ओम प्रकाश उनियाल
हादसा चाहे कोई-सा भी हो मानवीय चूकों का परिणाम होता है। सड़क, रेल, हवाई जैसे हादसों के बारे में आए दिन खबरें पढ़ने-सुनने व देखने को मिलते ही रहती हैं। प्रतिवर्ष अनगिनत लोग विभिन्न प्रकार के हादसों में अपनी जान गवां बैठते हैं। मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि अपनी गलती होते हुए भी स्वीकारता नहीं। दोष भगवान पर थोप दिया जाता है। बार-बार उन गलतियों को दोहराता रहता है। गलतियों से सबक लेने को तो मनुष्य शायद महापाप मानता है। उसकी थोड़ी-सी चूक चाहे कितनी जानें लील ले उसे किसी प्रकार का पश्चाताप नहीं होता। पछतावा तब होता है जब किसी प्रकार का भीषण हादसा उसके व उसके अपनों के साथ घटित हो जाए। किसी भी हादसे का उदाहरण ले लें। जैसाकि, हाल ही में ओड़िशा के बालासोररर रेल दुर्घटना, भागलपुर में पुल का गिरना मनुष्य की ही खामियों का परिणाम है। कमी तो इंसान के अंदर ही है जो अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति समर्पित नहीं रहता। हरेक यही सोचता है कि मैं तो जिंदा हूं दूसरों से क्या लेना-देना। जब तक यह भावना मन में रहेगी तब तक इंसान कोई न कोई चूक करता ही रहेगा। जबकि, मनुष्य को दूसरों की जान लेने का कोई हक नहीं है। यदि मनुष्य अपनी छोटी-छोटी भूलों की तरफ ध्यान दे तो बड़ी भूलें होंगी ही नहीं।