संदीप ठाकुर
महाराष्ट्र की मौजूदा शिंदे सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय काे सरल
क्रिकेट की भाषा में समझने की कोशिश करें तो घटनाक्रम कुछ यूं बनता है।
शिंदे ने ठाकरे को नो बॉल फेंकी। फडणवीस ने अंपायर (राज्यपाल) से झूठी
अपील की। अंपायर कोश्यारी ने गलत फैसला दिया और आउट दे दिया। और इस तरह
नो बॉल पर ठाकरे का विकेट ले लिया। लेकिन तीसरे अंपायर ( सुप्रीम कोर्ट)
का फैसला आने तक ठाकरे मैदान छोड़कर मातोश्री चले गए। अब उन्हें
बल्लेबाजी के लिए वापस नहीं बुलाया जा सकता है। यदि वे मैदान पर होते, तो
उन्हें बल्लेबाजी करने के लिए कहा जाता। अब आगे का मैच जारी रखें,” कह
तीसरे अंपायर ने अपना पल्ला झाड़ लिया। ऐसे में सवाल यह है कि सुप्रीम
कोर्ट के फैसले से हुई फजीहत के बाद एकनाथ शिंदे को क्या मुख्यमंत्री बने
रहने का नैतिक अधिकार है?
कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा ? जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता
वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार न
सिर्फ अवैध बल्कि असंवैधानिक भी है। शिंदे काे मुख्यमंत्री बनाने का
फैसला ऊपर से नीचे तक गलत है। चीफ व्हिप की नियुक्ति का अधिकार राजनीतिक
पार्टी को है। यह अधिकार विधायक दल का नहीं हो सकता है। यानी भले ही
एकनाथ शिंदे के साथ ज्यादा विधायक थे लेकिन इस सियासी संकट की स्थिति में
उन्हें और शिवसेना के बागी विधायकों काे यह अधिकार नहीं था कि भरत
गोगावले को चीफ व्हिप बनाया जाए। यानी सुप्रीम कोर्ट ने व्हिप गोगावले की
नियुक्ति को गलत माना और कहा है कि व्हिप सिर्फ राजनीतिक पार्टी का ही हो
सकता है न कि विधायिका पार्टी की। अदालत ने कहा कि विधायक दल के नेता का
चुनाव राजनीतिक पार्टी की ओर से होना चाहिए, विधायक दल की तरफ से नहीं।
कोर्ट ने सुनील प्रभु को चीफ व्हिप और अजय चौधरी को विधायक दल के नेता के
रूप में स्पीकर से मिली मान्यता को वैध ठहराया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह
शिवसेना पार्टी की ओर से प्रस्तावित किया गया था लिहाजा यह वैध है। वहीं
अदालत ने भरत गोगावले को चीफ व्हिप और एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता
बनाने के फैसले को अवैध करार दिया, क्योंकि यह पार्टी की ओर से समर्थित
नहीं था। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर एकनाथ शिंदे की विधायक दल नेता के
रूप में नियुक्ति ही अवैध है तो फिर वह राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का
दावा कैसे कर सकते थे ?
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच का फैसला एक तरीके से लेजिस्लेटिव
पार्टी पर पॉलिटिकल पार्टी की जीत है। राजनीतिक पार्टी का फैसला ऐसे
मामलों में क्यों अंतिम होना चाहिए, यह साफ करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने
कहा, ‘ यदि यह मान लिया जाए कि विधायक दल ही मुख्य सचेतक या चीफ व्हिप
नियुक्त करेगा तो यह सदन के किसी सदस्य को जो गर्भनाल की तरह किसी
राजनीतिक दल से जुड़ता है, उससे अलग करने की तरह होगा।’ सीजेआई चंद्रचूड़
ने फैसले में कहा, ‘इसका तो अर्थ यह होता है कि विधायक सिर्फ चुनाव के
दौरान सेट होने के लिए अपने दल पर भरोसा करें। उनका प्रचार अभियान
राजनीतिक दल की मजबूती-कमजोरी, वादों और नीतियों पर आधारित हो। वे चुनाव
में पार्टी से अपने जुड़ाव के आधार पर अपील करें। लेकिन बाद में खुद को
पार्टी से पूरी तरह अलग कर लें और एक विधायकों के समूह की तरह बर्ताव और
काम करने लगें। हमारे संविधान में ऐसी शासन व्यवस्था की कल्पना नहीं की
गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में एकनाथ शिंदे खेमे काे एक और झटका दिया है।
बेंच ने कहा, ‘शिवसेना के चीफ व्हिप के रूप में भरत गोगावले की नियुक्ति
को अवैध इसलिए है क्योंकि शिवसेना विधायक दल के एक धड़े ने यह प्रस्ताव
पास किया। जबकि इस फैसले से पहले यह सुनिश्चित करने की कोशिश नहीं की गई
कि यह राजनीतिक पार्टी का फैसला है।’ सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम सवालों ने
महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश के लिए एक नई इबारत लिखी है।