केजरीवाल के आने से रोचक हुई जंग

The battle became interesting with the arrival of Kejriwal

सुरेश हिंदुस्तानी

वर्तमान में देश के राजनीतिक वातावरण को सभी दल अपने अपने हिसाब से परिभाषित कर रहे हैं। सब एक दूसरे पर मनचाहे आरोप लगाने की राजनीति करने पर आमादा है। लेकिन उनकी परिभाषाओं में देश कहीं भी दिखाई नहीं देता। राजनीति में अगर देश नहीं होगा तो फिर राजनीति किसके लिए की जा रही है। क्या मात्र कुर्सी पाने की इच्छा ही राजनीति का एक मात्र उद्देश्य रह गया है। क्या केवल विरोध करने तक ही राजनीति रह गई है। आज की राजनीति से रचनात्मक विचार पूरी तरह से विलुप्त होता जा रहा है। एक दूसरे को नीचा दिखाने की यह राजनीति निश्चित रूप से देश की हितैषी तो कतई नहीं कही जा सकती। सत्ता पाने तड़प सभी दलों में है। राजनेताओं द्वारा दिए जा रहे बयानों से तो यही प्रमाणित होता है कि वे मात्र सत्ता प्राप्त करने की ही राजनीति कर रहे हैं। इसके लिए कुछ राजनीतिक दल जनता को प्रलोभन भी दे रहे हैं। सवाल यह है कि यह प्रलोभन क्या वास्तव में जनता के हितकारी है। वास्तव में राजनीति का एक मात्र यही होना चाहिए जो देश को मजबूत बनाने का रास्ता बनाए। यहां देश का तात्पर्य कोई भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि जनता से है। देश का हित ही जनता का हित है, यही राजनीति की परिभाषा होना चाहिए।

जहाँ तक विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से की जा रही बयानबाजी की बात है तो उसका एक मात्र उद्देश्य यही है कि वह येनकेन प्रकारेण मोदी को सत्ता से हटाना चाहते हैं। इसके अलावा विपक्ष का कोई और उद्देश्य नहीं है। ऐसे उद्देश्य निश्चित रूप से राजनीति को जनसेवा की भावना से दूर करते हैं। इसमें गरीब कल्याण का भाव भी नहीं होता। इसलिए देश में अब सत्ता के लिए भ्रामक राजनीति को सहन करने की आवश्यकता नहीं होना चाहिए। आज देश के राजनीतिक और चुनावी वातावरण में जंग जैसा दृश्य दिखाई देता है। आपस में ही युद्ध जैसी राजनीति करना भविष्य के लिए बहुत बड़ी चिंता का कारण बन सकता है। विपक्ष की ओर से तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए जिस प्रकार से एक अभियान जैसा चलाया जा रहा है, उससे विपक्ष को भले ही राजनीतिक लाभ मी जाए, लेकिन सत्ता पाने का यह रास्ता ख़तरनाक ही है। पहले विपक्ष यह भ्रामक प्रचार कर रहा था कि अब देश में मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो संविधान ख़त्म हो जाएगा। यह बात केवल विपक्ष का एक शिगुफा ही है, क्योंकि ज़ब भाजपा के बड़े नेता इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि संविधान को कोई हाथ नहीं लगा सकता, तब यह झूंठ की राजनीति क्यों की जा रही है? भाजपा ने इस चुनाव में आशा से बढ़कर आसमान की बातें की हैं। भाजपा का 400 पार का नारा आज के वातावरण में एक अतिरेक ही कहा जा सकता है। लेकिन भाजपा ने इसके लिए अपनी जान लगा दी है। वह लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत भी कर रहे हैं। इसके विपरीत विपक्ष में एक डर है। डर इस बात का है कि कहीं बची खुची साख भी समाप्त न हो जाए। इसीलिए विपक्ष मोदी पर आक्रमण कर रहा है। जो विपक्ष के लिए आवश्यक भी है। विपक्ष के लिए यह प्रसन्नता की बात है कि उसे मोदी के विरोध में प्रचार को धार देने के लिए केजरीवाल के रूप में एक नया हथियार मिल गया है। यह बात सही है कि केजरीवाल जो भाषण देते हैं, उससे वह जनता से कनेक्ट हो जाते हैं। इसीलिए केजरीवाल के आने से अब चुनाव असली मोड में आता हुआ दिखाई देने लगा है। इससे विपक्ष में उत्साह भी है और सशंकित भी है। विपक्ष निश्चित ही इस बात को लेकर आशंकित होगा कि कहीं केजरीवाल विपक्ष का मुख्य चेहरा न हो जाए। हालांकि केजरीवाल के बारे में यही कहा जा रहा है कि वे दिल्ली और पंजाब में ही प्रभावी हो सकते हैं। क्योंकि यहां उन्हें विधानसभा के चुनावों में सफलता मिल चुकी है। ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि केजरीवाल इन दोनों राज्यों में अपनी पार्टी का प्रचार ज्यादा करेंगे।

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को प्रचार की अनुमति के रूप में जमानत भले ही मिल गई हो, लेकिन इस जमानत को केजरीवाल की जीत के रूप में प्रचारित करना ठीक नहीं है, क्योंकि उनको शराब घोटाले के आरोप से मुक्त नहीं किया है। उन पर आरोप अभी भी जस के तस हैं। वे अभी भी आरोपी हैं। इसलिए कई दृष्टिकोण से उनकी जमानत पर भी सवाल उठ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने केजरीवाल को सशर्त जमानत दी है। उनको दो जून को फिर से आत्म समर्पण करना होगा। इसे दूसरे अर्थो में ऐसे भी कहा जा सकता है कि केजरीवाल चुनाव प्रचार के दौरान भी आरोपी ही रहेंगे। केजरीवाल जिस प्रकार से अपने आपको सिद्धांतवादी दिखाते हैं, वैसा कुछ भी नहीं है। क्योंकि एक ईमानदार राजनेता मात्र आरोप लगने पर ही विचलित हो जाता है। ऐसे आरोपों के लगने के बाद कई नेताओं ने अपना त्याग पत्र देकर एक मिसाल कायम की, लेकिन केजरीवाल ने त्याग पत्र के बारे में कभी सोचा ही नहीं। खैर… केजरीवाल के आने के बाद चुनाव प्रचार में रोचकता पैदा होगी और फिर होगा बयानों का घमासान। अब देखना यह होगा कि केजरीवाल के आने से चुनावी परिदृश्य कैसा होगा।