सुप्रीम कोर्ट की नई लिस्टिंग नीति: “तारीख पर तारीख” पर रोक की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम

Supreme Court's New Listing Policy: A Historic Step Towards Ending "Dari-Bukhari"

  • कोर्ट अब यह मानता है कि न्याय तभी न्याय कहलाता है जब वह समय पर मिले,और यह सिद्धांत पूरी नीति के मूल में स्पष्ट दिखाई देता है
  • वर्षों से “तारीख पर तारीख” यानें मामलों के लगातार आगे बढ़ते जाने ,सुनवाई में देरी और मामलों की अनावश्यक मेंशनिंग जैसे मुद्दों से मुक्ति मिलने की संभावना

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

वैश्विक स्तरपर भारत के न्यायिक इतिहास में 1 दिसंबर 2025 एक महत्वपूर्ण तिथि के रूप में दर्ज हो गई है।लागू किए गए नए नियम सिर्फ प्रशासनिक बदलाव नहीं,बल्कि एक व्यापक न्यायिक सुधार का संकेत हैं।

नई नीति का केंद्र बिंदु वही पुराना सवाल है,किस अधिकार से किसी व्यक्ति को सालों तक सिर्फ प्रक्रिया के इंतज़ार में रखा जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने यही प्रश्न खुद से पूछा और इसका समाधान “रीस्ट्रक्चर्ड लिस्टिंग सिस्टम” के रूप में प्रस्तुत किया। कोर्ट अब यह मानता है कि न्याय तभी न्याय कहलाता है जब वह समय पर मिले, और यह सिद्धांत पूरी नीति के मूल में स्पष्ट दिखाई देता है।सुप्रीम कोर्ट ने फाइलिंग और लिस्टिंग की प्रक्रिया को सरलीकृत करते हुए यह व्यवस्था लागू की है कि अदालत के सामने गैर-ज़रूरी मेंशनिंग बिना आधार वाली अर्जेंट मांगें और अनावश्यक स्थगन अब सीमित किए जाएँ। वर्षों से सुप्रीम कोर्ट की सुबहें मेंशनिंग की भारी भीड़ से शुरू होती थीं,एक भीड़ जिसमें सच्ची अर्जेंसी वाले मामलों की आवाज़ अक्सर दब जाती थी। नए सिस्टम में यह अव्यवस्था लगभग समाप्त कर दी गई है।

अदालत की ऊर्जा अब प्रक्रिया पर नहीं, बल्कि सुनवाई पर खर्च होगी, और यह अपने आप में एक बड़े बदलाव की शुरुआत है।वर्षों से तारीख पर तारीख यानें मामलों के लगातार आगे बढ़ते जाने, सुनवाई में देरी, और मामलों की अनावश्यक मेंशनिंग जैसे मुद्दे भारतीय न्याय-प्रणाली पर बोझ बढ़ाते रहे हैं। न्यायिक देरी न सिर्फ मुकदमों को लंबा करती है बल्कि आम लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, संपत्ति के अधिकार, और न्याय पाने के मूल अधिकार को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। इसी समस्या को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने लिस्टिंग, मेंशनिंग और एडजॉर्नमेंट यानें स्थगन प्रणाली में बड़े बदलाव किए हैं। इन बदलावों का उद्देश्य न्याय को तेज़, भरोसेमंद और तकनीकी रूप से अधिक कुशल बनाना है। यह सुधार न केवल प्रशासनिक बदलाव हैं, बल्कि न्यायपालिका के भीतर एक नई सोच,एक नई संस्कृति को जन्म देते हैं। यह जानकारी मीडिया से उठाई गई है

साथियों बात अगर हम ज़ारी किए गए चार प्रमुख सर्कुलरों क़ो सरल भाषा में समझनें की करें तो,सुप्रीम कोर्ट ने सुधारों को लागू करने के लिए चारमहत्वपूर्ण सर्कुलर जारी किए हैं। इनका उद्देश्य कोर्ट प्रशासन, तकनीकी प्रक्रिया और न्यायिक कार्य को सुव्यवस्थित करना है। सरल भाषा में ये चार सर्कुलर इस प्रकार हैं

(1)मेंशनिंग पर नियंत्रण वाला सर्कुलर-इस सर्कुलर में कहा गया कि अब से मामलों की ओरल मेंशनिंग सीधेसीजेआई की बेंच के सामने नहीं की जाएगी। केवल उन्हीं मामलों को सीजेआई बेंच के सामने ओरल मेंशनिंग की अनुमति होगी जिनके लिए विशेष अनुमति दी गई हो। यह कदम उन वकीलों की भीड़ को नियंत्रित करेगा जो रोज़ाना सीजेआई के सामने मेंशनिंग के लिए खड़े हो जाते थे

(2)केस लिस्टिंग में ऑटोमेशन का सर्कुलर-कोर्ट ने एक नया तकनीकी सिस्टम लागू किया है जिसमें फाइलिंग के बाद केसों की छंटनी,स्क्रूटनी और लिस्टिंग स्वतः होती है। अब वकीलों को मैनुअली जाकर या मेंशनिंग करके केस की जल्दी तारीख मांगने की ज़रूरत नहीं होगी। सिस्टम अपने आप अर्जेंट मामलों को प्राथमिकता देगा

(3) अर्जेंट मामलों की 48 घंटे में ऑटो-लिस्टिंग का सर्कुलर -इसमें महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अर्जेंट अंतरिम राहत से जुड़े सभी नए मामलों को दो वर्किंग डेज़ यानी 48 घंटे के अंदर स्वतःसुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया जाएगा।

(4) एडजॉर्नमेंट कंट्रोल वाला सर्कुलर-यह सर्कुलर बताता है कि अनावश्यक एडजॉर्नमेंट, बार -बार तारीख लेने की आदत, और बिना उचित कारण सुनवाई को आगे बढ़ाने पर रोक लगाई जाए। कोर्ट चाहता है कि वकील सुनवाई की तारीख तय होने के बाद तैयार रहें और सुनवाई अनावश्यक रूप से लंबी न खिंचे।इन चारों सर्कुलरों का सामूहिक लक्ष्य है,मुकदमों की गति तेज़ करना और तारीख पर तारीख की समस्या खत्म करना।

साथियों बात अगर हम ओरल मेंशनिंग, अर्जेंट लिस्टिंग और एडजॉर्नमेंट का नया ढांचा इसको सरल भाषा में समझनें की करें तो,सुप्रीम कोर्ट में मामलों की सुनवाई, उनकी लिस्टिंग और मेंशनिंग का सिस्टम अक्सर जटिल और धीमा माना जाता था। वकील रोज़ाना बड़ी संख्या में “ओरल मेंशनिंग” करते थे,यानें कोर्ट में खड़े होकर अपने केस को जल्दी सूचीबद्ध करने का मौखिक अनुरोध। इससे बेंच का काफी समय सिर्फ मेंशनिंग सुनने में जाता था। कई बार वास्तविक अर्जेंट मामलों को इस भीड़ में से अलग पहचानना मुश्किल होता था। इसी स्थिति को समझते हुए कोर्ट ने 1 दिसंबर 2025 से एक रीस्ट्रक्चर्ड सिस्टम लागू किया है।

साथियों बात कर हम उनके उद्देश्यों को समझने की करें तो अब से वकीलों को ओरल मेंशनिंग में जाने वाली ऊर्जा समय और प्रयास को कम कर दिया गया है। सिस्टम को अधिक डिजिटल, अधिक पारदर्शी और प्राथमिकता आधारित बनाया गया है।

(1) फाइलिंग को आसान बनाना

(2) बेंच के सामने गैर-ज़रूरी मेंशनिंग को खत्म करना

(3) व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को तेज़ सुनवाई देना

(4) अर्जेंट अंतरिम राहत की मांग करने वाले मामलों को स्वतः प्राथमिकता देना

(5) वकीलों की अनावश्यक भीड़ और अदालत के समय की अनावश्यक बर्बादी को रोकना।यह बदलाव न्यायपालिका को अधिक न्याय-केंद्रित और कम प्रक्रियात्मक बोझ-केंद्रित बनाने की दिशा में बड़ी प्रगति माने जा रहे हैं।

साथियों बातें कर हम ओरल मेंशनिंग पर रोक, नई नीति और जूनियर वकीलों को बढ़ावा, इसको सरल भाषा में समझनें की करें तो,पहले सुप्रीम कोर्ट में रोज़ सुबह की शुरुआत में ओरल मेंशनिंग का समय सबसे शोरगुल वाला माना जाता था। हर वकील चाहता था कि उसका केस जल्दी लगे, चाहे वह अर्जेंट हो या नहीं। इससे अदालत का कीमती समय खर्च होता था और कई बार वास्तविक अर्जेंट मामलों को प्राथमिकता नहीं मिल पाती थी।नई नीति के अनुसार, अब

(1) सीजेआई की बेंच के सामने सीनियर वकील ओरल मेंशनिंग नहीं कर पाएंगे,इससे मेंशनिंग की भीड़ कम होगी और सीजेआई बेंच वास्तविक न्यायिक कार्य में अधिक समय दे पाएगी।

(2)केवल विशेष अनुमति वाले मामलों को ही सीजेआई के सामने मेंशन किया जा सकेगा, यानी पहले हर वकील मेंशन करता था; अब सिर्फ वही करेगा जिसे असल में इसकी जरूरत हो।

(3) जूनियर वकीलों को बढ़ावा दिया गया है,यह बदलाव ऐतिहासिक है।पहले मेंशनिंग का मंच हमेशा सीनियर वकीलों के पास होता था, जिससे जूनियर वकील छाया में रह जाते थे। अब उन्हें आगे आकर अपनी बात रखने का मौका मिलेगा। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और न्यायपालिका में इक्वल अपॉर्च्युनिटी की भावना मजबूत होगी।यह कदम सुप्रीम कोर्ट की उस नई सोच को दर्शाता है जिसमें वह भविष्य की पीढ़ी के वकीलों को सशक्त बनाना चाहता है।

(4) 48 घंटे में ऑटोमैटिक लिस्टिंग लोगों की लिबर्टी वाले मामलों मेंक्रांतिकारी सुधार-नया सर्कुलर कहता है कि निम्न प्रकार के सभी मामलों को 48 घंटे के अंदर सूचीबद्ध किया जाएगा। यह बदलाव इस विचार पर आधारित है कि यदि मामला किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा है, तो हर मिनट की देरी अन्याय के समान है।

साथियों बात अगर हम कौन- कौन से मामले इसमें शामिल हैं? इसको सरल भाषा में समझने की करें तो

(1) स्थायी जमानत (रेगुलर बेल)-जब किसी व्यक्ति को लंबी जांच या लंबी सुनवाई के कारण जेल में रखा गया हो और वह स्थायी जमानत चाहता हो।

(2)अग्रिम जमानत (एंटीसिपेटरी बेल) -जब किसी को गिरफ्तारी का डर हो और वह अग्रिम जमानत मांग रहा हो।

(3)जमानत रद्द करना (कैंसिललेशन ऑफ़ बेल) -जब किसी व्यक्ति की जमानत व्यवहार के कारण रद्द करने की मांग हो।

(4)मृत्यु दंड वाले मामले (डेथ पेनल्टी केसेस)-ऐसे मामलों में देरी जीवन और मृत्यु के बीच फर्क पैदा कर सकती है, इसलिए इन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।

(5)हेबियस कॉर्पस याचिकाएँ -जब कोई व्यक्ति गलत या अवैध कस्टडी में है तो ऐसे मामलों को तुरंत सुनना जरूरी है।

(6) बेदखली कब्ज़ा हटाने या ध्वस्तीकरण (डेमोलीशन) के मामले-क्योंकि यदि देरी होती है तो कभी-कभी व्यक्ति की संपत्ति या घर खोने का खतरा होता है।

(7) कोई भी मामला जिसमें तुरंत अंतरिम आदेश (अर्जेंट इंटीरिम रिलीफ) की जरूरत हो-चाहे वह महिला की सुरक्षा का मामला हो, किसी छात्र का भविष्य जुड़ा हो, किसी डॉक्टर की मेडिकल रजिस्ट्रेशन पर तत्काल रोक का मसला हो या किसी कंपनी के बैंक खाते के फ्रीज होने की वजह से रोज़ी-रोटी रुक गई हो,ऐसे सभी मामलों को दो दिन के भीतर सुनवाई मिलेगी।

यह व्यवस्था न्यायपालिका की उस संवेदनशीलता को दर्शाती है जिसमें व्यक्ति पहले और प्रक्रिया बाद में रखी गई है।

साथियों बात अगर हम नई नीति का व्यापक असर,न्याय पारदर्शिता और गति की दिशा में बड़ा कदम इसको समझने की करें तो, इन सुधारों के कई गहरे और सकारात्मक प्रभाव होंगे।

(1) तारीख पर तारीख संस्कृति टूटेगी-कोर्ट अब अनावश्यक एडजॉर्नमेंट रोक रहा है, जिससे मुकदमे वर्षों तक नहीं खिंचेंगे। इससे लाखों लंबित मामलों पर सकारात्मक असर पड़ेगा।

(2)लोगों की आज़ादी को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलेगी- किसी भी सभ्य देश का न्याय तंत्र तब ही विश्वसनीय बनता है जब व्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वोच्च मानता है। यह सुधार भारत की वैश्विक न्याय-छवि को मजबूत करेगा।

(3) वकीलों की अनावश्यक भीड़ खत्म होगी-हर सुबह सभी वकील मेंशनिंग के लिए दौड़ते थे,अब यह रुक जाएगा। कोर्ट का समय बचेगा, और सुनवाई सुव्यवस्थित होगी।

(4)जूनियर वकीलों को न्यायिक प्रणाली में अधिक अवसर-यह भारतीय लीगल प्रोफेशन में एक प्रकार का डेमोक्रेटाइजेशन है। अब सिर्फ बड़े-सीनियर वकीलों की आवाज़ अदालत तक नहीं पहुँचेगी, बल्कि युवा वकील भी अपने केस को प्रस्तुत कर सकेंगे।

(5) न्यायपालिका की डिजिटल क्षमताएँ मजबूत होंगी- ऑटोमैटिक स्क्रूटनी, डिजिटल लिस्टिंग और प्राथमिकता चयन से सुप्रीम कोर्ट तकनीकी रूप से दुनिया के अग्रणी न्यायालयों में शामिल हो जाएगा।

(6) जनता का भरोसा बढ़ेगा-कानून का मूल उद्देश्य जनता में भरोसा पैदा करना है और जब सुनवाई तेज़ होती है तो लोग न्याय-व्यवस्था पर अधिक विश्वास करते हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि न्यायिक सुधारों के नए युग की शुरुआत1 दिसंबर 2025 से लागू की गई यह लिस्टिंग और मेंशनिंग पॉलिसी सिर्फ प्रशासनिक बदलाव नहीं है। यह भारतीय न्यायिक संस्कृति में एक गहरे परिवर्तन की शुरुआत है,जहां न्याय जल्दी मिले, सटीक मिले और बिना अनावश्यक प्रक्रिया के मिले। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह न्याय में देरी को अन्याय मानता है।यह सुधार भारत को न केवल एक विकसित न्याय-व्यवस्था की ओर बढ़ाएगा बल्कि दुनिया के उन देशों की कतार में भी लाएगा जहां न्याय में तकनीक, पारदर्शिता और व्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोच्च है। भारत का सुप्रीम कोर्ट वैश्विक स्तर पर अपने आप को एक आधुनिक, पारदर्शी और संवेदनशील न्यायिक संस्था के रूप में स्थापित कर रहा है।इन सुधारों के लागू होने के साथ ही उम्मीद है कि “तारीख पर तारीख” की पुरानी छाया अब धीरे-धीरे खत्म होगी, और भारतीय न्यायालय वास्तव में आम नागरिक के लिए सुलभ, तेज़ और प्रभावी मंच बनकर उभरेंगे।