सुशील दीक्षित विचित्र
क्रिकेट के सबसे छोटे प्रारूप के विश्व कप से भारतीय टीम शर्मनाक पराजय का बोझ लिए वापस आयी । वह पराजय जो उन्होंने अपने हाथों बुनी थी और इसके धागे करघा उपलब्ध कराये उस चयन समिति ने जिसकी हर बार योग्यता संदिग्ध पायी गयी । खेल में हार-जीत लगी रहती है मगर बिना लड़े हार जाना विरोधी के सामने समर्पण कर देना माना गया है । मीडिया ने बड़े-बड़े कसीदे काढ़े थे लेकिन पहले ही मुकाबले से साबित होने लगा कि हम गलत खिलाड़ियों पर दांव लगा बैठे हैं । लगभग हर मैच में टीम इण्डिया लड़खड़ाती ही रही लेकिन किसी भी हार से उसने ,टीम प्रबंधन ने या कोच ने सबक लेने की जरूरत नहीं समझी । उसी का नतीजा निकल कर यह सामने आया कि भारत जो कल तक फाइनल में जाता ही नहीं जीतता भी बताया जा रहा था। वह सेमी फाइनल में हो खेल से बाहर हो गया ।
टीम इंडिया ने विश्व कप टी – 20 में पांच मैच खेले । चार जीते और आठ अंको के साथ सेमी फाइनल में पहुंची । यह बहुत उम्मीद आफ्जा स्थित थी । इसलिए और स्थिति मनोनुकूल मानी जा रही थी कि लड़खड़ा कर ही सही भाग्य भरोसे टीम जीतती आयी है तो यहां भी भाग्य उनका साथ देता है । यह भूल जाया गया कि भाग्य हमेशा कर्मवीरों का साथ देता है । यहां मलूक दास की सबके दाता राम वाली थ्यूरी नहीं चलती । खेल में भी राम जी तभी दाता होंगे जब आप सामने से झपटती आ रही हार का मुख विपक्षी की ओर मोड़ सके । पहला मैच पकिस्तान से था । नए गेंदबाज अर्शदीप और हार्दिक पांड्या ने 6 विकेट लेकर पाकिस्तान को महज 159 रन पर ही समेत दिया । हमारे मुख्य गेंदबाज भुनेश्वर कुमार को केवल एक विकेट मिला । यह बड़ा स्कोर नहीं था । ख़ास कर टीम इंडिया के ओपनर्स का रिकार्ड देखते हुये समझा जा रहा था कि हम जीत गए बस घोषणा होने की देर है । पाकिस्तानी खिलाडियों का हमला होते ही ओपनर्स जोड़ी आठ रन बना कर थोड़ी ही देर में पवेलियन लौट आयी । पावर प्ले में छह ओवर के पहले हल्ले में ही टीम इण्डिया के तीन विकेट गिर चुके थे । अगले ओवर में दो रन बने । एक विकेट और गिरा । 33 रन पर चालीस परसेंट टीम दर्शकों की तरह बैठी मैच देख रही थी । जीते तो लेकिन अंतिम गेंद पर । वह भी कोहली और पांड्या के दमदार और अश्विन के अनुभव से उपजी चालाकी से ।
नीदरलैंड से दूसरा मैच हुआ । कमजोर टीम नीदरलैंड का भारतीय टीम ने वैसे ही शिकार कर लिया जैसे शेर मृग छौने का कर लेता है । अगला तीसरा मुकाबला दक्षिण अफ्रीका जैसी थोड़ी तगड़ी टीम से था । ओपनर्स का फ्लॉप शो जारी रहा । पराजय हाथ आयी । बांग्लादेश से बरसात के भरोसे जीते अन्यथा सात ओवर तक गेंदबाजों की जो धुनाई हो रही थी उससे लगता था दूसरी पराजय की पटकथा लिखी जा रही है । कमजोर जिम्बाब्बे जैसी कमजोर टीम को जीत कर टीम इंडिया ने बहादुरी की जो मिसाल पेश की उसकी पोल सेमी फाइनल में इंग्लैण्ड के सामने खुल गयी । इंग्लैंड के ओपनर्स ने सभी गेंदबाजों को रुई की तरह धुना और टीम इंडिया पर एकतरफा जीत दर्ज की । अगर पांड्या और कोहली के रनों को छोड़ दें तो कोई भी बल्लेबाज इंग्लैंड से लड़ता नहीं दिखा । बैटिंग से फील्डिंग तक हर समय ऐसा ही लगता रहा कि टीम इंडिया की पीठ दीवार से लग चुकी है । उसका हारना बस खेल खत्म होने भर की देर और जब खेल खत्म हुआ तो भारतीय टीम का भी खेल ख़त्म हो गया । पाकिस्तान की टीम भले ही फाइनल न जीत पायी हो लेकिन उसने जो जज्बा दिखाया वैसा अगर हमारे लड़के दिखा पाते तो पाकिस्तान या इंग्लैंड की जगह एक टीम हमारी होती ।
पाकिस्तानी गेंदबाजों ने 138 का स्कोर पाने के लिए उन्नीस ओवर्स का इन्तजार कराया जबकि इससे तीस रन बड़ा 168 रनों का स्कोर पार करने में इंग्लैण्ड को केवल 16 ओवर्स खेलने पड़े । अगर पाकिस्तान के बल्लेबाजों में पंड्या या कोहली निकल आता और 20 – 22 रन पाकिस्तान अपने स्कॉट में और जोड़ कर 160 तक ले गया होता तो बड़ी बात नहीं थी कि जीत का जो जश्न इंग्लैंड मना रहा है। वह पाकिस्तान मना रहा होता या ऐन वक्त पर शहंशाह अफरीदी चोटिल न हो गये होते तब भी हालात बदल सकते थे । क्योंकि पांच ओवर्स में 41 रनों की दरकार थी । 16 वां ओवर्स फेंकने अफरीदी आये तो चोट के कारण एक ही गेंद डाल कर मैदान के बाहर हो गये । अभी भी 23 गेंदों में 41 रन चाहिए थे । शाहीद की जगह बची हुई पांच गेंदे फेंकने आये इफ्तखार ने 13 रन देकर खेल का रुख अनजाने में ही सही इंग्लैंड की ओर मोड़ दिया । इस ओवर से पहले चिंता की जो सिलवटें इंग्लैंड के खिलाड़ियों के चेहरे पर चस्पा थी वे उतर कर पाकिस्तानियों के चेहरे पर चिपक गयी ।
अभी पिछले महीने भारतीय टीम ने एशिया कप में भी तो ऐसा ही फ्लॉप शो दिखाया था। यहां से भी बहुत बेआबरू हो कर निकली थी । सुपर चार के मुकाबले में वह अपने दोनों मैच हार गया था । यहां भी भारत के ग्रुप में फाइनल में पहुंचने वाली पाकिस्तान ही थी जिसे हरा कर आर्थिक रूप से दिवालिया होने की कगार पर पहुंचे श्री लंका के जांबाज छठी वार एशिया कप जीत ले गए थे । इस कप के लिए भारत से जो टीम गई उसमें भी वे ही के एल राहुल थे जो आईपीएल से लेकर एशिया कप तक फ्लॉप शो ही करते रहे । कप्तान रोहित शर्मा भी कोई करिश्मा नहीं कर पा रहे थे । भुवनेश्वर कुमार की भी बहुत खराब भूमिका मानी गयी थी । पाकिस्तान से एक मैच उनकी ख़राब गेंदबाजी के कारण भारत हारा और बाहर हो गया । जडेजा की जगह अक्षर पटेल को खिलाना भी घाटे का सौदा साबित हुआ । अर्शदीप और आलराउंडर पांड्या के अलावा सभी गेंदबाज निष्प्रभावी रहे । एशिया कप हारने के बाद समझा जा रहा था कि टीम इण्डिया में बदलाव किया जायेगा । विश्व कप में प्रबंधतंत्र उन गलतियों को नहीं दोहरायेगा जो एशिया कप में हार का कारण बने । लेकिन वहीं गलतियां दोहराई गई । उन्हीं पर फिर दांव लगाया गया जिनकी अपने क्षेत्र में खराब भूमिका रही । विकेट टेकर चहल दर्शक बने रहे और अक्षर पटेल न रन बना रहे थे न विकट ले पा रहे थे ।
एक बड़ा फर्क देखें । अपने दो मैच हार कर पाकिस्तान टूर्नामेंट से बाहर समझी जा रही थी । अपने चार मैच जीत कर इंडिया फाइनल की दावेदार प्रचारित की जा रही थी । समय का चक्र ऐसा घूमा कि टीम इंडिया बाहर हो गयी और पाकिस्तान फाइनल में पहुंचा । भले ही हार गया हो लेकिन खेल के अंतिम चरण तक तो पहुंचा । जिस इंग्लैण्ड टीम का भारतीय टीम एक भी खिलाड़ी आउट नहीं कर पायी थी और उन्होंने आसानी से 168 रन का आंकड़ा पार कर लिया था जबकि पकिस्तानी गेंदबाजों ने इंग्लैंड की आधी टीम पवेलियन भेज दी और 138 रन तक पहुंचने में पसीना छुड़ा दिया ।
यह सब टीम चयन की खूबियां हैं कि अन्य देशों के खिलाड़ी जुझारू अंदाज में खेलते हैं और हमारे खिलाड़ी बचाव में खेलते हैं । हमारे खिलाड़ियों के दिमाग में आईपीएल बसा होता है और अन्य देशों के खिलाड़ियों के दिमाग में केवल जीत । ऐसा नहीं है कि हमारे यहां बल्लेबाजों या गेंदबाजों का कमी है । ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने मौके पर खुद को साबित न किया हो लेकिन चयन समिति की नजर उन तक नहीं पहुंचती । अंत में विचारणीय प्रश्न है कि दो भारी पराजयों के बाद क्या बीसीआई की चयन समिति कोई सबक लेगी या वैसे ही टीमें चुनती रहेगी जो हर क्षेत्र में दोयम दर्जे का प्रदर्शन करें ? वह योग्यता देखती है या खिलाड़ी का रिकार्ड ? इन सवालों के जबाब मिलना इसलिए जरूरी है क्योंकि इसी आधार पर आगे जीत- हार की संभावनाएं बनेंगी ।