राजस्थान में तीज की सवारी के साथ शुरू हुआ सालाना परंपरागत त्यौहारों का आगाज

The annual traditional festivals in Rajasthan started with Teej procession

गोपेंद्र नाथ भट्ट

अपने वैभवशाली इतिहास और रंग बिरंगी संस्कृति के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध राजस्थान में सावन की मनभावन फुहारों के साथ ही त्यौहारों का आगाज हो गया है तथा तीज त्यौहारों और उत्सवों का यह सिलसिला अगले वर्ष अप्रैल महीने में गणगौर उत्सव तक चलेगा और फिर मिलेगा कुछ दिनों का विश्राम… राजस्थान के रंग बिरंगें इन त्यौहारों के लिए यह कहावत मशहूर है।

“तीज त्यौहारों बावड़ी, ले डूबी गणगौर” इस राजस्थानी कहावत है का अर्थ है कि सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के साथ ही इन त्योहारों का क्रम कुछ समय के लिए थम जाता है। यह कहावत तीज और गणगौर के बीच के संबंध को दर्शाती है। सावन की तीज से लेकर चैत्र मास की गणगौर तक, राजस्थान में कई त्योहार मनाए जाते हैं, और तीज की तरह ही गणगौर की सवारी के साथ ही इन त्योहारों का क्रम कुछ समय के लिए रुक जाता है। रंग रंगीला राजस्थान अपने तीज, त्यौहारों और पर्वों के लिए देश दुनिया में विख्यात है। यहाँ मानसून की शुरुआत के साथ ही त्यौहार शुरू हों जाते है और वर्ष पर्यन्त विभिन्न त्यौहारों को मनाने के बाद संस्कृति के विभिन्न रंगों में घुल जाते है।

तीज राजस्थान का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह सावन के महीने में मनाया जाता है और इसे हरियाली तीज भी कहा जाता है। तीज के दिन, महिलाएं अच्छे वस्त्र पहनती हैं, मेहंदी लगाती हैं और झूला झूलती हैं। यह त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। तीज उत्सव की यह परंपरा मां पार्वती द्वारा भगवान शिव को पुनः प्राप्त करने की कथा पर आधारित है। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना के लिए व्रत करती हैं। हरियाली, श्रृंगार, मेहंदी, और लोकगीतों से यह पर्व संपूर्ण स्त्री शक्ति के सम्मान का प्रतीक है।

हर बार की तरह इस बार भी राजस्थान की राजधानी पिंक सिटी जयपुर में तीज उत्सव का भव्य आयोजन किया गया। राज्यपाल हरिभाऊ बागडे और राज्य विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने रविवार को जयपुर के प्रसिद्ध लोकपर्व हरियाली तीज के दो दिवसीय समारोह के शुभारंभ समारोह में भाग लिया। इस समारोह का आयोजन राज्य के पर्यटन विभाग द्वारा किया गया। उन्होंने छोटी चौपड़ पहुंचकर पालकी में सवार होकर निकली तीज माता की भव्य सवारी और शोभायात्रा के दर्शन किए।राज्यपाल बागडे और विधानसभाध्यक्ष देवनानी ने इस दौरान सिटी पैलेस से निकली परंपरागत तीज सवारी और तीज माता की पारंपरिक पूजा-अर्चना कर महा आरती में भाग लिया। उन्होंने तीज माता से प्रदेश की संपन्नता तथा खुशहाली की प्रार्थना और सबके मंगल की कामना की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि पारंपरिक वेशभूषा में हाथी और ऊंट सवारों के साथ परंपरागत झांकियों एवं मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सुशोभित तीज माता की अनुपम शोभा यात्रा में सम्मिलित होना अतुलनीय अनुभव है।विधानसभाध्यक्ष देवनानी ने कहा कि इस पावन पर्व पर हमें ‘तीज माता’ की भव्य महा आरती करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तथा हमने समस्त प्रदेश वासियों के सुख, समृद्धि एवं सौभाग्य की प्रार्थना करता हूँ।तीज माता से समस्त प्रदेश वासियों के सुख, समृद्धि एवं सौभाग्य की प्रार्थना की।

इस मौके पर प्रदेश की उप मुख्यमंत्री और पर्यटन मंत्री दिया कुमारी ने राज्यपाल बागडे और विधानसभाध्यक्ष देवनानी का गर्म जोशी सी स्वागत किया। दिया कुमारी दोनों नेताओं को तीज उत्सव का निमंत्रण देने स्वयं गई थी। राजस्थान की परंपरागत लहरियां साड़ी पहने दिया कुमारी रविवार को एक से अधिक भूमिका में दिखी। वे प्रदेश की पर्यटन मंत्री के साथ ही जयपुर राजघराने की प्रतिनिधि के रूप में भी उत्साह से भरपूर दिखी।

जयपुर की तीज सवारी केवल एक जुलूस नहीं, यह तीन सदियों से चली आ रही राजसी लोक परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जिसमें धर्म, कला, स्त्री सम्मान, पर्यावरण और लोक संस्कृति एक साथ बहती हैं। यह परंपरा आज भी जयपुर की आत्मा में उसी गर्व से जीवित है। जयपुर की तीज सवारी का इतिहास राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं से जुड़ा एक अत्यंत गौरवपूर्ण अध्याय है। यह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सदियों से राजपरिवार की परंपरा, लोकसंस्कृति और सामाजिक सहभागिता का प्रतीक रहा है। आजादी के बाद राजस्थान सरकार का पर्यटन विभाग भी इसमें भागीदार हुआ है तथा आज यह देश विदेश के पर्यटकों के पसंद का उत्सव बन गया है।

तीज की सवारी की परंपरा का आरंभ जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय (1727) के काल में हुआ था। यह उत्सव राजपरिवार की स्त्रियों की धार्मिक आस्था और सामाजिक सार्वजनिक जीवन से जुड़ने का एक साधन था। तीज माता (मां पार्वती) की राजसी प्रतिमा को पालकी में बिठाकर नगर भ्रमण पर ले जाया जाता था और इसे “शाही सवारी” की संज्ञा दी गई। 18वीं से 19वीं सदी तक तीज की सवारी केवल राजपरिवार तक सीमित थी और आमजन दूर से इसका दर्शन करते थे। कालांतर में 20वीं सदी पूर्वार्ध जयपुर की चार दीवारी में जनता को पास से दर्शन मिलने लगे तथा तदोपरांत 1950 के बाद लोकतांत्रिक राजस्थान में राज्य सरकार द्वारा तीज सवारी को सार्वजनिक पर्व घोषित किया गया। वर्ष 2000 के बाद राज्य के पर्यटन विभाग ने इसे “राजस्थान टूरिज्म कैलेंडर” में स्थान दिया जिससे हर वर्ष बड़ी संख्या में देशी विदेशी पर्यटक आकर्षित हुए। आज तीज की यह सवारी अब सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि लोक महोत्सव बन चुकी है।

इसमें राजस्थानी लोकनृत्य, संगीत, कठपुतली, और लोक गायन का भी प्रदर्शन होता है।

तीज की सवारी की शुरुआत सिटी पैलेस जयपुर की जनानी ड्योढ़ी से होती हैं जहां पहले राजपरिवार की महिलाएं विशेष पूजन करती थीं।

इसके बाद राजसी रथ, हाथी, ऊँट, घोड़े, बैंडबाजे, लोकनर्तक सब इस जुलूस का हिस्सा होते है।त्रिपोलिया गेट से निकलने वाली इस सवारी का नगरवासियों द्वारा भव्य स्वागत किया जाता है। सवारी के दौरान शाही तोपों से सलामी, पारंपरिक वाद्य, और सजीव लोक कलाओं का प्रदर्शन भी होता है।

इस वर्ष 2025 की तीज में महिला पंडितों की अगुवाई और 2.5 करोड़ पौधारोपण जैसे नवाचार शामिल हुए, जिससे यह परंपरा सामाजिक चेतना का मंच बन गई।