ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों पर आतंकी हमला: वैश्विक आतंकवाद का भयावह चेहरा

Terrorist attack on Jews in Australia: The horrific face of global terrorism

सुनील कुमार महला

ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स राज्य के सिडनी में बोंडी बीच (समुद्र तट) पर हमलावरों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी की घटना में इजरायली नागरिक समेत 16 लोगों की मौत हो गई है, वहीं 29 लोग घायल बताए जा रहे हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार घायलों में एक बच्चा और दो पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं।आस्ट्रेलिया पुलिस ने इसे आतंकी हमला करार दिया है।कितनी बड़ी बात है कि बोंडी बीच में आर्चर पार्क के पास,जो कि भीड़-भाड़ वाली जगह है (ऑस्ट्रेलियन ईस्टर्न डेलाइट टाइम के मुताबिक़ शाम को क़रीब 6 बजकर 47 मिनट पर) दो लोगों की ओर से सार्वजनिक जगह पर गोलीबारी की गई और इलाके को दहला दिया गया। बताया जा रहा है कि आस्ट्रेलिया में हनुक्का त्योहार मना रहे यहूदियों पर यह आतंकी हमला हुआ है, जो बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है। हालांकि, पुलिस की गोलीबारी में एक हमलावर भी मारा गया है तथा दूसरा घायल बताया जा रहा है, जिसे गिरफ्तार भी कर लिया गया है, लेकिन आस्ट्रेलिया में हुई यह आतंकी घटना साफ संकेत देती है कि आस्ट्रेलिया भी कहीं न कहीं अन्य देशों की भांति आतंकवाद का शिकार है। पाठकों को बताता चलूं कि एक हमलावर की पहचान पाकिस्तानी मूल के 24 वर्षीय नवीद अकरम के रूप में हुई है तथा दुनियाभर के नेताओं ने इस आतंकी हमले की घोर निंदा की है। स्वयं आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने कैनबरा में पत्रकारों से कहा कि वह इस नरसंहार से बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा, ‘यह हनुक्का के पहले दिन यहूदी आस्ट्रेलियाई लोगों को निशाना बनाकर किया गया हमला है। यह यहूदी-विरोधी और आतंकी कृत्य है जिसने आस्ट्रेलिया के दिल पर हमला किया है।’प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमले की निंदा करते हुए प्रियजनों को खोने वाले परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है तथा साथ ही यह बात कही है कि-‘ भारत आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहिष्णुता’ रखता है और इसके सभी रूपों व अभिव्यक्तियों के विरुद्ध लड़ाई का समर्थन करता है।’ इधर,इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह बात कही है कि, ‘यह गोलीबारी सुनियोजित हत्या है। मैंने आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को चेतावनी दी थी कि उनके देश की नीतियां यहूदी-विरोध को बढ़ावा देती हैं। यहूदी-विरोधी भावना तब फैलती है जब नेता चुप रहते हैं। आपको कमजोरी दिखाने की जगह कार्रवाई करनी होगी।’ बहरहाल, गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया की लगभग 2.8 करोड़ आबादी में करीब 1.17 लाख यहूदी रहते हैं। सात अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इज़रायल पर किए गए हमले के बाद ऑस्ट्रेलिया में यहूदी विरोधी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। सरकार की विशेष दूत जिलियन सेगल के अनुसार, इन घटनाओं की संख्या तीन गुना से भी ज्यादा हो गई है, जिनमें हमले, तोड़फोड़, धमकियां और लोगों को डराने की घटनाएं शामिल हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछली गर्मियों में सिडनी और मेलबर्न जैसे बड़े शहरों में हुए यहूदी विरोधी हमलों ने पूरे देश को झकझोर दिया था। खास बात यह है कि ऑस्ट्रेलिया की लगभग 85 प्रतिशत यहूदी आबादी इन्हीं शहरों में रहती है। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने अगस्त में ऐसे दो हमलों के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया था और उसके साथ राजनयिक संबंध भी तोड़ दिए थे। वहीं, ऑस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर गोलीबारी की घटनाएं आम नहीं हैं। 1996 में तस्मानिया के पोर्ट आर्थर में हुई भयावह गोलीबारी के बाद, जिसमें 35 लोग मारे गए थे, सरकार ने हथियार कानूनों(गन ला) को बेहद सख्त बना दिया था। इसके बाद से आम लोगों के लिए बंदूक हासिल करना बहुत कठिन हो गया। इस सदी में गोलीबारी की गिनी-चुनी बड़ी घटनाओं में 2014 और 2018 के कुछ हत्या-आत्महत्या के मामले और 2022 में क्वींसलैंड में हुई एक गोलीबारी शामिल हैं। कुल मिलाकर, देश में हिंसा की घटनाएं कम हैं, लेकिन हाल के वर्षों में यहूदी विरोधी हमलों ने गंभीर चिंता पैदा की है। बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के दौर में यह साफ दिखाई दे रहा है कि आतंकवादी अब भीड़भाड़ वाले स्थानों को निशाना बनाकर दहशत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि अधिक से अधिक जान-माल का नुक़सान कर सकें। गौरतलब है कि विश्व में आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित (शिकार) देशों में आज क्रमशः अफगानिस्तान, पाकिस्तान,इराक, सीरिया, नाईजीरिया, सोमालिया, भारत,यमन,माली तथा फिलीस्तीन-इजराइल क्षेत्र शामिल हैं।अफगानिस्तान दशकों से तालिबान, आईएस जैसे संगठनों की हिंसा का केंद्र रहा है। वहीं पर पाकिस्तान आतंकी संगठनों, आत्मघाती हमलों और सीमा-पार आतंकवाद से गंभीर रूप से प्रभावित रहा है।इराक आईएस (इस्लामिक स्टेट) के उदय के बाद भारी आतंकी हिंसा झेल चुका तथा गृहयुद्ध के साथ आतंकवादी संगठनों की सक्रियता ने सीरिया को तबाह किया है।नाइजीरिया का उत्तर-पूर्वी इलाका जहां बोको हराम जैसे आतंकी संगठन से बुरी तरह से प्रभावित है, वहीं पर हमारा देश भारत सीमा-पार आतंकवाद, कश्मीर और बड़े शहरों में हुए आतंकी हमलों से प्रभावित है।गृहयुद्ध और आतंकी गुटों की मौजूदगी के कारण यमन में भारी संकट है तो माली (सहेल क्षेत्र में सक्रिय आतंकी संगठनों के कारण) हिंसा का शिकार है।फिलिस्तीन/इज़राइल क्षेत्र तो लंबे समय से संघर्ष और आतंकी हमलों का सामना कर ही रहा है और यह बात किसी व्यक्ति विशेष से छिपी हुई नहीं है।सच तो यह है कि आतंक की समस्या आज केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया के कई देश इसकी चपेट में हैं। हालिया मामला ऑस्ट्रेलिया का है, जहां सिडनी में यहूदी समुदाय पर किया गया हमला पूरे देश को झकझोर देने वाला साबित हुआ है।आतंकियों ने सिडनी के बॉन्डी बीच पर आयोजित हनुक्का धार्मिक उत्सव के दौरान अचानक गोलीबारी कर दी, निर्दोष लोग मारे गए और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। वास्तव में युवा आतंकियों ने यहां शांति भंग करने व आतंक फैलाने के उद्देश्य से इस कार्रवाई को अंजाम दिया। पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि आज कई जगहों पर युवा और किशोर आतंकवाद या कट्टर विचारधाराओं की ओर लगातार आकर्षित हो रहे हैं, खासकर ऑनलाइन यूर इंटरनेट के ज़रिये। वास्तव में यह एक गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि ,इससे निपटने के लिए दुनिया भर के सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ, सरकारें व सेनाएं भी लगातार सतर्क हो रही हैं। गौरतलब है कि एक संयुक्त चेतावनी में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और न्यूज़ीलैंड जैसी ‘फाइव आइज’ सुरक्षा एजेंसियों ने यह बात कही है कि युवा रेडिकलाइज़ेशन (कट्टर विचारों के प्रभावित होने) की संख्या बढ़ रही है। इससे जुड़े मामलों में लगभग 20% प्राथमिक आतंकवाद के मामलों में युवा शामिल हैं।ऑस्ट्रेलियाई संघीय पुलिस (एएफपी) ने भी यह बात कही है कि बहुत छोटे बच्चे भी ऑनलाइन उग्रवादी सामग्री तक पहुँच रहे हैं, जिनमें से कई 17 वर्ष या उससे कम आयु के हैं। इतना ही नहीं,घरेलू स्पाई एजेंसी एएसआईओ(ऑस्ट्रेलियन सिक्योरिटी इंटेलिजेंस ऑर्गनाइज़ेशन)का 2025 का विश्लेषण भी दिखाता है कि युवा अधिक ‘डिजिटल नेटिव’ (ऑनलाइन-पहला) पीढ़ी बन रहे हैं, और यह ऑनलाइन वातावरण उन्हें चरम विचारों की ओर आकर्षित कर सकता है। हाल फिलहाल,पाठकों को यह जानकारी होगी कि इससे पहले दिल्ली में लाल किले के पास हुआ हमला भी भीड़-भाड़ वाले इलाके में ही किया गया था, जिसमें युवा हमलावर शामिल थे। जांच में यह भी सामने आया कि हमले की साजिश में अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े कुछ सफेदपोश पेशेवर—जैसे डॉक्टर और इंजीनियर(जिसे व्हाइट कालर टेरेरिज्म भी कहा जाता है) भी शामिल थे। वास्तव में, आतंकवाद का यह बदला हुआ और खतरनाक चेहरा आज पूरी दुनिया के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। भारत लंबे समय से आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए हुए है। हालांकि, सीमापार आतंकवाद, जैसा कि ऊपर भी इस आलेख में जानकारी दे चुका हूं कि, हमारे देश के लिए बड़ी समस्या रहा है, लेकिन अब आतंक का स्वरूप और भी जटिल हो गया है। यह कब, कहां और किसे निशाना बना ले, इसका अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है। कई बार तो खुफिया एजेंसियां भी ऐसी वारदातों को समय रहते रोकने में नाकाम साबित होती हैं। अक्सर मीडिया के हवाले से खबरें आतीं रहतीं हैं कि अब आतंकी हमलों में सुसाइड बॉम्बर, लॉजिस्टिक सपोर्ट, फंडिंग और नेटवर्किंग जैसी भूमिकाओं का संगठित तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ ही कुछ ऑनलाइन एप और डिजिटल माध्यम भी आतंकियों के लिए मददगार साबित हो रहे हैं। दिल्ली धमाके की जांच ने आतंक के इसी नए पैटर्न को उजागर किया है, जिसमें उच्च-शिक्षित पेशेवरों की संलिप्तता सामने आई है।इसी कारण सुरक्षाबलों के सामने अब ‘व्हाइट-कॉलर टेरर इकोसिस्टम’ को तोड़ना सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गया है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि आम नागरिकों की भूमिका काफी अहम और महत्वपूर्ण है। वास्तव में आम आदमी को आज सतर्क रहना होगा और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत नजदीकी पुलिस थाने को देनी होगी।अक्सर देखा गया है कि आतंकी समाज के बीच ही छिपकर रहते हैं। इसलिए आम आदमी को चप्पे-चप्पे पर अपनी पैनी नज़र रखनी होगी,सतर्क और जागरूक रहना होगा।सच तो यह है कि आतंकवाद के निरंतर बदलते स्वरूप से निपटने के लिए नए और प्रभावी तरीकों को समय रहते अपनाना होगा। इसके मूल कारणों को समझकर उन्हें खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। आतंकवादियों और आतंकवाद से निपटने के लिए केवल सैन्य कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं है। शिक्षा, रोजगार, सामाजिक न्याय, वैचारिक जागरूकता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बेहद जरूरी हैं। जब तक आतंकवाद के मूल कारणों-जैसे कि गरीबी, कट्टरपंथ, भेदभाव और गलत प्रचार आदि पर प्रभावी ढंग से प्रहार नहीं किया जाएगा, तब तक इसका स्थायी समाधान संभव नहीं है। निष्कर्षतः, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई एक देश या सरकार की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की सामूहिक जिम्मेदारी है।