रविवार दिल्ली नेटवर्क
विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक चित्तौड़गढ दुर्ग पर अपनी अलग ही पहचान रखता है, जिसे विश्व का सबसे बड़ा दुर्ग भी माना जाता है, जहां की ईमारते इतिहास को बयान करती है, वही दुर्ग स्थित विजय का प्रतिक मुख्य स्मारक विजय स्तम्भ यहां की शान को बढाता है।
विजय स्तम्भ को मेवाड़ नरेश महाराणा कुम्भा ने विजय स्मारक के रूप में बनवाया था । जिसे राजस्थान पुलिस और राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के प्रतीक चिह्न में शामिल किया है। इसे भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश, हिन्दू देवी देवताओं का अजायबघर और विष्णु स्तम्भ भी कहते हैं। इस स्तम्भ के आन्तरिक और बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहर, पितामह विष्णु के विभिन्न अवतारों और रामायण महाभारत के पात्रों की सेंकड़ों मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । कुम्भा द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ का संबंध मात्र राजनीतिक विजय से नहीं है, वरन् यह भारतीय संस्कृति और स्थापत्य का ज्ञानकोष है.
चित्तौड़गढ दुर्ग स्थित विजय स्तम्भ कोसो दूर से नजर आता है । 122 फीट ऊंचा, 9 मंजिला यह स्तंभ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक और सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है, जो नीचे से चौड़ा, बीच में संकरा और ऊपर से पुनः चौड़ा डमरू के आकार का है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्तम्भ का निर्माण राणा कुम्भा अपने समय के महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में उनके बनाये नक््शे के आधार पर करवाया था। आज देश विदेश से दुर्ग भ्रमण के लिये आने वाले पर्यटकों को विजय स्तम्भ की उंचाई और कलाकृति अपनी ओर आकर्षित करती है ।
निश्चित रूप से विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक चित्तौड़ दुर्ग स्थित स्मारकों में से एक विजय स्तम्भ अपनी विजय गाथा को बया करता है, जिससे इसे देखने के लिये पर्यटक स्वतः इसकी बनावट और इतिहास से आकर्षित हो जाते है ।