चाय भावनात्मक पेय पदार्थ-कॉफी से अजनबी वाली फीलिंग

Tea is an emotional beverage - a feeling stranger than coffee

मृत्युंजय कुमार

कोई जब कहता है कि मैंने चाय छोड़ दी या मैं चाय नहीं पीता तो मुझे बहुत बुरा लगता है। चाय पीना भले ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ना हो(हालांकि इसमें बहुत किंतु-परंतु है। इस पर चर्चा बाद में) लेकिन भावनात्मक तौर बहुत पॉजिटिव पेय पदार्थ है।और चाय सिर्फ एक पेय पदार्थ नहीं है बल्कि दो लोगों की बातचीत में मज़बूत मध्यस्थ की भूमिका निभाती है।चाय में बहूत अपनापन महसूस होता है। मुझे जब कोई चाय पर बुलाता है तो तो खाने पर बुलाने से कहीं ज़्यादा आनंद महसूस करता हूँ। कॉफी में वो अपनापन महसूस नहीं होता।चाय से सगे-संबंधी, दोस्ती वाली फीलिंग आती है, कॉफी से अजनबी वाली। चाय सिर्फ पीने का आनंद नहीं है। चाय के बनते हुए का इंतज़ार करना और चाय को बनते हुए देखने का आनंद अद्भुत है। मुझे तो चाय पीने से ज़्यादा खुशी चाय बन रही है, चाय आने वाली है, सुनने में मिलती है। कप में जब चाय खत्म होने लगती है तो निराशा में डूबने लगता हूं, लगता है किसी को विदा कर रहा हूं। कहीं रास्ता चलते चाय की दुकान दिख जाय तो मैं उस दुकान से सट कर गुजरना चाहता हूं, भले ही वहाँ चाय ना पियूँ।और हाँ, चाय की ये सब तारीफ़ हैंड मेड चाय के लिए है। मशीन वाली चाय से मुझे सख़्त नफरत है। मशीन वाली चाय मुझे निर्जीव, भाव शून्य लगती है। कभी-कभी सोचता हूँ, वो घर कितना वीरान लगता होगा जिस घर में सुबह चाय नहीं बनती होगी।

शक्कर वाली चाय छोड़ दी है। और बिना शक्कर वाली चाय भी कम पीता हूँ। हालाँकि ये सब करते हुए मुझे बहुत बुरा लगता है। ब्लैक कॉफी पीता हूँ। लेकिन ब्लैक कॉफी से बिल्कुल प्रोफेशनल रिश्ता है। कॉफी सिर्फ़ गले में उतरती है दिल में नहीं।