अर्थव्यवस्था में सहयोगी गढ्ढे

Supporting pits in the economy

रेखा शाह आरबी

जब भी सड़क मार्ग से यात्रा करने का अवसर मिला । कई ऐसे सड़क मिले जहां दांत,हाथ एक साथ टूटने की पूरी संभावना रहती । कहीं-कहीं पर तो यमराज से मिलवाने का भी प्रबन्ध रहता है। जहां पर सावधानी ही सुरक्षा है के तर्ज पर अपना बचाव करना पड़ता । रास्ते में पड़ने वाले गढ्ढे के कारण गाड़ी उछलने पर जो चोट लगती । उसके प्रतिक्रिया स्वरूप उसके निर्माण कर्ताओं को चोर, बेईमान, भ्रष्टाचारी के उपाधियों से नवाजना भी होता । यह मनुष्य का सहज स्वभाव है। अब यह तो हो नहीं सकता कि किसी को चोट लगे या गढ्ढे के कारण कोई दुर्घटना हो जाए। और उसके बाद वह सड़क बनाने वालों को आशीर्वाद दे।

वह क्रिया पर प्रतिक्रिया करता है। और साथ ही उस पर यह भी नियम लागू होता है। की जैसी क्रिया वैसी ही प्रतिक्रिया भी मिलती है। मान लीजिए कोई व्यक्ति अच्छी सड़क के कारण 4 घंटे के बजाय 2 घंटे में अपना सफर पूरा कर लेता है ।तो वह उसकी सराहना करता है। और जिसकी गाड़ी पंचर होकर उस सड़क पर लुढ़क गई । वह तो उसकी आलोचना करेगा ही। प्रतिक्रिया सकारात्मक है या नकारात्मक हो। यह मनुष्य पर नहीं निर्भर है। बल्कि उसके साथ होने वाली क्रियाओ पर निर्भर है। यदि प्रतिक्रिया भी सराहना वाली चाहिए तो काम भी अच्छा चाहिए ।

इसी से संबंधित आज मुझे गढ्ढों के प्रति एक नई दृष्टि मिली। और मेरे सोचने की दृष्टि को एक नई सृष्टि मिली । वाकई नजरिया बदल देने से दृष्टि और सृष्टि दोनों ही बदल जाती है।

नजरिया मात्र बदल देने से रावण भी भल मानस इंसान दिखने लगता है। वैसे सच में देखा जाए तो कलयुग के रावणों के मुकाबले सतयुग का रावण तो बहुत कम अपराधी लगता है। वह ऐसा क्रिमिनल लगता है। जिसे अदालत द्वारा चेतावनी देकर छोंडा जा सके । सतयुग का रावण सीता का अपहरण करने के बावजूद उनकी सहमति असहमति का सम्मान करता है। आज के रावण तो असहमति होने पर न जाने कितने टुकड़ों में काट देते हैं। इस मुकाबले में तो सतयुग का रावण सच में अच्छा था।

खैर मुद्दे पर आते हैं और मुद्दा यह है कि देखने वालों का क्या है । देखने वाले तो ईश्वर में भी बुराई ढूंढ लेंगे। हम जो कुछ देखते हैं वह सिर्फ दृष्टि का ही खेल है। इसीलिए यदि अब रास्ते में कहीं गड्ढे मिले तो कुडकुडानें की कोई ज्यादा जरूरत नहीं है। मान ले आपकी दृष्टि ही खराब है। आपको नजर नहीं नजरिया बदलने की जरूरत है। दृष्टि बदले दृश्य बदल जाएगा। आज मुझे ज्ञान मिला कि सड़क के गड्ढे इस देश की पूरी अर्थव्यवस्था को संभाले हुए हैं। देश के आधे रोजगार सृजक तो यह गड्ढे हैं। अब कैसे हैं यह भी जान लीजिए।

अगर अपने देश के सड़क पर गड्ढे नहीं होते। तो जरा सोचिए कितने लोग बेरोजगार हो जाते। सड़कों के गढ्ढे बहुत बड़े रोजगार सृजन केंद्र है। इन गढ्ढो कारण ही सड़क पर चलने वाले बाइक सवार गुलाटिया खाते हैं । अपना मुंह हाथ तुड़वाते हैं। वह और बाइक दोनो गिरते हैं चोट लगती है। जिनके कारण एक को अस्पताल भेजना पड़ता है । एक को बाइक सर्विसिंग केन्द्र भेजना पड़ता है। तो सर्विसिंग वाले को कस्टमर मिलता है और उसकी दुकान चलती है । और डॉक्टरों को पेशेंट मिलता है । इनकी भी रोजी-रोटी का जुगाड़ हो जाता है । सड़क पर कार चलती हैं गढ्ढो के कारण कुछ ही सालों में कार खटारा बन जाती हैं। फिर उसको बेचना पड़ता है। नया खरीदना पड़ता है। इस पूरी प्रक्रिया में गरीब से लेकर अमीर को रोजगार मिलता है। सोच कर देखिए मात्र सड़क के गड्ढे देश की बड़ी-बड़ी कार कंपनियों को रोजगार दे रहे हैं । आवश्यकता का सृजन करके रोजगार सृजन कर रहे हैं । इतना रोजगार तो सरकार भी सृजन नहीं कर पाती है । जितना देश के अकेले गड्ढे कर रहे हैं।

सड़क के गढ्ढो के कारण ठेकेदारों को फिर से सड़क बनाने का ठेका मिलता है। उसको रोजगार मिलने से उसके अंदर हैप्पी हारमोंस का उत्पादन होता है। सोचिए उसके आर्थिक स्वास्थ्य से लेकर मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान यह सड़क के गड्ढे रख रहे हैं । और तो और नेता से लेकर मजदूर तक को ठेके के कारण रोजगार मिलता है। नेता से लेकर मजदूर मिस्त्री तक का भला हो जाता है। और इससे ज्यादा किसी चीज से क्या उम्मीद करते हैं।

गढ्ढो के फायदे देखकर मुझे लग रहा है । कि पूरे देश की सड़कों में गड्ढे ही गड्ढे होने चाहिए। छोटे-बड़े गड्ढे होते ही रहने चाहिए । आखिर इस देश के विकास और अर्थव्यवस्था का सवाल है। और इससे समझौता कैसे किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि देश की सड़कों में गड्ढे बनाने वाला विभाग एक अलग से होना चाहिए।विशेष मंत्रालय रहेगा तो हो सकता है। और ज्यादा रोजगार का सृजन हो। और ज्यादा लोगों को गिरने पड़ने का अवसर मिले । यह गढ्ढे हर मनुष्य को आत्मनिर्भर होने का मैसेज भी देते रहते हैं । समझदार तुरंत समझ जाता है । कि अपनी सुरक्षा अपने हाथ में है किसी की भरोसे नहीं रहना है।

अब तो सड़क के गढ्ढो को देखकर प्रणाम करने को मन करता है । इन रोजगार केन्द्र को भगवान की देन मानिए । वैसे तो यह तो मात्र मेरी दृष्टि है आप सारे लोग अपने-अपने दृष्टि से देखें तो न जाने कितनी खूबियां निकाल लाएंगे।