सुप्रीम कोर्ट ने बिहार वोटिंग लिस्ट पुनरीक्षण की टाइमिंग पर उठाया सवाल

Supreme Court raised question on the timing of Bihar voting list revision

संजय सक्सेना

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज 10 जुलाई 2025 को एक महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। यह मामला बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के संशोधन की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं से जुड़ा था, जिसमें विपक्षी दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने इसे असंवैधानिक और मनमाना बताया। सुनवाई जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जोयमाल्या बागची की खंडपीठ के समक्ष हुई, जहां याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग ने अपने-अपने तर्क पेश किए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य है। सत्यापन के लिए जरूरी दस्तावेजों से आधार कार्ड को बाहर रखने पर चुनाव आयोग ने कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आप मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। अगर आपको पुनरीक्षण के जरिये नागरिकता की जांच करनी थी तो आपको यह पहले करना चाहिए था। इसमें अब बहुत देर हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परेशानी पुनरीक्षण प्रक्रिया से नहीं है। बल्कि दिक्कत इसके लिए चुने गए समय से है।

सर्वाेच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत के समक्ष जो मुद्दा है वह लोकतंत्र की जड़ और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के मतदान करने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय को भी चुनौती दे रहे हैं। इन तीन मुद्दों पर जवाब देने की जरूरत है।याचिकाकर्ताओं में लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा, सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) जैसे संगठन शामिल थे। इनका कहना था कि एसआईआर प्रक्रिया के तहत मतदाताओं से नए सिरे से पात्रता साबित करने की मांग की जा रही है, जिससे करीब तीन से चार करोड़ मतदाताओं के नाम कटने का खतरा है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि यह मतदाताओं के अधिकारों का हनन भी करती है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने पहले कई बार मतदान किया, उन्हें भी अब दस्तावेज जमा करने पड़ रहे हैं, जो विशेष रूप से ग्रामीण और गरीब तबके के लिए मुश्किल है। एडीआर के सह-संस्थापक जगदीप छोकर ने कहा कि हालांकि चुनाव आयोग को मतदाता सूची संशोधन का अधिकार है, लेकिन यह मौजूदा कानूनों का उल्लंघन नहीं कर सकता।

वहीं, चुनाव आयोग ने अपने बचाव में कहा कि यह प्रक्रिया संवैधानिक रूप से अनिवार्य है और इसका उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना है। आयोग ने बताया कि बिहार में तेजी से शहरीकरण, असूचित मृत्यु, नए मतदाता, और गैर-नागरिकों, खासकर रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों, की संभावित मौजूदगी जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए यह कदम उठाया गया है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती जा रही है और इसे समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने जोर देकर कहा कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई अहम सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा कि क्या एसआईआर प्रक्रिया का समय नियमों में निर्धारित है और क्या यह प्रक्रिया गैर-नागरिकों को हटाने के लिए है, जो गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे इस प्रक्रिया को कृत्रिम न कहें, क्योंकि इसके पीछे एक तर्क है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि इसकी वैधता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना जरूरी है, क्योंकि यह 7.9 करोड़ मतदाताओं को प्रभावित करेगा।

विपक्षी दलों, विशेष रूप से इंडिया ब्लॉक ने इस प्रक्रिया को वोट बंदी करार दिया और इसके खिलाफ बिहार बंद का आयोजन किया। राहुल गांधी ने इसे संविधान-विरोधी साजिश बताया। दूसरी ओर, आयोग ने विपक्ष के दावों को आधारहीन करार देते हुए कहा कि लाखों फॉर्म पहले ही प्राप्त हो चुके हैं। सुनवाई अभी जारी है और कोर्ट का अंतिम फैसला इस प्रक्रिया की दिशा तय करेगा। यह मामला बिहार में निष्पक्ष चुनाव और मतदाता अधिकारों को लेकर एक बड़ी बहस का केंद्र बन गया है।