्ष 2024 के चुनाव में मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में जिस प्रकार से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय कांति बम के नामांकन वापसी की घटना घटित हुई उसने लोकतंत्र को शर्मशार किया है। इस घटनाक्रम ने लोकतंत्र में निष्पक्षता, पारदर्शिता और स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा की भावना को ठेस पहुंचाई है।

इंदौर में कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय बम नामांकन वापसी के समय मप्र शासन के मंत्री भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय, इंदौर के विधायक रमेश मंदोला के साथ कार में सवार थै। कार में सवार भाजपा नेताओं के चेहरों पर विजय मुस्कान झलक रही थी।

किंतु सवाल यह उठता है की क्या लोकतंत्र में स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा के अवसर को समाप्त करने के आलोकतात्रिक कदम को उचित ठहराया जा सकता है? क्या लोकतंत्र के चुनावी उत्सव में साधनों की पवित्रता के कोई मायने नहीं है? क्या तिकड़मी चालों और अपवित्र संसाधनों के उपयोग से देश का लोकतंत्र मजबूत होगा? यह सवाल मप्र सहित सम्पूर्ण भारत की जनता के जहन में गूंज रहे है। मप्र सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मंदौला का कांग्रेस उम्मीदवार के साथ कार में सवार होकर मुस्कुराता चित्र भी इंदौर सहित देश के जनता के सामने घूम रहा है। यह कुटिल मुस्कान विजय या जश्न की मुस्कान नहीं यह लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली मुस्कान मानी जा रही है।

मप्र की इंदौर लोकसभा सीट पर भाजपा बहुत मजबूत मानी जाती है। इस सीट का प्रतिनिधित्व लगातार 8 बार श्रीमती सुमित्रा महाजन ने किया। उन्होंने केंद्रीय मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के रूप में इंदौर को गौरवान्वित किया है। उनके बाद इंदौर संसदीय सीट की कमान शंकर ललवानी 2019 के लोकसभा चुनाव में लाखों मतों से विजय होकर संभाली। इस सीट पर भाजपा की मजबूती में कोई संशय नहीं है। विधानसभा चुनाव में इंदौर लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाली लगभग सभी सीटों में विजय होकर क्लीन स्वीप किया। अभी वर्ष 2024 के 13 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा की जीत के कयास लगाए जा रहे थै। फिर कौनसे और क्या कारण है की कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार को अपना नामांकन वापस लेने की आवश्कता पड़ी।

कांग्रेस उम्मीदवार ने अपना नामांकन दाखिल किया था, यह उनकी मर्जी के बिना संभव नहीं हो सकता है। नामांकन वापसी भी उन्ही की मर्जी से संभव हो सकी है। किंतु नामांकन वापसी के लिए प्रयास तो किए गए होगे, इन प्रयासो में भय, लालच और राजनीतिक हैसियत सुनिश्चित करने का हवाला परदे के पीछे दिया गया होगा। यह प्रयास भाजपा की विजय को सुनिश्चित करने के लिए किए गए नजर आ रहे है। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम के मध्य आदर्श आचार संहिता के क्या मायने जो लोकसभा चुनाव की तारीख के बाद से ही देश में लागू हो गई है, जिसके अनुसार सभी दल और उम्मीदवार ऐसी सभी गतिविधियों से परहेज करेंगें जो चुनावी आचार संहिता के तहत भष्ट्र आचरण और अपराध की श्रेणी में आते है। यह आचार संहिता जो आम भारतीय मतदाताओं, नागरिकों, नेताओं, राजनीतिक दलों को अनुशासित करती है। क्या आदर्श आचार संहिता इन नेताओं पर लागू नहीं होती।इंदौर का घटनाक्रम चुनाव प्रक्रिया के दौरान आदर्श आचार संहिता को मुंह चिढ़ाता प्रतीत हो रहा है। लोकतंत्र के इस महायज्ञ में आहुतियों की पवित्रता का भी अपना महत्व है। लोकतंत्र की मजबूती पवित्र साधनों से ही संभव है। इसे बनाए रखना देश के सभी नागरिकों का नैतिक दायित्व है। इंदौर में अपने प्रतिस्पर्धी दल के उम्मीदवार का नामांकन वापसी का प्रयास राजनीति के नैतिक मापदंडों के विपरित है। चुनावी राजनीति का साफ और ईमानदार होना राष्ट्र में मजबूत सरकार के चयन के लिए बेहद जरूरी है। इस अलोकतांत्रिक कदम का मुख्य दोषी कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बम भी है। जिन्होंने कांग्रेस से पहले तो टिकिट प्राप्त किया। फिर निजी स्वार्थों के कारण अपना नामांकन वापस लेने का घोर पाप किया। इस मामले में अजय बागड़िया जो अक्षय कांति बम के वकील है, उन्होंने एक साक्षात्कार में अक्षय बम को इस कृत्य का दोषी माना है। अजय का साफ कहना था की आपने पार्टी से टिकिट मांगा था। जब आपको टिकिट मिल गया तब अपना नामांकन वापिस लेकर कांग्रेस पार्टी और कार्यकर्ताओं के साथ धोखेबाजी की है। एडवोकेट बागडिया ने सख्त भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा इन जैसे लोगो से तो वैश्या बेहतर है जो अपने काम के पार्टी ईमानदारी रहती है। अजय बागड़ियां ने अक्षय बम के नामांकन वापस लेने को प्रलोभन या भय से प्रेरित भी बताया। उन्होंने बेबाकी और साफगोई से भाजपा नेताओं पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया। इस घटनाक्रम पर देश की पूर्व लोकसभा सदस्य इंदौर की सबसे अधिक बार सांसद सदस्य रहीं सुमित्रा महाजन ताई ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा ऐसा क्यों किया गया इसकी आवश्यकता नहीं थी। यह भी स्वीकार किया की इंदौर के मतदाता भी इस घटना से नाराज है, जिन्हे वे मनाने का प्रयास करेंगी।

इंदौर में कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन वापस लेने पर वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने इसे 25 लाख मतदाताओं की हैरानी, परेशानी का कारण बताते हुए इस घटनाक्रम से मतदाताओं के ठगे जाने की बात कही है। उन्होंने इस घटनाक्रम से सबसे ज्यादा कष्ट भाजपा उम्मीदवार शंकर ललवानी को बताया। लिखा वह दिल्ली पहुंचकर मुंह कैसे दिखाएंगे किसे और कितने मतों से हराकर संसद पहुंचे है! आगे लिखा अगर विरोधियों ने नोटा कर दिया और भाजपा के लोग घरों से नहीं निकलेंगे तो इस बार रिकार्ड किस बात का बनेगा?

दरअसल इंदौर सहित सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में नामांकन वापसी पर अधिकांश लोगो ने चाहे वह किसी भी राजनैतिक दल से जुड़े हुए हो इसे शर्मनाक और स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए अनुचित बताया है। इसे लोकतंत्र की सेहत के लिए नुकसानकारी मानने वाले लोगो की सख्या उनसे कई अधिक है, जो सफाई में नंबर वन इंदौर की इस घटनाक्रम पर हर्ष, खुशी और प्रसन्नता जाहिर कर रहे है।

इस बीच खबर आई की मध्यप्रदेश में हो रहे लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया को समझने के लिए फिलीपींस और श्रीलंका का 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल एमपी का दौरा करेगा। दोनो देश की टीम एमपी में रहकर लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया को समझेगी। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन के अनुसार यह प्रतिनिधि मंडल भोपाल, सीहोर, रायसेन और विदिशा जिले के मतदान केंद्रों में मतदान की प्रक्रिया का मौके पर जाकर अवलोकन करेगा। यह गर्व की बात है की दूसरे देशों का प्रतिनिधि मंडल भारत के संसदीय चुनाव की प्रक्रिया का अवलोकन करने आया है। इससे पूर्व भी अनेकों देशों का प्रतिनिधिमंडल भारत की प्रजातांत्रिक प्रक्रिया का अध्ययन करने आते रहा है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में आए इस प्रतिनिधि मंडल को मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के चुनाव से दूर रखा गया। किंतु इस प्रतिनिधि मंडल को इंदौर की सूचनाओं से दूर तो नहीं रखा जा सकता है। प्रदेश की सूचनाओं के साथ इंदौर की सूचना भी इस प्रतिनिधिमंडल तक पहुंचेगी। तब यह प्रतिनिधि मंडल भारत के प्रजातंत्र संबंध में अपनी क्या धारणा बनाएगा इसे समझने की आवश्कता है।

दरअसल देश में तमाम राजनैतिक विचार रखने वाले दल, नेता और लोग है, किंतु इस बात पर सभी एकमत है की प्रजातंत्र में चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी होना चाहिए। यही संसदीय लोकतंत्र की खूबसूरती भी है। परंतु कुछ नेता अपने राजनैतिक स्वार्थों के कारण भारत के लोकतंत्र को बदसूरत बनाने का प्रयास अपनी हरकतों से कर रहे है। वें येनकेन प्रकारेंंन चुनावी जीत में विश्वास करते है। तिकड़मी चालों से चुनावी रण में विजय प्राप्त करने में माहिर ऐसे लोग प्रजातंत्र के असल विरोधी है। जो कुछ–कुछ संख्या में सभी दलों में मौजूद रहते है। ऐसे प्रजातंत्र विरोधी नेताओं को यह जान लेना चाहिए की लोकतंत्र की मजबूती पवित्र साधनों से ही संभव है। चुनाव आयोग द्वारा प्रजातंत्र को कमजोर करने वाली इन कोशिशों से सख्ती से निपटा चाहिए।